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आगमधरसूरि
तुम मुझसे कहीं अधिक समर्थ बनोगे । मैं तुम्हें अन्तिम आशीर्वाद देता हूँ कि "तुम शीघ्र ही अपनी आत्माका कल्याण करनेवाले बनो ।" . . _ महात्मा नीतिविजयजी महाराजने मणिलालको दीक्षा दी। वे मणिलाल मिटकर पूज्य मणिविजय जी महाराज बने । रागी मिटकर त्यागी बने ।
दीक्षा की प्रतिक्षा - हेमचन्द्र के हृदयको यह बात सता रही थी कि घटादार वटवृक्ष के समान बड़े भाई तो माया के बंधन तोड़ कर चले गये और मैं नहीं जा सका । 'भवितव्यते ! तेरा क्या इरादा है ?' हेमचंद्र अधीरता से चिल्ला उठा, 'मैं संयम अवश्य लूंगा, अवश्य लूंगा।'
हेमचंद्रको अपनी दादी के साथ राजनगर से पवित्र धाम भोयणी तीर्थ की यात्रा करने का अवसर मिला । वहाँ जाकर उसने कुमार संयमी श्री मल्लिनाथ भगवान् के पास प्रतिज्ञा की-“हे भगवान् ! मैं दीक्षा लूगा । दीक्षा लिए बिना नहीं रहूँगा। हर हालत में उस पथ पर जाने की मुझे तू शक्ति दे ! भंते ! मुझे त्याग के पथ पर ले चल, मायाके बंधन काट फेकने में सहायता दे । मेरे विघ्न हरा भगवान् ! भगवान् ! अग्निज्वाला के समान संसार में मुझे नहीं जलना है । मैं किसी न किसी तरह संयम अवश्य लूंगा।"
. गाँव की गोदमें . .... बड़े भाईने दीक्षा के मार्ग पर प्रयाण किया, छोटा भाई पुनः कपडपंज आया। उनका आना न आना एक सा था। घरमें भी उनका व्यवहार उदासी महात्मा का सा था। सुख-वैभवकी उनके घर में कोई