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आगमधरसरि
कोई अत्यन्त निकट का स्वजन जा रहा हो । विदा देने आये हुए नर नारियों की आंखों से आसुओं की अजस्र धारा प्रवाहित हो रही थी। आसुओं को धारा कहती थी-हमें निराधार बना कर कहा जा रहे हो ! अब हमारा कौन आधार है ?
यह अश्रु-धारा साधु-मर्यादा में मुनीश्वर के लिए विघ्न नहीं बन सकी । विधिवत् विहार हुआ, और विचरते विचरते बीजापुर तहसील के पेथापुर नगर पहुँचे।
पेथापुर-परिषद - उस समय पेथापुर में एक विशिष्ट परिषद हो रही थी। पन्यासप्रवर मुनीश्वर के पदार्पण के समाचार मिलते ही परिषद का रंग और बढ़ गया। जब वे परिषद के पटांगण में पधारे तब पटांगण जयघोषणाओं के नाद से गाज उठा।
परिषद के अध्यक्ष, माननीय पदाधिकारी, सदस्य आदि अपने उच्च आसन छोड़ कर प्रेक्षकों की तरह सामने आये । मुनीश्वर को सुन्दर काष्ठमय उच्चासन पर बैठा कर अन्य सब लोग श्रोताओं के तौर पर नीचे सामने आ बैठे ।
व्याख्यान
मुनीश्वर का प्रेरणात्मक व्याख्यान शुरू हुआ । व्याख्यान का अभिप्राय था “ शासन की खातिर समर्पित होना । शासन हमारा है, और हम शासन के हैं । इस शासन की रक्षा और उन्नति के हेतु हम अपने प्राण त्योछावर कर दें तो भी कम है। शासन की रक्षासेवा करते हुए मृत्यु आ जाय तो वह मृत्यु भी धन्य है । उसका जीवन भी धन्य है । शासन-सेवा से विहीन जीवन पशु का सा जीवन है।