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कथा परिशिष्ट
गये। शाखापारक के पास एक कुत्ता था। ब्राह्मणों ने कहा-कुत्ता साथ क्यों लाए? वह बोला-मैं इसको किसी कारण से लाया हूं। सार्थ के साथ उन्होंने अटवी में प्रवेश किया। अटवी के मध्य में सार्थ छूट गया। लोग इधरउधर बिखर गए। वे छहों प्राणी एक साथ एक दिशा की ओर चल पड़े। दो दिन तक उनको न पीने का पानी मिला, न खाने की रोटी। तीसरे दिन उन्होंने मृत कलेवर युक्त कुत्सित पानी देखा। उस समय शाखापारक बोला-यहां पर हम इस कुत्ते को मारकर अपनी क्षुधा को शान्त कर लें और यह रुधिर युक्त पानी पीकर प्यास मिटा लें। अन्यथा मर जायेंगे।
यह वेद रहस्य है इसमें दोष नहीं है। क्योंकि हमारे सामने ऐसी ही परिस्थिति है। चार ब्राह्मणों में से एक परिणामक, दो अपरिणामक और चौथा अतिपरिणामक था। जो परिणामक था उसने इस बात को स्वीकार कर लिया। जो अपरिणामक थे उनमें से एक बोला-मैं ऐसे शब्द सुनना ही नहीं चाहता। भले भूख-प्यास से मर जाऊं। वह मर गया। दूसरा अपरिणामक बोला-इतने दुःख से कैसे मरा जाए? इससे तो खाना ही अच्छा है। जो अतिपरिणामक था, वह बोला-मांस खाना वेद विहित है तो दो दिन भूखे क्यों रखा? पहले क्यों नहीं बताया? वह गाय आदि को मारकर खाने लगा। साथ-साथ मद्य भी पीने लगा।
जंगल पार होने पर शाखापारक ने कहा-हमें प्रायश्चित्त वहन करना है। जो परिणामक था, वह गांव में वेद विद्वान के पास गया। एकान्त में प्रायश्चित्त लेकर शुद्ध हो गया। अपरिणामक ने अनेक ब्राह्मणों को एकत्रित किया। सारी स्थिति उन्हें बताई। सबने उसको धिक्कारा और जाति से बहिष्कृत कर दिया। अतिपरिणामक मांसमद्य का सेवन करने से चंडाल हो गया।
गा. १०१२-१०१६ वृ. पृ. ३१८
४९. कौतूहली रानी
महादेवी को ककड़ी अतिप्रिय थी। ककड़ी लाने के लिए एक व्यक्ति की नियुक्ति कर दी। वह प्रतिदिन ककड़ी लाकर महादेवी को दे देता। एक दिन उसने अंगादान संस्थान वाली ककड़ी लेकर आया और रानी को दे दी।
रानी के उस ककड़ी को देखा और कौतुक पैदा हुआ कि इसका स्पर्श कैसा है। ऐसा सोच उससे प्रतिसेवना की। ककड़ी में कांटा था। वह उसके लग गया और विस्तार हो गया। वैद्य के पास गई। वैद्य अनुभवी था। उसने यथास्थिति जानकर चीरा दिया, कांटा निकाला और वह स्वस्थ हो गई।
गा. १०५३ वृ. पृ. १२९
५०. सोमिल
अवन्ति में सोमिल ब्राह्मण रहता था। परिवार में आठ पुत्र, उनकी पुत्र-वधुएं और ब्राह्मण की पत्नी थी। भरापूरा परिवार था। एक दिन ब्राह्मण के आंखों की रोशनी कमजोर होने लगी। पुत्रों ने कहा-पिताजी! आपके आंखों की चिकित्सा करवा लें। वह बोला बुढ़ापे में चिकित्सा करवा कर क्या करूंगा? तुम सबकी १६ आंखें, तुम्हारी बहुओं की १६ आंखें और दो आंखें तुम्हारी मां की है। कुल मिलाकर ३४ आंखें है। ये सब मेरी ही आंखें है। ऐसा चिंतन कर सोमिल ब्राह्मण ने आंखों की चिकित्सा नहीं करवायी। धीरे-धीरे आंख की रोशनी चली गई। ___एक दिन घर में आग लग गई। सभी अपनी जान बचाकर घर से निकल गए। किसी को वृद्ध की याद नहीं आई। आखिर वृद्ध चिल्लाता हुआ आग में भस्म हो गया।
गा. ११५३ वृ. पृ. ३५९
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