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________________ विषयानुक्रम गाथा संख्या विषय ५८३३ उद्गार होने का कारण। ५८३४-५८४५ संखड़ी भोजी साधु के दो प्रकार तथा उनके प्रकारान्तर और स्वरूप। तद्विषयक विविध पदों से संबंधित प्रायश्चित्त और प्रायश्चित्त के प्रस्तार की रचना। ५८४६-५८५४ उद्गार को लक्षित कर परिमित भोजन संबंधी विविध निर्देश। लोही कवल्ली का दृष्टांत। भोजन के प्रमाण विषयक अनादेश। आचार्य द्वारा समाधान। ५८५५ मुंह से निर्गत ससिक्थ द्रव को चबाने से भिक्षु, उपाध्याय आदि को प्राप्त होने वाला नानाविध प्रायश्चित्त। अदृष्ट में लघु, दृष्ट में गुरु। ५८५६-५८६० उद्गार निगलने संबंधी अपवाद और तद्विषयक रत्नवणिक् का दृष्टान्त। आहारविहि-पदं . सूत्र ११ ५८६१ वान्त अनेषणीय ग्रहण की अयुक्तता। ५८६२ प्राण, बीज, रज आदि पदों की व्याख्या। ५८६३,५८६४ वस जीवों के दो प्रकार तथा उनका स्वरूप। ५८६५,५८६६ यतनापूर्वक भक्तपान का ग्रहण। ग्रहण करने पर पात्र में लिए हुए आहार की प्रेक्षा। अन्यथा प्रायश्चित्त तथा आज्ञाभंग आदि दोष। ५८६७ भक्त आदि प्राणियों से संसक्त देश में जाने का संकल्प आदि करने से प्रायश्चित्त का नानात्व। ५८६८-५८७५ अशिव आदि कारणों से संसक्त देश में जाने पर संसजिम द्रव्यों को लेने के उपाय। ५८७६ क्षिप्र का अर्थ और उसका कालमान। ५८७७-५८८० प्राणीसंसक्त ओदन आदि द्रव्यों का परिष्ठापन कहां, कब, कैसे करना चाहिए? तदर्थ विधि। ५८८१-५८८३ संसक्त सक्तू के ग्रहण, प्रत्युपेक्षण, परिष्ठापन आदि की विधि। ५८८४ कांजी के संसक्त होने पर उसके शोधि की विधि तथा अन्य जलों के ग्रहण की विधि। ५८८५-५८९६ ग्लानत्व, अवम आदि आपवादिक कारणों में पिंड आदि की अप्रत्युपेक्षण विधि। ग्रहण, उपयोगविधि और यतनाएं। पाणगविहि-पदं सूत्र १२ ५८९७ पानक विधि विधायक सत्र तथा पानक के कायचतुष्क। गाथा संख्या विषय ५८९८ दक, दकरज, दक स्पर्शित आदि पदों की व्याख्या। . ५८९९-५९१८ उदक ग्रहण की विधि। अशुद्ध ज्ञात होने पर परिष्ठापन विधि। उष्ण-शीत के संगम से चतुर्भगी का प्रतिपादन तथा अपवाद विधि। मेहुणपडिसेवणा-पदं सूत्र १३-१४ ५९१९ प्रस्तुत सूत्र ब्रह्मव्रत रक्षा हेतु इन्द्रिय-श्रोत विषयक चर्चा। ५९२० पशु और पक्षी गण के उदाहरण। अनायतन में आर्याओं के अवस्थान, प्रस्रवण और उच्चार आदि के लिए जाना प्रतिषिद्ध । अन्यथा आज्ञाभंग आदि दोष और प्रायश्चित्त विधि। ५९२२-५९२४ पशु-पक्षियों के स्थान पर जाने से होने वाले दोष। ५९२५ आर्याओं के लिए हाथ में दंड लेकर बाहर निकलने की विधि। ५९२६ जहां पशु-पक्षी स्रोतोवगाहन करते हैं वहां रहने वाली आर्याओं को लगने वाला प्रायश्चित्त। ५९२७ कारणवश एकाकिनी साध्वी का रात्री में देह चिन्ता निवारण के लिए जाने की विधि। ५९२८ किसी साध्वी के मोह उत्पन्न होने पर उसे विविध उपायों से उपशांत करने की विधि। बंभचेरसुरक्खा -पदं सूत्र १५ ५९२९ ब्रह्मव्रत रक्षार्थ संयती वर्ग के लिए प्रतिपादक सूत्र तथा निर्ग्रन्थों के लिए एकाकिसूत्र का निरूपण। ५९३०-५९३३ एकाकिनी साध्वी द्वारा भिक्षा आदि के लिए गमन करने पर प्राप्त होने वाला प्रायश्चित्त, दोष और उससे अपवाद। ५९३४ कारण में एकाकिनी साध्वी के लिए मार्गगत यतना। सूत्र १६ ५९३५ आर्याओं के लिए अचेलकत्व का निषेधसूत्र । ५९३६,५९३७ साध्वी अचेलिका क्यों नहीं हो सकती? ५९३८,५८३९ साध्वी के अचेलिका रहने पर आने वाला प्रायश्चित्त, दोष और अपवाद। सूत्र १७ ५९४०-५९४२ साध्वियों को पावरहित रहना अकल्पनीय। स्नषा का दृष्टांत। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002533
Book TitleAgam 35 Chhed 02 Bruhatkalpa Sutra Bhashyam Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages474
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bruhatkalpa
File Size13 MB
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