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भागमधरसरि
उदार नीति तथा कूट नीति के आधार पर उन्हें कई जगह सफलता भी मिली, फिर भी आर्य संस्कृति के केन्द्रस्थान भारत में उनका सोचा हुआ पूरा नहीं हुआ। हा, उन्हों ने कहीं कहीं तोड़फोड़ की थी । और परोक्ष ढंग से और भी बहुत सी तोडफेोड़ की योजनाए गुप्त रूप से जारी थीं।
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सफेद प्रजा के कुछ सत्ताधीश लोगेाने शिखरजी तीर्थ की शस्यश्यामला और दिन को सूर्य की किरणों से अलिप्त रह सकने वाली पवित्र भूमि पर अपने राक्षसी शौक और शिकार की सुविधा के लिए आवास बनाने की घोषणा की । यूरोपीय लोगों के रहने के लिए आवास बनाना तो गौण था, वस्तुतः इसके पीछे धर्म-स्थान और पवित्र यात्राधामों के पर्वतों को भ्रष्ट करने की निंदनीय वृत्ति छिपी हुई थी। पूज्य आगमोद्धारक इस रहस्य को जान गए । उन्होंने बम्बई में इस प्रश्न पर आन्दोलन : शुरू करने का विचार किया । उचित समय देख कर बम्बईवासियों की तन्द्रा दूर करनेवाले व्याख्यानों की झड़ी प्रारंभ कर दी, जिससे सब का प्रमाद दूर होने लगा।
— राजनीतिक आन्दोलन शुरू करना आसान है परन्तु धार्मिक आन्दोलन शुरू करना सीधी चढ़ाई जैसा कष्ट-साध्य है। राजनीतिक भान्दोलन में कई लोगों के व्यक्तिगत स्वार्थ, महत्त्वाकांक्षाएँ और सत्ताकी भूख छिपी होती है, परन्तु धार्मिक मान्दोलन में ऐसे किसी तत्व के लिए स्थान न होने के कारण यह आन्दोलन अधिक कठिन होता है। ऐसे आन्दोलनका नेतृत्व पू. भागमोद्धारक जीने अंगीकार किया।