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आगमघरसूति
हेमचन्द्र ने कहा "ज्येष्ठ भ्राता! भाप जिस राह ना रहे हैं उस राह पर जाने का तो मैंने कभीका निर्णय कर लिया है। मैं कितने ही दिनो से उस दिन की प्रतीक्षा कर रहा हूँ जब मुझे संयम मिले; पंख होते तो मैं ज्ञानी गुरू के चरणों में बैठ कर संयमकी साधना कर रहा होता, परन्तु पंख न होनेसे विवश था। जो आपकी भावना है वही मेरी भी है । मैं संयमी बनूँगा, आत्मानन्दी बनूँगा।" ... इस तरहका अपूर्व भावनामय वार्तालाप करते हुए दोनों भाई अहमदाबाद आ पहुँचे ।
श्री गुरुचरण में तपगच्छ-गगन-दिनमणि श्री बुद्धिविजयजी महाराजश्री के शिष्यरत्न अपूर्व संयमघर महामुनिश्री नीतिविजयजी महाराज अहमदाबाद की भूमि को पावन कर रहे थे। दोनों भाई उनके चरणकमलों के वंदनार्थ गये । दोनों भाईयोंने गुरुचरणमें स्वस्तिक किये, ऊपर एक नारियल रखा । ....... महात्मा श्री नीतिविजयजी महाराज समझ गये कि 'ये पुण्यात्मा संयम लेने आये मालूम होते हैं, परन्तु नारियल दोनों के वीच एक ही रखा है, अतः फिलहाल एक को संयम मिळेगा। दूसरे को प्रहण करने में देर लगेगी। उसे कठिनाइयों का सामना भी करना पड़ेगा।' मुनीश्वरने यह भविष्यवाणी मनमें ही दबा रखी। .. गुरुदेवने पूछा-“भाग्यशालिया ! किस शुभ संकल्प से यहाँ आए हो।"
- "गुरुदेव ! हम आपके चरणों में दीक्षा लेने की इच्छा ले कर पाये हैं। कृपा कर हमें तारिये। आप हमारे तारणहार गुरु बनिये । हम आपके शिष्य बनने की इच्छा से ही आये है।" दोनों भाइयोंने ऐसा