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चौथा उद्देशक परिष्ठापन कर आचमन-हाथ-पैर आदि धोए, जिससे यथाजात उपकरण शव के पास न रखने पर, देवलोक से प्रवचन का उड्डाह न हो।
वह अपना लिंग न देखकर मिथ्यात्व को प्राप्त हो सकता है। ५५३१.जत्तो दिसाए गामो, तत्तो सीसं तु होइ कायव्वं। यहां उज्जयिनी के भिक्षु का दृष्टांत है। राजा के पास पुरुष
उद्वेतरक्खणट्ठा, अमंगलं लोगगरिहा य॥ वध की शिकायत पहुंचने पर वह अवसर आने पर वैर का जिस दिशा में गांव हो उस ओर शव का सिर करना । निर्यातन (बदला) करता है, अनेक लोगों का वध करता है। चाहिए। यह इसलिए कि कारणवश शव उठ जाए तो ५५३८.उट्ठाणाई दोसा, हवंति तत्थेव काउसग्गम्मि। प्रतिश्रय के प्रति न आए, इसकी रक्षा करने के लिए। गांव आगम्मुवस्सयं गुरुसमीव अविहीय उस्सग्गो।। की ओर शव के पैर करने से अमंगल होता है तथा लोग गर्दा स्थंडिल भूमी में कायोत्सर्ग करने पर शवोत्थान आदि करते हैं।
दोष होते हैं। अतः उपाश्रय में आकर गुरु के समीप अविधि५५३२.कुसमुट्ठिएण एक्केणं, अव्वोच्छिण्णाए तत्थ धाराए। परिष्ठापन का कायोत्सर्ग करना चाहिए।
संथार संथरिज्जा, सव्वत्थ समो य कायव्वो॥ ५५३९.जो जहियं सो तत्तो, णियत्तइ पयाहिणं न कायव्वं । जब स्थंडिल का प्रमार्जन कर लिया जाता है तब एक
उट्ठाणादी दोसा, विराहणा बाल-वुड्डाणं ।। मुनि कुश की एक मुष्टि से अव्यवच्छिन्न धारा से संस्तारक शव का परिष्ठापन कर जो जहां हो वहीं से वह निवर्तन बिछाए, वह सर्वत्र सम हो।
कर दे। प्रदक्षिणा न करे। प्रदक्षिणा करने पर उत्थान आदि ५५३३.विसमा जति होज्ज तणा, उवरिं मज्झे तहेव हेट्ठा य। दोष तथा बाल-वृद्धों की विराधना होती है।
मरणं गेलन्नं वा, तिण्हं पि उ णिहिसे तत्थ॥ ५५४०.जइ पुण अणीणिओ वा, यदि तृण ऊपर, नीचे और मध्य में विषम हों तो तीन
णीणिज्जंतो विविंचिओ वा वि। मुनियों का मरण या ग्लानत्व होने का निर्देश करे।
उद्वेज्ज समाइट्ठो, ५५३४.उवरिं आयरियाणं, मज्झे वसभाण हेट्टि भिक्खूणं।
तत्थ इमा मग्गणा होति॥ तिण्हं पि रक्खणट्ठा, सव्वत्थ समा य कायव्वा॥ कालगत मुनि अनिष्काशित है या निष्काश्यमान है या यदि तृण ऊपर में विषम हों तो आचार्यों का, मध्य में परिष्ठापित है? वह शव व्यन्तरसमाविष्ट होकर उठ जाए तो विषम हों तो वृषभों का और नीचे विषम हों तो मुनियों का उसकी यह मार्गणा है। मरण या ग्लानत्व होता है। इन तीनों की रक्षा के लिए सर्वत्र ५५४१.वसहि निवेसण साही, गाममज्झे य गामदारे य। तृणों को सम करना चाहिए।
___ अंतर उज्जाणंतर, णिसीहिया उद्विते वोच्छं।। ५५३५.जत्थ य नत्थि तिणाई, चुण्णेहिं तत्थ केसरहिं वा। शव वसति में, निवेशन (मकान) में, गली में, गांव के
कायव्वोऽत्थ ककारो, हेतु तकारं च बंधेज्जा॥ मध्य में, गांव के द्वार पर, गांव और उद्यान के बीच में, जहां तृणों की प्राप्ति न हो वहां चूर्ण से अथवा नागकेशर उद्यान में, उद्यान और नैषेधिकी के मध्य में, नैषेधिकी-शव से अविच्छिन्न धारा से 'ककार' करे और उसके नीचे तकार परिष्ठापन भूमी में-उत्थित होने पर जो विधि करनी होती है, बांधे अर्थात् 'क्त' करे।
वह मैं कहूंगा। ५५३६.चिंधट्ठा उवगरणं, दोसा तु भवे अचिंधकरणम्मि। ५५४२.उवस्सय निवेसण साही, गामद्धे दारे गामो मोत्तव्यो।
मिच्छत्त सो व राया, कुणति गामाण वहकरणं॥ मंडल कंड हेसे, णिसीहियाए य रज्जं तु॥ शव का परिष्ठापन कर उसके चिह्नस्वरूप यथाजात शव यदि वसति में उठता है तो उपाश्रय को, निवेशन में उपकरण उसके पास रखे। यथाजात उपकरण-रजोहरण, उठता हो तो निवेशन को, गली में हो तो गली को, गांव के मुखपोतिका, चोलपट्टक। चिह्रस्वरूप ये उपकरण स्थापित न मध्य हो तो ग्रामार्द्ध को, ग्रामद्वार में हो तो गांव को, गांव करने पर चतुर्गुरु का प्रायश्चित्त तथा आज्ञाभंग आदि दोष और उद्यान के बीच में हो तो विषयमंडल को, उद्यान में हो होते हैं। कालगत मुनि मिथ्यात्व को प्राप्त हो सकता है। राजा तो कंड-देशखंड को, उद्यान और नैषेधिकी के मध्य हो तो यह सोचकर कि इस पुरुष का वध आसपास के गांव वालों देश को और नैषेधिकी में हो तो राज्य को छोड़ देना चाहिए। ने किया है, वह गांवों का वध करा सकता है।
शव का परिष्ठापन कर गीतार्थ मुनि एक मुहूर्त शव की ५५३७.उवगरणमहाजाते, अकरणे उज्जेणिभिक्खुदिटुंतो। प्रतीक्षा करते हैं कि वह उठ न जाए। वे वहीं एकान्त में खड़े
लिंगं अपेच्छमाणो, काले वइरं तु पाडेत्ति॥ रहते हैं।
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