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चौथा उद्देशक
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५२१९.राया य खंतियाए, वणि महिलाए कुला कुटुंबिम्मि। समुद्र यात्रा में गया। समुद्र के मध्य प्रवहण टूट गया। वणिक्
दीवे य पंचसेले, अंधलग सुवण्णकारे य॥ समुद्र में मर गया। वणिक् पत्नी एक फलक के सहारे एक राजा की स्वमाता में अनुरक्ति-यह वेदमूढ़ का दृष्टांत है। द्वीप में गई। पुत्र का प्रसव किया। पुत्र बड़ा हुआ। वह उसके वणिक् द्वारा अपनी भार्या को न पहचान पाना द्रव्यमूढ़, साथ भोग भोगने लगी। उसे व्युद्ग्राहित कर दिया। सेनापति और महत्तर-दोनों कुटुम्बिओं के कुल सादृश्यमूढ़, कालान्तर में अन्य पोतवणिक् वहां आए। उसे समझाया। द्वीपजात पुरुष, पंचशैल, अंधलक और स्वर्णकार-ये चारों ऐसा व्यक्ति अप्रज्ञापनीय होता है। व्युद्ग्राहणामूढ़ के दृष्टांत हैं। इनका विस्तार आगे की ५२२४.पुब्बिं वुग्गाहिया केई, णरा पंडियमाणिणो। गाथाओं में।
णिच्छंति कारणं किंची, दीवजाते जहा नरे॥ ५२२०.बालस्स अच्छिरोगे, सागारिय देवि संफुसे तुसिणी। पहले व्युद्ग्राहित पंडितमानी लोग कुछ भी कारण सुनना
उभय चियत्तऽभिसेगे, ण ठाति वुत्तो वि मंतीहिं॥ नहीं चाहते जैसे द्वीप में उत्पन्न मनुष्य। ५२२१.छोढूणऽणाहमडयं, झामित्तु घरं पतिम्मि उ पउत्थे। ५२२५.चंपा अणंगसेणो, पंचऽच्छर थेर णयण दुम वलए।
धुत्त हरणुज्झ पति अट्ठि गंग कहिते य सद्दहणा॥ विहपास णयण सावग, इंगिणिमरणे य उववातो॥ ५२२२.सेणावतिस्स सरिसो,
चंपा नगरी में अनंगसेन नाम का स्वर्णकार रहता था। वह वणितो गामिल्लतो णिओ पल्लिं। पंचशैल द्वीप वास्तव्य अप्सराओं से व्युद्ग्राहित। स्थविर णाहं ति रणपिसाई,
द्वारा वहां ले जाया गया। द्रुम-वटवृक्ष। स्थविर का वलय में घरे वि दड्डो त्ति णेच्छंति॥ मरण। भारण्डपक्षियों द्वारा ले जाया जाना। श्रावक द्वारा बालक राजकुमार अनंग अक्षिरोग से पीड़ित था। वह इंगिनीमरण स्वीकार। पंचशैलद्वीप में उपपात। निरंतर रोता था। एक बार रानी ने उसकी जननेन्द्रिय का ५२२६.अंधलगभत्त पत्थिव, स्पर्श किया और उसने रोना बंद कर दिया। दोनों रानी और
किमिच्छ सेज्जऽण्ण धुत्त वंचणता। कुमार के लिए विषय सेवन प्रीतिकर था। वह बालक मां के अंधलभत्तो देसो, साथ प्रतिसेवना करने लगा। मंत्रियों द्वारा कहने पर भी वह
पव्वयसंघाडणा हरणा॥ उपरत नहीं हुआ।
कोई पार्थिव अंधभक्त था। वह दूसरा जो कुछ चाहता पति के प्रस्थित होने पर पत्नी ने घर को जलाकर, उसमें उसको शय्या अन्न आदि का दान करता था। एक धूर्त ने एक अनाथ व्यक्ति के शव को निक्षिप्त कर दिया। एक धूर्त उसको ठगने की बुद्धि से कहा-एक अंधलभक्त देश है। व्यक्ति ने उसका अपहरण कर गंगातट पर चला गया। पति मैं वहां तुमको ले जाऊंगा। यह कहकर एक पर्वत पर घर आया। जले हुए घर को देखा। सोचा, पत्नी जलकर मर उनको एकत्रित किया। परस्पर एक-दूसरे का हाथ पकड़ाकर गई है। उसने उस दग्ध अनाथ व्यक्ति की हड्डियों को पत्नी _वहां उनको घुमाया। फिर वह उनके धन का हरण कर की हड्डियां मान उन्हें एकत्रित कर गंगा में प्रवाहित करने ले भाग गया। गया। पत्नी ने सेठ को पहचान लिया। पूरी बात बताने पर ५२२७.लोभेण मोरगाणं, भच्चग! छेज्जेज्ज मा हु ते कन्ना। सेठ को विश्वास।
छादेमि णं तंबेणं, जति पत्तियसे ण लोगस्स॥ सेनापति के सदृश गांव का महत्तर। दोनों में संग्राम। चोर एक स्वर्णकार ने एक गरीब आदमी के कानों में असली ने सेनापति को मार डाला। चोरों ने महत्तर को चोर सेनापति स्वर्ण के कुंडल देखे। लोभाविष्ट हो वह उससे बोलामानकर पल्ली में ले गए। महत्तर ने कहा-मैं चोर सेनापति भागिनेय! कुंडलों के लोभ से कोई तुम्हारे कान न काट ले। नहीं हूं। चोरों ने सोचा-यह रणपिशाचकी है। महत्तर घर यदि तुम लोगों पर विश्वास न करो तो मैं इन कुंडलों को गया। घर वालों ने भी वह 'मर गया' यह सोचकर उसे तांबे-पीतल से आच्छादित कर देता हूं। स्वीकार नहीं किया।
५२२८.जो इत्थं भूतत्थो, तमहं जाणे कलायमामो य। ५२२३.पोतविवत्ती आवण्णसत्त फलएण गाहिया दीवं। वुग्गाहितो न जाणति, हितएहिं हितं पि भण्णंतो॥
सुतजम्म वड्डि भोगा, बुग्गाहण णाववणियाऽऽया। यहां जो यथार्थ है उसको मैं तथा मेरा कलाद-स्वर्णकारएक पोतवणिक् अपनी गर्भिणी पत्नी को साथ लेकर हम दोनों जानते हैं। किन्तु यह व्यक्ति जो स्वर्णकार से १-३. पूरे कथानक के लिए देखें कथा परिशिष्ट, नं. १२५-१२७।
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