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चौथा उद्देशक
राजा इसी प्रकार षड्भाग प्राप्त करते हैं। हमारे आचार्य साधु-साध्वी का संरक्षण करते हुए उनके पुण्य-पाप का आधा-आधा विभाग लेते हैं। इसलिए वे दोनों सुकुमालिका का संरक्षण करते थे ।
शशक-मशक यादवकुमार थे। उन्होंने तुरुमिणी नगरी में उपद्रवकारी तरुणों को हत-विहत किया, मथित और विप्रारब्ध किया - खर, परुष वचनों से विप्रतारित किया। इसलिए प्रभूत लोग विरोध में हो गए। शशक-मशक को भक्तपान मिलना कठिन हो गया।
तब सुकुमालिका ने भाइयों की अनुकंपा के वशीभूत होकर भक्त - प्रत्याख्यान अनशन कर लिया। वह मरणसमुद्घात से आहत हो गई लगता है यह कालगत हो गई, यह सोचकर एक भाई ने उसके भांड उठाए और दूसरे ने सुकुमालिका को उठाया। जाते हुए उसको पुरुषस्पर्श का अनुभव हुआ। रात में ठंडी हवा से वह सचेतन हुई । एक सार्थवाह पुत्र ने उसे देखा। दोनों एक दूसरे में अनुरक्त हो गए। वह उसकी भार्या के रूप हो गई। एक बार भाईयों ने गोचरी के लिए घूमते हुए उसे देखा । वह पुनः प्रव्रजित हो गई। ५२६०. एसेव गमो नियमा, निग्गंथीणं पि होति नायव्वो ।
तासिं कुल पव्वज्जा, भत्तपरिण्णा य भातुम्मि ॥ निर्ग्रन्थ का आलिंगन करने वाली निर्ग्रथी के लिए नियमतः यही विधान है। किसी निर्ग्रन्थी का कुल-भाई प्रव्रजित हुआ। उसने भी कालक्रम से भक्तपरिज्ञा ग्रहण कर ली।
५२६१. विउलकुले पव्वइते, कप्पट्ठग किढियकालकरणं च । जोव्वण तरुणी पेल्लण, भगिणी सारक्खणा वीसुं ॥ ५२६२. सो चेव य पडियरणे,
गमतो जुवतिजण वारण परिण्णा । कालगतो त्ति समोहतो,
उज्झण गणिया पुरिसवेसी ॥ एक नगर में एक विपुल कुल से दो सगी बहनों ने प्रव्रज्या ग्रहण की। कालान्तर में पूरा कुल प्रक्षीण हो गया । एक बालक बचा। एक बार दोनों आर्यिकाएं अपने परिवार को दर्शन देने वहां आईं। उन्होंने माता आदि समस्त कुटुम्ब के कालकरण के समाचार सुने। तब उन्होंने अपने बालक भाई को प्रव्रज्या देकर गुरु को सौंपा। वह यौवन को प्राप्त हुआ । वह अत्यन्त रूपवान् और आकर्षक था । तरुण युवतियों द्वारा वह सताया जाने लगा। तब गुरु की आज्ञा से दोनों भगिनी आर्यिकाओं ने एक पृथक् उपाश्रय में भाई मुनि को ठहरा कर स्वयं उनकी रक्षा करने लगीं।
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प्रतिचरण (रक्षण) में सुकुमालिकावत् गम जानना चाहिए। युवतिजन का वारण करने में भगिनीद्वय का कष्ट देखकर मुनि भाई ने भक्तपरिज्ञा अनशन कर दिया। उसको समवहत और कालगत जानकर उसका परिष्ठापन कर दिया। उस समय स्त्रीस्पर्श का अनुभव हुआ । पुनः चैतन्य प्राप्त कर लिया। यह देखकर एक पुरुषद्वेषिणी गणिका ने उसे अपने पास रख लिया। वह उसका पति हो गया। कालान्तर में दोनों भगिनी आर्यिकाएं वहां आईं और भाई को पहचान कर पुनः उसे प्रव्रजित कर दिया।
कालातिक्कंत-भोयण-पदं
नो कप्पs निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पढमाए पोरिसीए पडिग्गाहित्ता पच्छिमं पोरिसिं उवाइणावेत्तए । से य आहच्च उवाइणाविए सिया, तं नो अप्पणा भुंजेज्जा, नो अण्णेसिं अणुप्पदेज्जा, एगंते बहुफासु थंडिले पडिलेहित्ता पमज्जित्ता परिट्ठवेयव्वे सिया । तं अप्पणा भुंजमाणे असिं वा दलमाणे आवज्जइ चाउम्मासियं परिहारट्ठाणं उग्घाइयं ॥
(सूत्र १२)
खेत्तातिवंत-भोयण पदं
नो कप्पइ निम्गंथाण वा निग्गंथीण वा असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा परं अद्धजोयणमेराए उवाइणावित्तए । से य आहच्च उवाइणाविए सिया, तं नो अप्पणा भुंजेज्जा, नो अण्णेसिं अणुप्पदेज्जा, एगंते बहुफासुर थंडिले पडिलेहित्ता पमज्जित्ता परिवेयव्वे सिया । तं अप्पणा भुंजमाणे अण्णेसिं वा दलमाणे आवज्जइ चाउम्मासिय परिहारट्ठाणं उग्घाइयं ॥
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(सूत्र १३)
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