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भागमधरसूरि
आखिर संघने गणीपद और पन्यासपदके लिए भावपूर्ण बिनतियों की वर्षा की । मुनीश्वर विधिपूर्वक आगमवाचनाओं के लिए इन पदवियों की आवश्यकता एवं शास्त्रीयता ज्ञात होने से ये पदविया स्वीकार करने को सहमत हुए।
मंगल-प्रभात में कालग्रहण की विधि के साथ श्री भगवतीजी के योग शुरू हुए। शुद्ध भायबिल और शुद्ध नीवी युक्त छ:मास से अधिकका महातप प्रारंभ किया । ज्ञान के द्वारा पदवीप्रहण करने की योग्यता प्राप्त की ही थी, पर अब उसमें तप जोड़ कर शास्त्रीयता भी प्राप्त कर ली।
पदवी-प्रदानका प्रसंग नज़दीक आता गया और अहमदाबाद की जनताका आनन्द उमरता गया। शहर में तरह तरह की तैयारिया होने लगी । मंदिर मंदिर उत्सव शुरू हुए । धवल मंगल के गीत शुरू हुए । देश-विदेश के आदरणीय पुरुष पधारे । ध्वजा, तोरण, मेहराब, पताका, वैजयन्ति आदि से बाजारों, और मुहल्ले को सजाया गया। अशोक के तोरण बाँधे गये। मातः-अक्षत के चौक पूरे गये। राजकुमारका राज्याभिषेक होता है। ऐसे ठाट बाट और दबदबे के साथ यह महोत्सव मनाया गया ।
अहमदाबाद धन्य हो गया-अहमदाबादका जैन संघ धन्य हो गया । इतिहासकारोंने इस वर्ष को ऐतिहासिक माना और सुवर्णाक्षरों से लिखा-विक्रम संवत् १९६० और श्री वीर निर्वाण संवत् २४३० ।
विहार पन्यास-प्रवर श्री आनन्द सागरजी गणीन्द्र ने चातुर्मास पूर्ण कर साधु-मर्यादा के अनुसार विहार किया । विहार के समाचारों से अहमदाबाद की जनता उदास है। गई। उन्हें ऐसा प्रतीत हुभा जैसे अपना