Book Title: Agam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Bhashyam Part 02
Author(s): Dulahrajmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 396
________________ ७२४ = बृहत्कल्पभाष्यम् १२१. कालमूढ़ ग्वाला वाला प्रतिदिन प्रातः गायों को चराने के लिए जंगल में जाता और सायंकाल के समय गांव में गायों को लेकर आ जाता। एक दिन गरिष्ठ भोजन कर सो गया। जब उसकी नींद खुली तब आकाश सघन बादलों से आच्छादित था। दिन को रात समझ कर वह गायों को लेकर गांव में आया। गायों को अपने-अपने स्थान पर छोड़कर वेश्या के पास चला गया। लोगों ने उसका यह व्यवहार देखा तो उसे बुरा-भला कहा। उसे अपनी गलती का अहसास हुआ। गा. ५२१६ वृ. पृ. १३८६ १२२. गणनामूढ़ उष्ट्रपालक एक ऊंटपालक के पास २१ ऊंट थे। उसने एक ऊंट पर बैठे-बैठे ही ऊंटों की गणना शुरू कर दी। उसकी गणना में ऊंट बीस ही हो रहे थे। जिस पर बैठा उसे गिनना भूल गया। बार-बार गिनने पर भी २१वां ऊंट मिल नहीं रहा था। वह परेशान हो गया। उसने सोचा एक ऊंट खो गया। इतने में उसने एक व्यक्ति को आते हुए देखा। वह निकट पहुंच गया तब उसने कहा-तुमने कहीं एक ऊंट देखा है ? मेरा ऊंट खो गया। उसने पूछा-तुम्हारे पास कितने ऊंट थे। वह बोला-२१। उसने गणना की तो २१ ऊंट पूरे हो गए। उसने कहा-जिस पर तुम बैठे हो वह २१वां ऊंट है। गा. ५२१७वृ. पृ. १३८६ १२३. सादृश्यमूढ़ सेनापति चोरों का सेनापति अपने अनेक साथियों के साथ गांव में चोरी करने गया। वहां वह व्यक्तियों को मारने लगा। गांव का प्रधान वहां पहुंचा और चोर सेनापति के साथ युद्ध करने लगा। युद्ध में चोर सेनापति की मौत हो गई। प्रधान और चोर सेनापति की सूरत मिलती-जुलती (एक-समान) थी। ग्रामीणों ने सोचा-प्रधान मर गया। उन्होंने उसका दाह-संस्कार कर दिया। चोरों ने प्रधान को अपना सेनापति समझकर उसे अपनी पल्ली में ले आए। उसने चोरों से कहा-मैं सेनापति नहीं हूं पर वे माने नहीं। एक दिन मौका देखकर वह वहां से भाग कर गांव में आया। ग्रामीणों ने उसे देखा और भयभीत हो गए। उन्होंने सोचा यह मरकर भूत बन गया। साहस जुटाकर किसी ने पूछा-तुम मर चुके हो, अब भूत हो या पिशाच ? यहां क्यों आए हो? उसने कहा-मैं न भूत हूं न पिशाच। मैं मरा नहीं। युद्ध से पूर्व और वर्तमान की सारी स्थिति बताने पर गांव वालों को विश्वास हुआ कि यह प्रधान ही है। गा. ५२१७ वृ. पृ. १३८६ १२४. वेदमूढ़ राजा आनन्दपुर नगर में राजा जितारि का शासन था। उसके एक रानी थी। रानी ने पुत्र को जन्म दिया। पुत्र का नाम अनंग रखा। वह जन्म से ही रोने लगा। उसका रोना बंद ही नहीं होता। अनेक उपाय करने पर भी वह चुप ही नहीं हुआ। एक दिन रानी सहज भाव से पुत्र को चुप करने के लिए उसे जानु और ऊरु के बीच बैठाकर खिलाने लगी। अचानक दोनों के गुह्य स्थान का स्पर्श हो गया। स्पर्श होते ही उसका रोना बंद हो गया। जब-जब वह रोता तब-तब रानी वैसा ही करती और वह रोना बंद कर देता। राजकुमार बड़ा होने लगा। इस व्यवहार के प्रति आसक्ति बढ़ने लगी। राजा की मृत्यु हो गई। अनंग का राज्याभिषेक किया। वह उम्र से छोटा होने के कारण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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