Book Title: Agam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Bhashyam Part 02
Author(s): Dulahrajmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 378
________________ ७०६ - बृहत्कल्पभाष्यम् ६४. पुत्र दृष्टान्त पिता के दो पुत्र थे। एक कृश शरीर वाला था, दूसरा स्थूल शरीर वाला। एक दिन दोनों पुत्रों को लेकर अन्य गांव में जा रहा था। मार्ग में एक बहुवेग वाली नदी थी। दोनों को एक साथ लेकर नदी तैरना कठिन था। पिता ने अपने सामर्थ्य के अनुसार कशकाय पुत्र को लेकर नदी को पार किया। दूसरे की उपेक्षा की। वैसे ही साधु के लिए छह काय विराधना का प्रसंग हो तो पृथ्वी आदि की उपेक्षा कर त्रसकाय की रक्षा करे। गा. १६६६-१६६७ वृ. पृ. ४९१ ६५. धावनकल्प दृष्टान्त एक साधु वृक्ष के पास गया। चारों दिशाओं की ओर दृष्टिपात किया। कोई दिखाई नहीं दिया। उसने वृक्षमूल में आहार करना प्रारंभ कर दिया। वृक्ष के ऊपर एक ब्राह्मण बैठा था। उसने साधु को आहार करते देखा। कुछ देर बाद वह नीचे उतरा और गांव की ओर जाने लगा। साधु ने उसे देख लिया। तब साधु जल्दी-जल्दी आहार कर पात्र को अच्छी तरह से चाट लिया और स्वाध्याय करना प्रारंभ कर दिया। इधर ब्राह्मण ने गांव में जाकर लोगों से कहा कि कोई साधु वृक्षमूल में आहार कर रहा था। लोग आए और पूछा-महाराज आहार हो गया? साधु बोला-क्या गोचरी का समय हो गया ? आपके घरों में रसोई बन गई। लोगों ने ब्राह्मण की ओर देखा, वह बोला-मैंने आहार करते हुए देखा है। लोगों ने साधु का पात्र देखा तो पात्र बिल्कुल साफ था। तब लोगों ने ब्राह्मण से कहा-तुम पापी हो। गा. १७१४ वृ. पृ. ५०६ ६६. मेंढ़ा दृष्टान्त एक सेठ था। उसके पास एक गाय, गाय का बछड़ा और मेंढ़ा था। वह मेंदे को मेहमान के निमित्त से खूब अच्छा पोषक आहार देता। उसे प्रतिदिन स्नान कराता, शरीर पर हल्दी आदि का लेप करता। सेठ के बच्चे उसके साथ क्रीड़ा करते। कुछ दिन बाद वह स्थूल हो गया। बछड़ा प्रतिदिन यह देखता और मन ही मन सोचता कि मेंढ़े का इतना लालन-पालन क्यों हो रहा है। मेरा ध्यान क्यों नहीं रखते। इन विचारों से उसका मन उदास हो गया। उसने स्तन-पान करना छोड़ दिया। उसकी मां ने इसका कारण पूछा। उसने कहा-मां! इस मेंढे का पुत्रवत् लालन-पालन होता है, अच्छा भोजन दिया जाता है। मैं मंदभागी हूं, मेरी कोई परवाह नहीं करता। सूखी घास चरता हूं और वह भी कभी पूरी नहीं मिलती। उसने कहा-वत्स! तू नहीं जानता। मेंढ़ा जो कुछ खा रहा है, वह आतुर लक्षण है। कुछ दिन व्यतीत हुए। सेठ के घर मेहमान आए। बछड़े के देखते-देखते मोटे-ताजे मेंढ़े के गले पर छुरी चली और उसका मांस पकाकर मेहमानों को परोसा गया। बछड़ा भयभीत हो गया। उसने खाना पीना छोड़ दिया। मां ने कारण पूछा-बछड़े ने कहा-मां! मेंढ़े को मार दिया, उसकी जीभ और आंखें बाहर निकल गयी। क्या मैं भी ऐसे ही मारा जाऊंगा? मां ने कहा नहीं वत्स! तुम्हें ऐसा फल नहीं भोगना पड़ेगा। गा. १८१२ वृ. पृ. ५३३ ६७. गर्वोन्मत्त ब्राह्मण एक महर्द्धिक राजा कार्तिक पूर्णिमा के दिन ब्राह्मणों को दान देता था। एक चौदह विद्यास्थानों में पारगामी ब्राह्मण को उसकी पत्नी ने कहा-तुम राजा के पास जाओ। ब्राह्मण ने कहा-मैं राजा के निमंत्रण के बिना दान लेने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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