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आगमधरसूरि
प्रयत्न करते और समिति-गुप्ति-धर्मोका एवं दस यतिधर्मोका सुन्दर पालन करते थे। इस तरह विहार करते हुए पेटलाद नगर में पधारे।
अलग अलग स्थान पर अलग अलग गुरुदेवों से संयम प्रहण करने वाले पिता और दो पुत्रोंका देवयोग से आज संयमावस्था में पेटलाद नगर में मिलन हो गया। पूर्वावस्था के अपने पुत्रों का संयम की उत्तम आराधना करते देख कर पिताकी आत्माको बहुत शांति मिली। उन्होंने मुनित्वको प्रकाशमान करनेका आशीर्वाद दिया।
समय कभी नहीं रुकता। वह तो सतत अविरत गतिसे चलता जाता है। उसमें कब क्या होनेवाला है यह तो अनन्तज्ञानी के सिवा कौन जान सकता है।
मुनिराज श्री जीवविजयजी एकाएक दर्द के शिकंजे में आ गये । सुयोग्य एवं निरवध औषधोपचार शुरू किया परन्तु...परन्तु दो वर्ष के अल्प दीक्षा-पर्याय में अल्पजीवी व्याधि में आषाढ़ शुक्ला २ के दिन उनका जीवन-दीप बुझ गया । मुनि जीवविजयजी काल-धर्म को प्राप्त हुए । थोड़े समय में ये महानुभाव साधना कर गये।
___ अध्ययन में संकट गुदड़ी के लाल के समान मुनि आनन्द सागरजी उत्तम शास्त्राध्ययन कर रहे हैं। श्री गुरुदेव ज्ञानी हैं। शिक्षा देने का कार्य भी सुचारु रूप से चल रहा है, फिरभी एक बात की बड़ी भारी कमी थी।
मुनिवर श्री आनन्द सागरजी को व्याकरण सीखने की उत्कंठा . जगी । गुरुदेव सहमत हुए । उस लघु व्याकरण का नाम 'सिद्धान्त-रत्निका' था । परन्तु वह या उसके जैसे दूसरे व्याकरण कहाँ से लाये जाएँ ।