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आंगमधरसरि
३१.
: अग्नि सन्त और शैतान को समान गिनती है और दोनों को अलाती है । उसी तरह कानून भी संत और शैतान को हैरान: करता और जलाता है। अंधे कानून के अधीन होकर हेमचन्द्र को घर लौट जाना पड़ा. परन्तु वेष तो मुनिका ही रखा ।
वेष उतरवाने के अनेक प्रयत्न किये गये । मी का रुदन, पत्नीका विलाप, ससुर की धमकी, स्वजनों का समझाना-बुझाना, स्नेहियों का स्नेह सब व्यर्थ गया तब पुनः सरकार के पास पहुँचे। अबकी हेमचन्द्रको न्यायालय में जाना पड़ा । वहीं उन्होंने वकील नियुक्त नहीं किया । सत्रह वर्ष की उम्र में स्वयं ही अपने वकील बने ।
स्पष्टवक्ता
• "मेरे विरुद्ध आज जो मुकदमा पेश हुआ है उसके विषय में मैं एक जैन साधु के तौर पर नीचे मुताबिक कैफियत पेश करता हूँ
आज मुझ पर दावा किया गया है और उसके द्वारा मुझे संसार में लौटने को मजबूर किया जा रहा है, परन्तु इस तरह मजबूर करना बिल्कुल गैरवाजिब है।
मैंने अपनी शादी के वक्त बार बार चेतावनी दी थी कि मैं संसार में जुड़ना नहीं चाहता, इतना ही नहीं बल्कि जैन साधु बनना चाहता हूँ, और इसलिए दीक्षा लूंगा। मेरी ऐसी स्पष्ट चेतावनी के बावजूद जबरदस्ती मेरी शादी की गई थी। अतएव अब. मेरे दीक्षा-प्रहण से जो परिणाम आएँ उनके लिए मैं : उत्तरदायी नहीं है, परन्तु अबरदस्ती से मेरी शादी करनेवाले ही उत्तरदायी हैं। ...