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बृहत्कल्पभाष्यम्
१४९. लेखक दृष्टान्त | एक बार राजा ने अपने सभासदों से पूछा-कौन व्यक्ति शीघ्र कार्य करने में समर्थ है और कौन कम समय में अधिक दूरी तय कर सकता है? लेखक ने कहा-अमुक व्यक्ति पवन वेग से जा सकता है और कार्य अतिशीघ्र पूर्ण कर सकता है। राजा ने उस व्यक्ति को बुलाया और किसी कार्य के लिए नियोजित किया। वह अतिशीघ्र कार्य पूर्ण कर राजा के पास पहुंच गया। राजा ने प्रसन्न होकर उसकी धाविक रूप में नियुक्ति की। लेकिन उसके मन के प्रतिकूल नियुक्ति होने के कारण वह रुष्ट हो गया। अनेक व्यक्तियों से पूछताछ की कि राजा को मेरा नाम किसने बताया? तब किसी ने कहा-अमुक लेखक ने। नाम सुनते ही आवेश में आकर उसने लेखक को मार डाला।
गा. ६३२८ वृ. पृ. १६७१
१५०. औषिध एक राजा के एक पुत्र था। वह राजा की इकलौती संतान थी। राजकुमार के प्रति सबका स्नेह था। एक बार राजा ने सोचा-मैं अपने पुत्र को कुछ ऐसे रसायनों का सेवन करवाऊं जिससे वह कभी रोग-ग्रस्त न हो। सदा स्वस्थ रहे।
राजा ने सुप्रसिद्ध तीन वैद्यों को बुलवाया। वे आये। राजा ने उनसे कहा-मेरे पुत्र की ऐसी चिकित्सा करो जिससे वह सदा निरामय रहे। पहले वैद्य ने कहा-मेरी औषधि से यदि कोई रोगी है तो वह स्वस्थ हो जायेगा
और रोग नहीं है तो यह मर जायेगा। दूसरे वैद्य ने कहा मेरी औषधि के द्वारा यदि कोई रोगी है तो वह स्वस्थ हो जायेगा और यदि रोगी नहीं है तो उसके कुछ असर नहीं होगा। तीसरे वैद्य ने कहा-राजन्! मेरी औषधि ऐसी है यदि रोग है तो ठीक हो जायेगा और रोग नहीं है तब लावण्य युक्त, रूप सम्पन्न और अन्यगुणों से युक्त हो जायेगा। राजा ने तीसरे वैद्य को राजकुमार की चिकित्सा के लिए नियुक्त किया। वैसे ही प्रतिक्रमण से अतिचार की विशुद्धि हो जाती है। यदि अतिचार नहीं लगा हो तो चारित्र विशुद्ध होता है और नये कर्मों का आगमन नहीं होता।
गा. ६४२८-६४३० वृ. पृ. १६९३
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