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विषयानुक्रम गाथा संख्या विषय ५९८२ प्रत्यनीक सार्थवाह को आभिचारुका विद्या से
अनुकूल करने की विधि। ५९८३ मोक आचमन से तथा उच्छिष्ट मंत्र द्वारा साधु
को वेदनामुक्त करने का उपाय। ५९८४ निशाकल्प गीतार्थ के लिए आचीर्ण। रात्री में
मोक से आचमन की विधि। द्रव न रखने की
पद्धति और अपवाद विधि। ५९८५ रात्री में शैक्ष द्वारा यतनापूर्वक द्रव रखने की विधि
तथा मलनिरोध से होने वाले दोष। ५८८६-५९८८ परस्पर एक दूसरे का मोक पीने से होने वाले दोष
तथा प्रायश्चित्त। देवी का दृष्टान्त। संयती
का मोक पीने से होने वाले दोष। ५९८९ मोक का आचमन कब और कैसे? ५९९०-५९९६ मुनि को सर्प द्वारा काटे जाने पर स्वपक्ष का मोक
विहित। आपवादिक आदि कारणों में साध्वियों के प्रतिश्रय में जाने की तथा वहां से मोक लाने की विधि। वहां रक्षणीय यतना। परिवासियभोयण पदं
सूत्र ३७ ५९९७ रात्री में मोक पीने की पद्धति तथा शेष आहार का
अनाभोग। ५९९८-६००४ आहार-आनाहार क्या? शिष्य की जिज्ञासा
आचार्य का उत्तर। आहार के चार प्रकार तथा
उनका स्वरूप। ६००५-६०१२ परिवासित आहार तथा अनाहार विषयक दोषों
का वर्णन और अपवादादि।
सूत्र ३८ ६०१३,६०१४ आलेप तथा लोमाहार विषयक सूत्र का
प्रतिपादन। ६०१५-६०१७ व्रण चिकित्सा में आलेपन और म्रक्षण-दोनों में
पौर्वापर्य संबंध है या नहीं? शिष्य की जिज्ञासा
तथा आचार्य द्वारा एकांतमत का खंडन। ६०१८ सूत्र में कथित होने के कारण रात्री में आलेप
रखने से प्रायश्चित्त, आज्ञाभंग दोष आदि तथा
विराधना। ६०१९-६०२४ आलेपन तथा परिवासित रात्री में रखने से लगने
वाले दोष और उनका प्रायश्चित्त।
सूत्र ३९ ६०२५ आलेपन के दो प्रकार तथा व्रण की चिकित्सा
आलेप और म्रक्षण से करने की विधि।
गाथा संख्या विषय ६०२६,६०२७ यदि परिवासित से रक्षण करना नहीं कल्पता तो
क्या उसी दिन आनीत द्रव्य से रक्षण करना कैसे कल्पेगा? शिष्य की जिज्ञासा। आचार्य द्वारा समाधान। द्रव्य से म्रक्षण करने पर प्रायश्चित्त, आज्ञाभंग आदि दोष और विराधना का प्रसंग
आदि। ६०२८,६०२९ अपवादपद में यतनापूर्वक म्रक्षण करने की विधि। ६०३०-६०३२ तद्दिवस आनीत म्रक्षण की भांति परिवासित की
भी कल्पनीयता तथा उससे चिकित्सा की विधि। अहालहुसगववहार-पदं
सूत्र ४० ६०३३ मुनि के परिहारतप के कारणों का निर्देश। ६०३४,६०३५ पारिहारिक तप करने वाले मुनि के लिए वाद का
प्रसंग उपस्थित हो जाने पर उसके द्वारा की जाने
वाली प्रतिसेवनाओं का स्वरूप। ६०३६ पारिहारिक के लिए आचार्य द्वारा परिषद् में
प्रायश्चित्त की प्रस्थापना। ६०३७ पारिहारिक को प्रायश्चित्त देने के अधिकारी
कौन? ६०३८ दूसरों के विश्वास के लिए व्यवहार-प्रस्थापना की
विधि। ६०३९,६०४० व्यवहार के तीन प्रकार तथा तीनों के तीन-तीन
प्रकार। इन व्यवहारों से यथानुपूर्वी प्रायश्चित्तों
का निरूपण। ६०४१
गुरुक व्यवहार पक्ष में प्रायश्चित्त प्रतिपत्ति का
स्वरूप। ६०४२ लघुक व्यवहार पक्ष में तथा लघुस्वक व्यवहार
पक्ष में प्रायश्चित्त प्रतिपत्ति का स्वरूप। ६०४३ गुरु व्यवहार के पूर्ति विषयक तपःप्रतिपत्ति का
निरूपण। ६०४४ तीन प्रकार के लधुक व्यवहार की तथा लघुस्वक
व्यवहार, लघुतरकव्यवहार और यथालघुकव्यवहार की तपःप्रतिपत्ति का निरूपण। परिहारतपप्रायश्चित्त वहन करते मुनि के प्रति यथालघुस्वक व्यवहार की प्रस्थापना करने की विधि।
शुद्धि का स्वरूप। ६०४५,६०४६ शिष्य द्वारा प्रायश्चित्त लेने और आचार्य द्वारा
प्रायश्चित्त देने की विधि।
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