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भागमधरसूरि
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"धन-दौलत और विद्या प्राप्त करने विदेश जानेवालों को माता और पत्नी तिलक करती है । इनमें से कई नहीं लौटते और परलोक सिधार जाते हैं तब ये क्या कर सकती हैं ? तू तो तरने का ही मार्ग अपना रहा हैं, अनेकों को तारनेवाला तारक बननेवाला है । चल, उठ, जल्दी कर ।"
हेमचंद्र
अन्तरात्मा की
आवाज़ के साथ नीरव रात्रि में चल पडा। गाँव के बाहर पैर रखते ही उसे चंद्रने अपनी ज्योत्स्ना से नहला दिया। धीरे धीरे परन्तु दृढ़ कदमों सें बह गया सेा गया ।
अन्धकारमय प्रभात
चार प्रहरका विश्राम कर सूर्य सात प्राची के गगन में आ तो गया परन्तु उदास था । उसका तेज धुंधला था । ज्योंही उसकी पहली नज़र पड़ी त्यों ही "हेमचन्द्र गुम हो गया, हेमचन्द्र गुम हो गया" के समाचार ने उदासी फैला दी थी.
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- यह देखकर सूर्य भी उदास हो गया । अपने आँसुओं को छिपाने के लिए उसने अपना मुख क्षण भर के लिए बादल को ओट कर दिया ।
कर
अश्वों के रथ में बैठ किसी अगम्य कारण से वह कपडवंज के हेमचन्द्र के घर पर
बात का बतंगड
कपडवंज में ये समाचार पधनवेग से फैल गये । सब जानते थे कि वह वैरागी महानुभाव था । उसे दीक्षा की रट लगी थी । कभी न कभी वह किसी साधु के चरणों में साधु बननेवाला था ही । बात का बीज पड गया और तरह तरह की बातें पैदा हुई ।