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आगमघरसरि उनका यह रंग कौन उतारेगा ! वैराग्य का रंग कौन लगाएगा ? अतः बम्बई चलें। विहार भारंभ हुआ, बीच के गांवों और शहरों का उद्धार करते हुए आगमोद्धारकजी बम्बईवासियों का उद्धार करने बम्बई पधारे।
वहाँ की स्वागत-यात्रा की तो बात न पूछिये । वसन्त के भागमन पर बन-निकुज जिस प्रकार नव-पल्लवो, नव कुसुमो तथा कोकिल-कंठके मधुरस्वरों से उसका स्वागत करते हैं वैसे इन सन्त महात्मा के पधारने पर मोहमयी के मानवांने हार्दिक स्वागत किया।
लालबाग लालबाग का विशाल उपाश्रय और उसमें आगमोद्धारक की अमोघ देशना ! उपाश्रय खंड अखंड मानव-समूह से भरने लगा। शान्ति और स्वस्थता भी प्रशंसनीय थी । विद्वान् भऔर श्रद्धालु, छोटे और बड़े सब आते, वाणी सुनते, जितना हृदय में भरा जाय उतना भरते, पान कर सकते उतना करते और पुनः दूसरे दिन दौड़ते आते थे। कोई आमंत्रण की राह नहीं देखता था । बैठने को जगह मिल पाए तो बडे भाग । आगमाद्धारक जी यही पर अधूरे फिर मी मधुर नाम से सुख्यात हुए । सब उन्हें 'सागरजी महाराज' कहने लगे। इस छोटे प्यारे मामने बम्बई की जनता पर अनोखा जादू कर दिया । 'सागरजी' 'सागरजी' बोलते हुए लोग हर्ष-विह्वल हो जाते ।
शिखरजी आन्दोलन ऐसा मालूम होता है कि यूरोपवासी गोरी चमडीवालेोने भारत के सभी धर्मों का भ्रष्ट करने की प्रतिज्ञा ली होगी। उन रोगों की ४७५ वर्षों की नीति-रीति पर से अवश्य ऐसा अनुमान होता है।