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आगमधर सरि
पूज्य महात्माने नये आगन्तुक की अच्छी तरह पूछताछ करके जाँच कर ली । उनके मनकेा प्रतीति हुई कि यह पात्र उत्तम ही नहींउत्तमोत्तम है । दीक्षा अंगीकार करने के बाद यह शासनका कर्णधार बनेगा । वे महात्मा अपने ज्ञान से नये आगन्तुक की आँखों में ऐसा तेज निहार सके । यह भी देख सके कि बीच बीच में उपसर्ग और उपद्रव भी होंगे ।
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हेमचन्द्र का शुभ दिन और मंगलमय मुहुर्त में चतुर्विध संघ समस्त की सामूहिक उपस्थिति में दीक्षा दी गई । जब धर्म - ध्वज रजेाहरण उसके हाथ में आया तब उसके आनन्दका पार न रहा। कई महीनों से जिस दिन की राह देख रहे थे वह आज आ गया । आज का दिन धन्य था, आज की घड़ी धन्य थी । हेमचंद्रका सोलहवां साल चल रहा था, और विक्रम संवत् १९४६ बीत रहा था ।
संसारी में से साधु बने हुए हेमचंद्र ज्ञान, ध्यान, तप, संयम की आराधना करनेमें बहुत ही तत्पर बने । संयम की मर्यादाओं का पालन करते थे। नवकल्पी विहार कर अहमदाबाद पहुँचे । इस साधुवृन्द का कल्पना भी नहीं थी कि सैंकडों जिनमन्दिरों एवं हजारे। जैन घरों से शोभित क्षेत्र में महा-उपसर्ग आएगा । परन्तु कालबल अद्भुत था । संघ - बल छिन्नभिन्न था। नेताहीन टोली की सी दशा श्रावक संघ की थी । धर्म अन्तिम साँस ले रहा था । त्यागी वर्ग का साथ और आश्रय देने की बात मिट चुकी थी । ऐसी हालत में अनजाने यह मुनिवृन्द राजनगर आ पहुँचा ।
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उपसर्गों का आरम्भ
मुनि हेमचन्द्र अहमदाबाद में अध्ययनादि कर रहे हैं यह खबर कडवंज में पहुँच गई । परिवार के लोग विरह-व्यथा में से जरा स्वस्थ