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गाथा संख्या विषय
५९४३
साध्वी पात्ररहित कब ?
सूत्र १८
आर्यिका के लिए व्युत्सृष्टकाय होने की अकल्पनीयता अपवाद में उसकी कल्पनीयता । सूत्र १९, २०
आतापना के तीन प्रकार तथा उनका अर्थ । निपन्न आतापना के तीन प्रकार तथा उसका
वर्णन |
निषण्ण आतापना तथा जघन्य आतापना के तीन-तीन प्रकार ।
मध्यम और जघन्य आतापना के तीन-तीन प्रकार |
निपन आतापना उत्कृष्ट क्यों ? उसका कारण । नौ प्रकार की आतापनाओं में से आर्यिकाओं के लिए कौन सी अनुज्ञात ?
५९५१,५९५२ आर्या का आतापना कहां लेनी चाहिए ? अविधि मैं दोष
५९४४
५९४५
५९४६
५९४७
५९४८
५९४९
५९५०
सूत्र २१-२३ ५९५३,५९५४ स्थानायत, प्रतिमास्थित आदि पदों की व्याख्या । उसकी पांच निषधाएं आर्याओं के लिए उनका निषेध |
ऊर्ध्वस्थान के स्थानविशेष में स्थित आर्याओं को होने वाली हानियां ।
आर्याओं के लिए कौन से आसन कल्पनीय तथा कौन से अकल्पनीय ?
अभिग्रहरूप तप कर्म निर्जरा के लिए, फिर साध्वियों को प्रतिषेध क्यों ? शिष्य की जिज्ञासा ।
आचार्य का समाधान ।
कायोत्सर्ग के दो प्रकार तथा आर्यिकाओं के लिए कौन सा कायोत्सर्ग प्रतिषिद्ध ?
कौन सी आर्या मुनियों के लिए प्रशंसनीय नहीं होती ?
५९५५
५९५६
५९५७
५९५८
५९५९
५९६०,५९६१ कौन सी आर्यिकाएं शुद्ध ?
५९६२
५९६३
५९६४
केवली स्त्री भी गच्छवास में रहती है तो संयती के गच्छवास में रहने में क्या आपत्ति ?
स्त्रीवेद के प्रज्वलित होने का कारण ।
गीतार्थ अमीतार्थ के लिए व्युत्सृष्टकायिक पद
कारण- अकारण में कल्पनीय ।
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गाथा संख्या विषय
आकुंचण पट्टादिपदं
सूत्र २४, २५
ब्रह्मचर्य की रक्षा के लिए निर्ग्रन्थियों के लिए पट्ट आदि की अकल्पनीयता तथा निर्ग्रन्थों के लिए कल्पनीयता ।
५९६६, ५९६७ पर्यस्तिकापट्ट को धारण करने पर साध्वी को लगने वाले दोष तथा उससे संबद्ध यतनाएं और अपवाद ।
पर्यस्तिकापट्ट की बनावट, प्रमाण और ग्रहण का प्रयोजन |
५९६५
५९६८
५९६९
५९७०
५९७१
५९७२
५९७३
५९७४
५९७५
बृहत्कल्पभाष्यम्
५९८१
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सूत्र २६-२९
पीढ फलक पर बैठने से आर्थिकाओं को लगने वाले दोष अपवाद में स्थविरा साध्वी के लिए उस पर बैठने की कल्पनीयता ।
मुनियों द्वारा कब स्थविरा साध्वी के लिए सविषाण पीढ फलक लाने की विधि । श्रमणों के लिए पीढ फलक की आज्ञा । फलक को ग्रहण करने के कारण।
सूत्र ३०,३१
साध्वी के लिए वृत्त सहित अलामुपात्र रखने की अकल्पनीयता उससे लगने वाले बोध तथा उसके रखने की अपवाद विधि । सूत्र ३२,३३
निर्ग्रन्थियों के लिए दण्डयुक्त पात्रकेसरिका रखने की अनाज्ञा । उससे लगने वाला प्रायश्चित्त, अप्रतिलेखना और विराधना आदि दोष ।
सूत्र ३६
५९७६ संयत संयती के लिए मोक सूत्र का प्रतिपादन ५९७७-५९८० संयत संयती का तथा संयती संयत का मोक
प्रस्रवण को निशाकल्प मानकर रात्री में आचमन करने से प्रायश्चित्तविधि, आज्ञाभंग आदि दोष तथा अपवादविधि |
मोक आचमन से शैक्ष के मन में होने वाला अन्यथा भाव।
सूत्र ३४,३५
निर्ग्रन्थियों को सनालपात्र और दारुदंडक को कारणवश ग्रहण करने की विधि ।
पासवण पदं
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