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आगमघरमरि
इस बात की खबर चतुर हेमचन्द्रको लग गई। हेमचन्द्र अधिक वैरागी और अधिक उत्साही था। उसे त्यागमार्ग के प्रति अधिक आकर्षण था । बड़े भाई के अहमदाबाद जाने का समय आया तब हेमचन्द्रने पिताजी से कहा, "पिताजी, मुझे भी भाई साहब के साथ अहमदाबाद जाना है, आज्ञा दीजिये।" . ... पिताजी का मनोमन्थन
पिताजी को तुरन्त समझ में आ गया। मन में सोचा, यह भी त्याग के पथ पर ही प्रयाण करना चाहता है। मन विचारमें पड़ गया, क्या करूँ! दोनों पुत्रों का त्याग के पथ पर जाने ! - मोह-विह्वल मन विचलित हो गया। उसमें से धीमी आवाज उठी-दानों पुत्रों को बाबा बना देना है। मूर्ख ! सावधान ! ऐसे राजकुमार-से सुपुत्र किसी किसी को ही मिलते हैं। अरे, ऐसे पुत्रों की प्राप्ति के लिए कई लोग हजारों मनौतिया मनाते हैं। तुम्हें ऐसे सपूत मिले हैं, और तुम उन्हें साधुओंकी जमात को सौप रहे हो! तुम अभागे हों अभागे।' परन्तु अन्तरात्माने मधुर स्वरमें कहा, 'हे पुण्यात्मा मगनलाल ! तुम जगत में भाग्यशाली हो । तुम्हारे यहाँ जन्मे हुए ये दोनों पुत्र तुम्हारे कुल को आलोकित करेंगे। शासन-ज्योति प्रकटाएँगे। तुम मोहाधीन मत बनो। आत्मज्योति प्रकट करनेवाले पुत्ररत्नों के तुम पिता हो। उन्हे त्याग मार्ग पर जाने में सहायता दो। तुम धन्य हो जाओगे। तुम्हारे पुत्र गुण-गण के स्वामी बनेंगे।
हेमचन्द्र के पिताने गहरे मनोमन्थन के अन्तमें निर्णय किया'दोनों पुत्र संयम-मार्ग भले अपनाएँ । पुत्र तो हर भव में मिलेंगे । सूभर और कुत्ते के भव में बहुत से पुत्र होते हैं, उससे क्या लाभ।