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- आगमघरसरि
हे चेतन ! तू सावधान हो कर अपना सम्हाल ले, जाग और खड़ा हो जा। : "मेरे पुत्र को पहले संयम की प्राप्ति हो तो अच्छा नहीं तो उसकी माता, पत्नी, सास-ससुर उसे संयम ग्रहण नहीं करने देंगे । असंख्य बिन मालेगे। मैं एक सच्चे पिता के कर्तव्य से च्युत हुआ गिना जाऊँगा । पहले अपने पुत्रको शासन के लिए समर्पित कर दूँ ।" ऐसे विचारों के अन्त में हेमचन्द्रको पास बुलाकर बिठाया और प्रेमपूर्वक सिर पर हाथ रख कर कहा, "बेटा ! तुम मोक्ष-मार्ग के पूर्ण अभिलाषी हो । तुम्हारी मस नस में दीक्षा की भावना थिरक रही है। तुम प्रत्येक श्वास में उसकी इच्छा करते हो। दीक्षा लिए बिना तुम्हें कपडवंज आना पड़ा यह बात तुम्हें हजार बिच्छुओ के डंख से भी ज्यादा ख दे रही है। मैं यह जानता हूँ। मैं तो आज भी यही चाहता हूँ कि तू संयम प्रहण कर । तू अनेक भास्माओं का उद्धारक बनेगा, शासन-स्तंभ बनेगा। .: "मुझ में सामाजिक बन्धनों को तोड़ फेंकने की शक्ति नहीं है, अन्यथा तुम और मैं यही धूमधाम से दीक्षा ग्रहण करते। पांचवें आरे के प्रभाव से आज तो ऐसी मान्यता है कि 'दीक्षा लेना कायर का काम है।' ऐसे विचारों के प्रचार के कारण अच्छे व्यक्ति दीक्षा ग्रहण करते हिचकते हैं।
"प्राचीन काल में महाराजा, राजकुमार, राजरानियां तथा राजकुमारियाँ दीक्षा ग्रहण करते थे । क्या वे कायर थे ! परन्तु आज के युग का दुर्भाग्य है कि असमर्थ हो से साधु बनता है ऐसी लोगों की धारणा हो गई है।