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आगमधरस्त्रि
श्रेष्ठिवर्य श्री मगनभाई की सुपत्नीका नाम यमुना था। त्रिवेणी संगम की यमुना नदी अनेकों को शांति और तृप्ति देती है उसी तरह यह यमुना अनेक सन्तप्त तथा अतृप्त हृदयों को शांति एवं तृप्ति प्रदान करनेवाली भार्य सन्नारी थी।
__ जैसे गोलकुंडा की खानका कोहिनूर हीरा दुनियाको देने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था वैसे इस रत्न-प्रसविनी यमुना को महाज्यातिधर पुत्ररत्न की भेट जिनशासन को देने का महासौभाग्य प्राप्त हुआ था। कोहिनूर हीरा जहाँ भी गया वहाँ चिंता और भय का वाबावरण छा गया, उस के हेतु अनेक मनुष्यों का खून बहा और असंख्य दुष्कृत्य हुए जबकि इस पुत्ररत्नने अहिंसा-अमृतका निर्झर प्रसारित किया जिसमें भनेकानेक आस्माओ के भयंकर पाप नष्ट हो गये। इस पुत्ररत्न ने मज्ञान के अन्धकार में ज्ञानका प्रकाश किया। कोहिनूर भयदाता बना, यह पुत्ररत्न अभयदाता बना।
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जन्म
भगवान महावीर के निर्वाण को २४.१ वर्ष हुए थे। आषाढको मेष-घटाएँ भाकाशमें गर्जना कर रही थीं मानों जगतका पुत्ररत्न की बधाई देती है।
[बिजलिया प्रकाश पुंज बिखेर रही थी मानो पुत्ररत्न के जन्मकी खुधीमें दीपमाला जलाती हो। सूर्य और चन्द्र भी आकाश में एक स्थल पर आ मिले थे। वे विचार मग्न थे और धीरे धीरे बात कर रहे थे कि एक ज्योतिर्षर का जन्म होने ही वाला है; यह बालक कहीं हमारे प्रकाशको निस्तेज तो नहीं कर देगा ! शीतल, मन्द माहादक