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________________ ४२ बृहत्कल्पभाष्यम् गाथा संख्या विषय पुलागभत्त-पदं सूत्र ४१ ६०४७ व्रतिनी विषयक यश संरक्षणार्थ प्रतिपादन सूत्र। ६०४८ पुलाक के तीन प्रकार तथा आचार्य, प्रवर्तिनी के द्वारा सूत्र न कहने पर, आर्याओं द्वारा स्वीकार न करने पर तथा सुभिक्ष में पुलाक ग्रहण करने पर सभी को प्रायश्चित्त। ६०४९ धान्यपुलाक, गंधपुलाक, रसपुलाक का स्वरूप। ६०५० पुलाक का अर्थ तथा उनकी निस्सारता का कारण। ६०५१-६०५७ तीनों प्रकार के पुलाकों के ग्रहण से लगने वाले दोषों का वर्णन तथा दुर्भिक्ष आदि कारणों में पुलाक भक्त के ग्रहण और खाने के बाद की यतनाएं। ६०५८ अवम आदि स्थानों में मद्य, पलांडु, लहसुन आदि द्रव्यों के ग्रहण का निषेध। पूर्व में गृहीत हो तो उन्हीं का भोजन करने की विधि तथा आतिथ्य के लिए अपवाद। ६०५९ निर्ग्रन्थों के लिए पुलाक संबंधी यतना। छठा उद्देशक अवयण-पदं सूत्र १ ६०६०-६०६२ साध्वी के लिए कारणवश गंध पुलाक पीकर अलीक वचनों के बोलने का निषेध तथा पारिहारिक मुनि के लिए छह वचनों को छोड़कर वाद करने की विधि। ६०६३ अवक्तव्य वचनों के छह प्रकार। ६०६४ वक्ता और वचनीय का स्वरूप। ६०६५ अलीक वचन कहने वाले के भिन्न-भिन्न प्रकार से प्रायश्चित्त की वक्तव्यता। ६०६६-६०८७ अलीक वचन के विविध स्थान। उनका स्वरूप तथा उनसे लगने वाला प्रायश्चित्त। ६०८८,६०८९ हीला, खिंसा, परुष, गृहस्थवचन आदि वचन बोलने वालों को लगने वाला प्रायश्चित्त। ६०९० हीलित वचन के दो आधार तथा उनका स्वरूप। ६०९१-६०९८ खिसितवचन का स्वरूप तथा तविषयक खिंसना करने वाले साधु का दृष्टान्त। ६०९९-६१०१ परुष वचन के दो प्रकार तथा लौकिक परुष गाथा संख्या विषय वचन का स्वरूप तथा उससे संबद्ध व्याध और कौटुम्बिक पुत्रियों का दृष्टान्त। ६१०२-६१०४ लोकोत्तरिकपरुष वचन का स्वरूप। उसकी उत्पत्ति के पांच स्थान। तद्विषयक चंडरुद्र आचार्य का दृष्टान्त। ६१०५-६१०८ लोकोत्तरिक परुष वचन के पांच प्रकार तथा उनसे आने वाले प्रायश्चित्त की विविधता का स्वरूप। ६१०९,६११० आचार्य की भांति उपाध्याय, भिक्षु, स्थविर तथा क्षुल्लक के साथ आलप्त आदि पदों में मौन आदि छह प्रकारों में यथाक्रम एक-एक प्रायश्चित्त की न्यूनता। ६१११ निर्ग्रन्थी वर्ग के पद के पांच प्रकार तथा उनके आश्रित प्रायश्चित्त की चारणिका। ६११२ सामान्य आगाढ़, निष्ठुर और कर्कश वचन बोलने पर तथा परुष वचन बोलकर प्रद्वेष से जो कुछ किया जाए, उनमें आने वाले प्रायश्चित्त की विविधता। ६११३-६१२० निष्ठुर, कर्कश, अगारस्थित और व्यवशमित उदीरणा वचन का स्वरूप तथा तद्विषयक प्रायश्चित्त। ६१२१-६१२८ अलीक आदि छह प्रकार के वचन किस किस के लिए वक्तव्य होते हैं। उनका वर्णन तथा तद्विषयक अपवाद और यतनाएं। कप्पस्स पत्थार-पदं सूत्र २ ६१२९ शोधिदान का अधिकृत सूत्र का निरूपण। ६१३० प्रस्तार का अर्थ। प्रस्तार के चार प्रकार। प्रायश्चित्त के दो भेद। तथा उनके अनेक भेद प्रभेद। ६१३२ मुनि कब और कैसे दोष का स्वयं भागी बन जाता है? ६१३३ प्रस्तार के छह प्रकार। ६१३४-६१४१ प्राणवध विषयक प्रायश्चित्त प्रस्तार और तद्विषयक दर्दुर, शुनक, सर्प, मूषक आदि का दृष्टान्त। ६१४२-६१४८ मृषावाद और अदत्तादान विषयक प्रायश्चित्त प्रस्तार और उनसे संबद्ध क्रमशः संखड़ी और • मोदक का दृष्टान्त। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002533
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Bhashyam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages474
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bruhatkalpa
File Size13 MB
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