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आगधरम
चलेगी। यह तो कोई निराला ही मालूम होता है। इसे छेड़कर कही मैं ही मुसीबत में फंस जाऊँगा। यह सोचकर वह धन्यवाद देकर चला गया।
दर्द और उसका दफन विद्याभ्यास एवं बालक्रीडा में समय बीत रहा था। इस अरसे में एक बार हेमचंद्र के गले पर एक मूजी किस्मका फाड़ा उभर आया। यह बालक कई बातो में जैसा आमका पका था, जैसा यह फेोड़ा भी जिही निकला । मा बापने बहुत इलाज करवाया पर यह न मिटा । मिट जाय तो वह जिद्दी फेोड़ा ही क्या ! बहुत दर्द होता था, परन्तु हेमचन्द्र सहनशीलताका अगाध समुद्र था। यह असह्य वेदना उसके ज्ञानाभ्यास तथा खेलकूदमें विघ्न डालना चाहती थी, परन्तु सहनशीलता उसे विघ्न डालने से रोकती थी।
वृन्दावन का कन्हैया एक दिन अब मचल गया और उसने बलराम को हैरान कर दिया तो यशोदाने उसे एक थप्पड मार कर और धमकाकर शान्त किया था वैसे ही यह हेमू भी एक दिन नटखटपन पर उतर आया और अपने बड़े भाई-जो उम्र में दो वर्ष बड़े थे-मणिभाई को हैरान कर छोड़ा, तब यमुनामाताने उसके गाल पर थप्पड़ मारने के लिए हाथ उठाया। चपल हेमूने मुँह घुमा लिया परन्तु ममतामयी माता का हाथ गले के उक्त फाड़े पर पड़ा। फोड़ा फूट गया और दर्द बहुत बढ़ गया परन्तु इस पराक्रमी हेमूकी आखो से आँसू का एक बूंद भी न निकला । फाड़े में से मवाद वगैरह निकाल कर बाह्य व्रणशामक दवाई लगाई गई । माताके ममतामय हाथ ने दर्द को दफन कर दिया-पह थप्पड़ चमत्कारमय थप्पड़ सिद्ध हुआ।