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कथा परिशिष्ट
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१०. कोंकणक देश का बालक कोंकणक देश में एक बालक था। उसके मां की मृत्यु हो गई। पिता ने बालक के कारण दूसरी शादी नहीं की। बालक के कारण कोई लड़की उससे शादी करना नहीं चाहती थी। एक दिन पिता-पुत्र दोनों काष्ठ लाने जंगल में गए। पिता ने सोचा-मुझे पुत्र के कारण कोई योग्य स्त्री नहीं मिल रही है। तो मुझे इसे मार देना चाहिए। यह सोच पिता ने बाण को दूर फेंका और पुत्र से कहा-'बाण लाओ।' वह दौड़ा। पिता ने पीछे से बाण फेंका और वह घायल हो गया। रोता हुआ बोला-मैं बाण से घायल हो गया। इतने में दूसरा बाण फेंका और वह मर गया।
गा. १७२ वृ. पृ. ५५
११. नेवला एक गांव में एक लुटेरा रहता था। उसकी पत्नी गर्भवती हुई। उसके घर में मादा नेवला थी। संयोग से लुटेरे की पत्नी ने पुत्र को जन्म दिया और उसी दिन मादा नेवले ने प्रसव किया। लुटेरे की पत्नी ने सोचा कि यह नेवला मेरे पुत्र के मनोरंजन के लिए ठीक रहेगा। वह उसे दूध पिलाती, खाद्य पदार्थ भी देती। एक दिन वह बच्चे को मञ्चिका पर सुलाकर स्वयं धान्य कूटने के लिए बाहर गई। तभी एक सांप आया और मंचिका पर सोए हुए बालक को डस दिया। उसी समय बालक मर गया। नेवले ने सांप को मंचिका से उतरते हुए देखा तो उसने सांप के टुकड़े-टुकड़े कर डाले। रक्त से लिप्स मुंह से लुटेरे की पत्नी के पास जाकर चरणों में लुटने लगा। उसने रक्त लिप्त मुंह देखा तो सोचा इसने मेरे पुत्र को मार दिया। तब आवेश में मूसल से उस पर प्रहार किया और वह भी मर गया। वह भागती हुई घर में गई और देखा बच्चा मरा पड़ा है। पास में सांप के टुकड़े-टुकड़े पड़े हैं। सच्चाई को समझकर वह पश्चात्ताप करने लगी।
गा. १७२ वृ. पृ. ५६
१२. कमलामेला द्वारिका में बलदेव का पुत्र सागरचन्द्र था। वह अत्यन्त रूपवान् था। सबके लिए इष्ट था। उसी नगरी के राजा की कन्या कमलामेला बहुत सुन्दर थी। उसका वाग्दान महाराज उग्रसेन के पोते धनदेव के साथ हुआ। एक दिन नारद सागरचन्द्र के पास आए। सागर ने उसका स्वागत किया और आसन प्रदान कर पूछा-'भगवन् ! कहीं आपने कुछ आश्चर्य देखा? नारद बोले-हां देखा है। 'कहां और कैसा आश्चर्य देखा'-सागर ने पूछा। नारद बोले-यहीं द्वारिका नगरी में कमलामेला कन्या एक आश्चर्य है? सागर ने पूछा क्या उसका वाग्दान हो चुका है? हां, नारद ने कहा। किसके साथ ? नारद ने बताया-उग्रसेन के पौत्र धनदेव के साथ। सागर बोला-क्या मेरा
और उसका संबंध हो सकता है? वे बोले-मैं नहीं जानता। ऐसा कहकर नारद ऋषि चले गए। सागर नारद का कथन सुनकर खिन्न हो गया। वह न शांति से बैठ सकता था और न सो सकता था। अब वह एक फलक पर कमलामेला का काल्पनिक चित्र बनाकर उसके नाम की रटन लगाने लगा।
इधर नारद कमलामेला के पास पहुंचा। उसने भी पूछा-'भंते! क्या आपने कोई नया आश्चर्य देखा?' नारद बोले-हां, दो आश्चर्य देखे हैं। रूप में बलदेवपुत्र सागरचन्द्र और विरूपता में उग्रसेन पौत्र धनदेव। यह सुन वह सागरचन्द्र के प्रति अनुरक्त हो गई और धनदेव के प्रति विरक्त हो गई। उसने नारद से पूछा-क्या सागरचन्द्र मेरा पति हो सकता है ? नारद ने उसे आश्वासन दिया कि मैं तुम्हारे साथ उसका संयोग कराऊंगा। वहां से नारद चलकर सागरचन्द्र के पास आए और कहा कमलामेला तुम्हें चाहती है। तुम्हारे प्रति अनुरक्त है।
सागरचन्द्र विक्षिप्त हो गया। तब उसकी माता तथा अन्यकुमार खिन्न हो गए। तभी शांब आया। उसने देखा सागरचन्द्र विलाप कर रहा है। तब शांब ने उसके पीछे जाकर उसकी दोनों आंखें अपनी हथेलियों से ढक दी।
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