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आगमधररि
.. फिर भी वीरता के अधिष्ठाता मुनि हेमचन्द्र ने मुख्य राज्याधिकारीको उत्तर दिया- "मैं गृहस्थ बनना नहीं चाहता । मैंने अपनी इच्छा से दीक्षा ली है । मैं उसे आमरण पालना चाहता हूँ। मैंने अपनी इच्छासे जो वस्तु अंगीकार की है वह गलत या बुरी नहीं बल्कि आध्यात्म-युक्त कार्य है। मैं अपनी पत्नी के सन्तोष या भरण पोषण का जिम्मेदार नहीं हूँ न मेरा यह फर्ज ही है, क्यों कि मैंने शादी करने से साफ इनकार किया था । बलपूर्वक मेरी शादी की गई है, अतः मैं जिम्मेदार नहीं हूँ परन्तु बलपूर्वक शादी करवानेवाले जिम्मेदार हैं, मैं ने किसी भावेश, आवेग, उद्वेग या ऐसे किसी अन्य कारण से दीक्षा नहीं ली है, अतः मुझे दीक्षा छोड़ने का कहना न न्यायसंगत है न युक्तियुक्त । इसलिए यह राज्याज्ञा वापस ली जानी चाहिए, और इसीमें न्याय-संगतता है।". . .. . ...
दूसरी राज्याशा मुख्य राज्याधिकारी इस उत्तर से सोच में पड़ गये । कुछ देर तो उन्हें भी लगा कि बात तो अवश्य विचार करने योग्य है । फिर दूसरी भाशा दी
"तुम साधुवेष छोड़ना न चाहा तो कोई बात नहीं, तुम कपडवंज जाकर अपने अभिभावकों के साथ घर में रहो, घर का भोजन करो और साधुवेष कायम रखा।" .. कानून कई बार अन्धा और तर्कहीन होता है। उसे ज्ञान या भान नहीं होता । कानून परिस्थिति को नहीं समझ सकता।