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________________ विषयानुक्रम गाथा संख्या विषय ६१४९-६१५२ अविरतिवाद विषयक प्रायश्चित्त प्रस्तार तथा रत्नाधिक के प्रति प्रतिशोध की भावना से अवमरात्निक का व्यवहार। वातद का दृष्टान्त। ६१५३-६१५६ अपुरुषवाद विषयक प्रायश्चित्त प्रस्तार। ६१५७-६१६१ दासवाद विषयक प्रायश्चित्त प्रस्तार। ६१६२ प्रस्तार विषयक अपवाद। कंटकादिनीहरण-पदं सूत्र ३-६ ६१६३ कल्पिक सूत्रों और अकल्पिक सूत्रों का भाजन। ६१६४ सूत्रतः अनुज्ञात का अर्थतः प्रतिषेध क्यों? उसका समाधान। ६१६५ अभ्याख्यान सिद्ध न करने पर उसी को प्रायश्चित्त। ६१६६ श्रमण के पैरों में कांटा लगने अथवा आंख में कणुक गिरने पर श्रमण द्वारा निकालने की विधि। व्यत्यास करने पर प्रायश्चित्त। ६१६७-६१७० निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थी के परस्पर कांटा निकालने तथा आंखों से कणुक निकालने पर होने वाले रागजनित दोष और स्पर्श से भाव संबंध होने की संभावना तथा अजापालक और रोहा परिव्राजिका का दृष्टान्त। ६१७१,६१७२ परस्पर कंटकोद्धरण करवाने पर प्राप्त होने वाला विविध प्रायश्चित्त। ६१७४,६१७५ श्रमण के अभाव में अन्य गृहस्थों से कंटकोहरण की विधि। ६१७६,६१७७ गृहस्थ के अभाव में नालबद्ध-अनालबद्ध स्त्रियों से कंटकोद्धरण की विधि। ६१७८,६१७९ कंटकोद्धरण करने साधुओं का अभाव कब? स्वपक्ष परपक्ष यतना का स्वरूप। ६१८० स्त्री द्वारा कंटकोद्धरण की विधि। ६१८१ साध्वी द्वारा साधु के आंख से तृण अपनयन की विधि। सुभद्रा का उदाहरण। निग्गंथी अवलंबण-पदं सूत्र ७-९ ६१८२ पंकविषयक तथा नौ विषयक सूत्र का प्रतिपादन। दुर्ग के तीन प्रकार तथा उनका स्वरूप। तीनों प्रकार के दुर्गों में निर्ग्रन्थ-निन्थी को निष्कारण अवलंबन देने से प्रायश्चित्त तथा आज्ञाभंग आदि दोष। गाथा संख्या विषय ६१८४ निर्ग्रन्थी को अवलम्बन देने से लगने वाले दोष। ६१८५ विषम के तीन प्रकार। नौका आदि में निष्कारण निर्ग्रन्थी को अवलम्बन देने से दोष। कारण में यतनापूर्वक अवलम्बन देने की विधि। ६१८६ प्रस्खलन, प्रपतन का स्वरूप। ६१८७ निर्ग्रन्थी को दुर्ग या विषम में अवलम्बन देने वाला गीतार्थ तथा स्थविर निर्ग्रन्थ निर्दोष। ६१८८,६१८९ पंक, पनक तथा सेक आदि पदों की व्याख्या। तथा उनका स्वरूप। ६१९०,६१९१ निर्ग्रन्थ द्वारा निर्ग्रन्थी को नौका चढ़ाते समय अथवा जल के भीतर उसे अवलम्बन देने पर होने वाले दोष। अपवाद में यतनाएं। ६१९२ ग्रहण तथा अवलम्बन का अर्थ। उपरोक्त विधि से व्रतिनी द्वारा व्रती को ग्रहण करने या अवलम्बन देने पर मर्यादा का लोप नहीं। ६१९३ बाल, वृद्ध आदि अशक्त व्यक्ति के दुर्ग में जाने पर नालबद्ध-अनालबद्ध साध्वी द्वारा संरक्षण देना विहित। सूत्र १० क्षिप्तचित्त के संबंध सूत्र की व्याख्या। ६१९५-६१९९ क्षिप्तचित्त होने के तीन कारण तथा उनके सोमिल आदि लौकिक उदाहरण। ६२००-६२०५ क्षिप्तचित्त को स्वस्थ करने की विधि। ६२०६-६२०९ हाथी, सिंह, शस्त्र, अग्नि आदि के भय से क्षिसचित्त साध्वी के लिए रक्षणीय यतना। यतना न करने पर प्रायश्चित्त। ६२१०-६२१७ क्षिप्तचित्त साध्वी की यतनापूर्वक संरक्षण के . कारण और विधि। सार-संभाल न करने वाले को प्रायश्चित्त। ६२१८-६२२१ क्षिसचित्त साध्वी की प्रतिचर्या का कालमान। स्वस्थ न होने पर प्रतिचरण की विधि। ६२२२ दैविक तथा धातुक्षोभ विषयक यतनाएं। ६२२३ क्षिसचित्त साध्वी के स्वस्थ होने पर प्रायश्चित्त विषयक तीन आदेश। ६२२४,६२२५ वृद्धि हानि के आधार पर चारित्र विषयक चार भंग। किस किस श्रेणी वाले का चारित्र घटता बढ़ता है, उसका निदर्शन। ६२२६,६२२७ क्षिप्तचित्त साध्वी के कर्मबंध न होने का कारण। ६२२८ कर्म के बंधक कौन ? ६१८३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002533
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Bhashyam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages474
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bruhatkalpa
File Size13 MB
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