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कथा परिशिष्ट
११८. शिष्य कपिल
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आचार्य के कपिल नाम का शिष्य था । वह शय्यातर की पुत्री के साथ यदा कदा क्रीड़ा करता था। धीरे-धीरे मुनि कपिल का मन उस कन्या में आसक्त हो गया। वह उससे छेड़खानी करने लगा। एक दिन वह गायों को दुहने के लिए बाड़े में गई। इधर कपिल भी उसी समय भिक्षा के लिए गया उसको अकेली देख उसकी इच्छा के विरुद्ध ही उसे अपनी भार्या बना दिया। उसने अपने पिता से सारी बात कह दी। पिता ने आचार्य से निवेदन किया। एक दिन अत्यधिक आसक्ति के कारण कपिल ने उसका योनि भेद कर लिया। वह बेहोश हो गई। जब उसका पिता घर पर आया और पुत्री की स्थिति देखी तो उसने कपिल का मूल से ही लिंगच्छेद कर लिया। वह नपुंसक बन गया। संयोगवश वह वेश्या के पास पहुंच गया। वहां उसके स्त्रीवेद का उदय हो गया। उसने एक ही भव में तीनों वेदों का अनुभव किया।
११९. बौद्ध भिक्षु
एक दिन एक बौद्ध भिक्षु नाव में आरूढ़ होकर दूसरे तट पर जा रहा था। उसने वहां निर्वस्त्र औरत को देखा। वह सहजभाव से अपना कार्य कर रही थी। उस औरत को देखने से ही बौद्ध भिक्षु के वेदोदय हो गया। वह अपने पर नियंत्रण नहीं कर सका। सबके सामने ही औरत के साथ भोग करने लगा। लोगों ने उसे इतना मारा कि वह निवीर्य हो गया।
गा. ५१५४ वृ. पृ. १३७१
१२०. द्रव्यमूढ़ वणिक्
एक घटिकावोद्र नाम का वणिक् धन कमाने के लिए प्रदेश गया। पीछे उसकी पत्नी अकेली थी। वह किसी पुरुष के प्रति आसक्त हो गई वह पुरुष उसके घर आने लगा। एक दिन उसने कहा तुम्हारा मेरे प्रति सच्चा राग है या नहीं इसका क्या प्रमाण ? तुम्हारे पति के आने पर तुम मुझे छोड़ भी सकती हो। अतः एकान्त और विश्वास के बिना भोग संभव नहीं हो सकता। पहले तुम ऐसा उपाय करो जिससे तुम और मैं सदा साथ रह सके। अन्य कोई अपने बीच में न आए। इसके लिए एक उपाय किया। एक शव को घर में लाकर रख दिया और घर के आग लगा दी। दोनों अन्यत्र चले गए।
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गा. ५१६५ वृ. पृ. १३७४
कुछ दिन बाद वणिक् नगर में आया तो देखा कि घर जलकर भस्म हो गया। राख में एक व्यक्ति की अस्थियां पड़ी है। उसने सोचा कि मेरी पत्नी जलकर मर गई है उसका पत्नी के प्रति अनुराग था। लोक मान्यतानुसार पत्नी की गति अच्छी हो ऐसा सोचकर अस्थियां लेकर गंगा नदी की ओर चल पड़ा। संयोग से गंगातट पर उसकी पत्नी ने उसे देखा और पहचान गई। उससे परिचय पूछा-उसने अपनी राम कथा कह दी और कहा घर पर आग लग जाने से मेरी पत्नी जल कर मर गई मैं उसकी अस्थियां गंगा में बहाने आया हूं। जिससे उसका कल्याण हो सके। ऐसा कहते कहते रोने लगा। उसका व्यवहार देख वह सोचने लगी इनका मेरे प्रति कितना अनुराग है, प्रेम है ? मैं अभागी अन्य के साथ बंध गई। उसका प्रेम पुनः जागृत हो गया। उसने कहा-मैं ही तुम्हारी पत्नी हूं, मैं मरी नहीं। वह बोला- मेरी पत्नी तुम्हारे सदृश ही थी पर तुम कैसे हो? मैं उसकी अस्थियां लाया हूं। उसने विश्वास पैदा करने के लिए अतीत की अनेक गुप्त बातें बता दी अपनी गुप्त बातें सुनकर उसे विश्वास हो गया कि यही मेरी पत्नी है।
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गा. ५२९५ वृ. पृ. १३८६
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