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________________ ४० गाथा संख्या विषय ५९४३ साध्वी पात्ररहित कब ? सूत्र १८ आर्यिका के लिए व्युत्सृष्टकाय होने की अकल्पनीयता अपवाद में उसकी कल्पनीयता । सूत्र १९, २० आतापना के तीन प्रकार तथा उनका अर्थ । निपन्न आतापना के तीन प्रकार तथा उसका वर्णन | निषण्ण आतापना तथा जघन्य आतापना के तीन-तीन प्रकार । मध्यम और जघन्य आतापना के तीन-तीन प्रकार | निपन आतापना उत्कृष्ट क्यों ? उसका कारण । नौ प्रकार की आतापनाओं में से आर्यिकाओं के लिए कौन सी अनुज्ञात ? ५९५१,५९५२ आर्या का आतापना कहां लेनी चाहिए ? अविधि मैं दोष ५९४४ ५९४५ ५९४६ ५९४७ ५९४८ ५९४९ ५९५० सूत्र २१-२३ ५९५३,५९५४ स्थानायत, प्रतिमास्थित आदि पदों की व्याख्या । उसकी पांच निषधाएं आर्याओं के लिए उनका निषेध | ऊर्ध्वस्थान के स्थानविशेष में स्थित आर्याओं को होने वाली हानियां । आर्याओं के लिए कौन से आसन कल्पनीय तथा कौन से अकल्पनीय ? अभिग्रहरूप तप कर्म निर्जरा के लिए, फिर साध्वियों को प्रतिषेध क्यों ? शिष्य की जिज्ञासा । आचार्य का समाधान । कायोत्सर्ग के दो प्रकार तथा आर्यिकाओं के लिए कौन सा कायोत्सर्ग प्रतिषिद्ध ? कौन सी आर्या मुनियों के लिए प्रशंसनीय नहीं होती ? ५९५५ ५९५६ ५९५७ ५९५८ ५९५९ ५९६०,५९६१ कौन सी आर्यिकाएं शुद्ध ? ५९६२ ५९६३ ५९६४ केवली स्त्री भी गच्छवास में रहती है तो संयती के गच्छवास में रहने में क्या आपत्ति ? स्त्रीवेद के प्रज्वलित होने का कारण । गीतार्थ अमीतार्थ के लिए व्युत्सृष्टकायिक पद कारण- अकारण में कल्पनीय । Jain Education International गाथा संख्या विषय आकुंचण पट्टादिपदं सूत्र २४, २५ ब्रह्मचर्य की रक्षा के लिए निर्ग्रन्थियों के लिए पट्ट आदि की अकल्पनीयता तथा निर्ग्रन्थों के लिए कल्पनीयता । ५९६६, ५९६७ पर्यस्तिकापट्ट को धारण करने पर साध्वी को लगने वाले दोष तथा उससे संबद्ध यतनाएं और अपवाद । पर्यस्तिकापट्ट की बनावट, प्रमाण और ग्रहण का प्रयोजन | ५९६५ ५९६८ ५९६९ ५९७० ५९७१ ५९७२ ५९७३ ५९७४ ५९७५ बृहत्कल्पभाष्यम् ५९८१ For Private & Personal Use Only सूत्र २६-२९ पीढ फलक पर बैठने से आर्थिकाओं को लगने वाले दोष अपवाद में स्थविरा साध्वी के लिए उस पर बैठने की कल्पनीयता । मुनियों द्वारा कब स्थविरा साध्वी के लिए सविषाण पीढ फलक लाने की विधि । श्रमणों के लिए पीढ फलक की आज्ञा । फलक को ग्रहण करने के कारण। सूत्र ३०,३१ साध्वी के लिए वृत्त सहित अलामुपात्र रखने की अकल्पनीयता उससे लगने वाले बोध तथा उसके रखने की अपवाद विधि । सूत्र ३२,३३ निर्ग्रन्थियों के लिए दण्डयुक्त पात्रकेसरिका रखने की अनाज्ञा । उससे लगने वाला प्रायश्चित्त, अप्रतिलेखना और विराधना आदि दोष । सूत्र ३६ ५९७६ संयत संयती के लिए मोक सूत्र का प्रतिपादन ५९७७-५९८० संयत संयती का तथा संयती संयत का मोक प्रस्रवण को निशाकल्प मानकर रात्री में आचमन करने से प्रायश्चित्तविधि, आज्ञाभंग आदि दोष तथा अपवादविधि | मोक आचमन से शैक्ष के मन में होने वाला अन्यथा भाव। सूत्र ३४,३५ निर्ग्रन्थियों को सनालपात्र और दारुदंडक को कारणवश ग्रहण करने की विधि । पासवण पदं www.jainelibrary.arg
SR No.002533
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Bhashyam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages474
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bruhatkalpa
File Size13 MB
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