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आगमघररि
एक ने कहा- 'मूर्ख' कहीं था ? इतनी छोटी उम्र में दीक्षा ली जाती होगी ? दीक्षा लेनी ही थी तो क्या बुढ़ापे में नहीं ले सकता था ? मूर्ख' अभी से चल पड़ा ।'
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माणेक की कोई सखी बुदबुदाने लगो- 'दीक्षा ही लेनी थी तो मेरी सहेली से शादी क्यों की ? उसका भव नष्ट कर दिया ? मरा रात का चल पड़ा ? दीक्षा में धरा ही क्या है ? किसीने भभूत डाल दी लगती है । यों तो हेमू दीक्षा लें ऐसा था ही कहाँ ? पर अब मेरी सखी माणेक का क्या होगा ? एक स्पष्टवक्ता युबक ने कहा "बहुत दिनों से हेमचन्द्र दीक्षा की बात करता था । यदि उसे यहीं दीक्षा लेने की अनुमति दी होती तो क्या बुरा था ? जिसे संसार में न रहना हो उसे बलात् कब तक रोक सकते हैं ? हेमचन्द्रको अनुमति नहीं मिली इप लिए जाता रहा, इसमें उसका क्या दोष ?"
इतने में कंकू काकी उबल पड़ी - 'मरा माणेक का बाप | हेमू तो पहले ही कह रहा था- मुझे ब्याह नहीं करना है। मैं दीक्षा लेने वाला हूँ, मेरी शादी मत करो, परन्तु उस समय मगनलाल का धन देख
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कर माणेक के पिताने अपनी लड़की हेमू के साथ व्याही | अच्छा घर देखने गया पर जब बर की इच्छा न हो और जबरदस्ती शादी की जाय तो यही नतीजा निकले न ? देव ही जानता है कि बेचारी माणेक का क्या होगा ? '
झमकूमाई ने बीच में अपना राग अलापा – जब हेमिये ने शादी से इनकार किया था तभी माणेक का भी इनकार करना चाहिए था । क्या यह पगलीं नहीं जानती थी कि मैं जिससे ब्याहने चली हूँ वह तो