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बृहत्कल्पभाष्यम्
एक स्त्री का पुत्र बीमार हुआ। वह वैद्य के पास गई। औषधी लाई और यह सोचकर कि पुत्र जल्दी स्वस्थ हो जाए अतः उसने अधिक मात्रा में पुत्र को औषधी दे दी। वह स्वस्थ नहीं हुआ अपितु मर गया।
गा. २८९ वृ. पृ. ८७
२२. अभय एक बार भगवान् राजगृह नगर में समवसृत हुए। वहां एक विद्याधर भगवान को वंदना करने आया। वह वंदना कर लौटने लगा तब विद्या के कुछ अक्षर भूल गया। जैसे ही वह ऊपर उठने का प्रयत्न करता वह नीचे आ जाता। तब अभय को लगा कि विद्याधर ऊपर उठने वाली विद्या के कुछ अक्षर भूल रहा है। अभय ने उसकी इस स्थिति को देखा। उसके पास गया और पूछा क्या हुआ? उसने कहा-मैं विद्या के कुछ अक्षर भूल रहा हूं इसलिए ऊपर नहीं उठ सकता। अभय ने कहा तुम मुझे एक पद बता दो मैं तुम्हें पूरी विद्या बता सकता हूं। उसने एक पद सुनाया, तब पदानुसारिणी लब्धिसम्पन्न अभय ने उसे पूरा पद्य बता दिया। वह अपने स्थान पर चला गया।
गा. २९१ वृ. पृ. ८८
२३. अशोक और कोणिक
पाटलीपुत्र के राजा अशोक का एक पुत्र कुणाल था। उसे बचपन में ही अवन्ति का राज्य दे दिया गया। अशोक से निवेदन किया कि कुमार अध्ययन के योग्य हो गया है। राजा ने पत्र लिखा-कुमारं अधीयताम्। राजा के पास कुणाल की विमाता बैठी थी। उसने राजा से पत्र मांगा और अपने चातुर्य से शलाका के द्वारा अञ्जन से अकार पर अनुस्वार कर दिया। अधीयताम् की जगह अंधीयताम् हो गया। पुनः राजा को पत्र दे दिया। राजा ने पत्र को देखा नहीं। पत्रवाहक के साथ पत्र प्रेषित कर दिया। जब वह वहां पहुंचा तो कुमार ने कहा-लाओ, पत्र में क्या लिखा है ? कुमार ने स्वयं पत्र पढ़ा। पत्र पढ़ते ही कुमार ने चिंतन किया-मैं मौर्यवंश का हूं। इसमें जनमा अप्रतिहत आज्ञा वाला होता है, मैं अप्रतिहत आज्ञा वाला हूं। क्या मैं पिता की आज्ञा का अतिक्रमण करूंगा? नहीं, उसने तत्काल तप्तशलाका ली और आंखों में आंज ली। वह अंधा हो गया। अशोक को ज्ञात हुआ तो वह बहुत दुःखी हुआ। उसने अवन्ति का राज्य कुमार को दे दिया तथा कुणाल को अन्य गांव दे दिया।
समय व्यतीत हुआ। कुणाल की पत्नी गर्भवती हुई। उसने पुत्र को जन्म दिया। कुणाल गन्धर्वगान में अति निपुण था। एक बार अशोक की नगरी में मधुर गीत गाता हुआ घूम रहा था। उसके मधुर गीत सुनकर अशोक ने गीत सुनने के लिए उसे बुलवाया वह वहां आया और परदे के पीछे रहकर गीत गाने लगा। राजा गीत सुनकर बहुत आकृष्ट हुआ। राजा ने कहा-मांगों क्या चाहते हो? कुणाल बोला-एक काकिणी। राजा ने कहा बस इतना ही। तुम्हारा परिचय क्या है? वह बोला-मैं चन्द्रगुप्त का प्रपौत्र बिन्दुसार का पौत्र और अशोक का पुत्र हूं। राजा ने तत्काल परदा हटवाया और कुणाल को गले लगा लिया। आंखों से अश्रुधारा बह चली।
अशोक ने कहा-तुम क्या चाहते हो? कुणाल बोला-मैं एक काकिणी की याचना करता हूं। उसी वक्त अमात्य बोला-राजन्! राजपुत्र के लिए राज्य ही काकिणी है। राजा ने कहा-तुम देख नहीं सकते हो, राज्य का क्या करोगे? कुणाल ने निवेदन किया-मेरे अभी पुत्र जन्मा है उसका नाम संप्रति कर दिया। अशोक ने उसे राज्य दे दिया।
गा. २९२-२९४ वृ. पृ. ८९
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