Book Title: Agam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Bhashyam Part 02
Author(s): Dulahrajmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 368
________________ ६९६ बृहत्कल्पभाष्यम् वैद्य पुत्र ने यह सब देखा, उसने सोचा- बस ! यही है वैद्य का रहस्य । वह राजा के पास चला गया। राजा ने पूछा- क्या विद्या पूर्ण हो गई। वह बोला- हां ! राजा ने सोचा- अतिशीघ्र ही इसने आयुर्वेद सीख ली। लगता है यह बहुत मेधावी है। राजा ने उसका सम्मान किया। एक दिन महारानी के गले में गांठ हो गई। वैद्य को बुलाया गया। उसने रानी को देखा और पूछा कहां चर रही थी ? कोई बोला - पुरोहड़ में। राजा ने सोचा- यह कोई वैद्य का रहस्य होगा। वैद्य ने रानी के गले को साड़ी से आवेष्टित कर खींचा। रानी मर गई। बाद में राजा ने अन्य वैद्यों को बुलवाया और पूछा, उन्होंने कहा- 'शास्त्रों में ऐसी कोई विद्या नहीं है।' राजा ने यथार्थ जानकर उसे दंडित किया। ३४. वाचक और उत्सारकल्पिक वाचक एक वाचक आचार्य एक नगर में आए। उनके साथ अनेक शिष्य थे। नगरवासी अत्यंत प्रमुदित हुए। आचार्य के प्रवचनों से सारा नगर आनन्द विभोर हो उठा। अन्ययूथिक निर्ग्रथ प्रवचन की प्रशंसा सुनकर बौखला गए । उन्होंने आचार्य के साथ वादगोष्ठी का आयोजन किया। बाद में आचार्य की जीत हुई और अब नगर में उनकी कीर्ति अत्यधिकरूप से फैली। अन्ययूथिकों के मन में ईर्ष्या और जलन उत्पन्न हो गई। वे अवसर की प्रतीक्षा में थे। वाचक आचार्य वहां से विहार कर अन्यत्र चले गए। गा. ३७६ वृ. पृ. १९१ एक बार उसी नगर में उत्सारकल्पिक वाचक आए। श्रावक प्रमुदित हुए। अन्ययूथिकों ने उनके साथ वादगोष्ठी स्थापित करने से पूर्व एक व्यक्ति को समागत वाचक के ज्ञान की परीक्षा करने भेजा। उसने वहां जाकर बाचक से पूछा- भंते! परमाणु पुद्गल के कितनी इन्द्रियां होती हैं? वाचक ने सोचा- परमाणु पुद्गल एक समय जितने काल में लोक के चरमान्त तक पहुंच जाता है। तो निश्चित ही वह पांच इन्द्रियों वाला होना चाहिए। उसने तत्काल कहा- परमाणु पुद्गल के पांच इन्द्रियां होती हैं। परीक्षा के लिए आगत उस व्यक्ति ने जान लिया कि ये वाचक ज्ञानशून्य हैं। अन्ययूथिकों ने वादगोष्ठी का समायोजन किया । अन्ययूथिकों द्वारा पूछे गए प्रश्नों का वह उत्तर न दे सका। पग-पग पर उसका पराभव हुआ और अन्ययूथिक विजयघोष करते हुए वाचक का तिरस्कार कर चले गए। निग्रंथ प्रवचन की अवहेलना हुई। श्रावकों के सिर लज्जा से झुक गए। Jain Education International ३५. घंटा सियार एक इक्षुवाटक था। उसमें सियार प्रवेश कर इक्षु खा जाते थे। स्वामी ने वाटक के चारों ओर खाई खुदवा दी। एक बार एक सियार उस खाई में गिर पड़ा। स्वामी ने उसे पकड़ लिया। उसकी पूंछ और कान काट दिये, शरीर पर चीते की खाल मढ़कर गले में घंटा बांध दिया। वह भयभीत होकर वहां से दौड़ा अन्य सियारों ने उसे देखा और विचित्र प्राणी समझकर वे सब भयभीत होकर दौड़ने लगे। उन्हें भागते देख तरक्षों ने कारण पूछा। सियारों ने कहा कोई अपूर्व प्राणी विचित्र शब्द करता हुआ आ रहा है तरक्ष (लकड़बग्घे भी भयाक्रान्त होकर दौड़ने लगे। चीतों ने तरक्षों से पूछा। उनका उत्तर सुन वे भी भयभीत होकर भागने लगे । रास्ते में एक सिंह मिला। उसने चीतों से पलायन का कारण पूछा। चीतों ने सारी बात कही। सिंह ने सोचा- मैं खोज करूंगा। उसने ध्यान से उसे देखा और जान लिया कि यह सियार है उसे पकड़ा और मार डाला । सब आश्वस्त हो गए। For Private & Personal Use Only गा. ७१७ वृ. पृ. २१७ गा. ७२१-७२३ वृ. पृ. २२१ www.jainelibrary.org

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