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तीसरा उद्देशक = बना देंगे। क्या बिना किनारी वाले वस्त्रों का वे उपभोग हुए द्रमक का अश्वपालक की लड़की के साथ स्नेह हो गया। नहीं करते?
वर्ष पूरा होने पर उसने लड़की से पूछा कि वह कौनसे दो ३९५५.उद्धप्फालाणि करेंति अणिहुआ दुब्बलं च तं होति। अश्व ले? लड़की ने कहा-जो अश्व लक्षणयुक्त हों उनकी ___ कज्जं तं च ण पुस्सति, असिव्व-सिव्वंतदोसा य॥ मांग करना। द्रमक ने पुनः पूछा-वे लक्षणयुक्त घोड़े कौन से
ऊर्ध्वफाल वाले वस्त्र अनिभृत अर्थात् त्रिदंडी उपभोग में हैं? तब लड़की बोली-सारे अश्वों को जंगल में ले जाओ। लाते हैं। मध्य में फाड़ा हुआ वस्त्र दुर्बल होता है। वह ओढ़ने एक वृक्ष की छाया में उनको विश्राम करने के लिए बिठा दो। आदि का प्रयोजन पूरा नहीं कर पाता। फट जाने पर, न सीने एक चर्ममय कुतप को पत्थरों से भरकर व्यक्ति वृक्ष पर चढ़ से वह और अधिक फट जाता है। सीने पर सूत्रार्थ की जाए और नीचे बैठे घोड़ों को डराने के लिए उस कुतुप को परिहानि होती है।
नीचे फेंके। उन पत्थरों की खड़खड़ाहट से जो अश्व भयभीत ३९५६.छिन्नम्मि माउगंते, अलक्खणं मज्झफालियं चेव। न हों, वे लक्षणयुक्त होते हैं। वैसे दो अश्वों को तुम मांग
गुणबुद्धा जं गहियं, न करेति गुणं अलं तेणं॥ लेना। उस द्रमक ने अश्वपालस्वामी से उन लक्षणयुक्त दो - दोनों ओर की किनारी का छेदन कर देने पर तथा वस्त्र अश्वों की मांग की। स्वामी ने कहा-तुम अन्य अश्वों को ले को मध्य से फाड़ देने पर, वह वस्त्र लक्षणहीन हो जायेगा। लो। उसने कहा-स्वामिन् ! मुझे अन्य अश्वों से क्या गुण की बुद्धि से जो वस्त्र ग्रहण किया था, वह लक्षणहीन हो प्रयोजन ! इन दो अश्वों को ही आप मुझे दें।' स्वामी चिंतन में जाने पर गुणकारी नहीं रहता। ऐसे वस्त्र को लेने-रखने से । डूब गया। उसने अपनी भार्या से कहा-अपनी पुत्री का विवाह क्या प्रयोजन? .
इस द्रमक के साथ कर दें तो यह गृहजामाता बन कर यहीं ३९५७.किं लक्खणेण अम्हं, सव्वणियत्ताण पावविरयाणं। रह जायेगा। फिर अश्वों को देने-लेने की बात समाप्त हो
लक्खणमिच्छंति गिही, धण-धण्णे-कोसपरिवुड्डी॥ जाएगी। उसने भार्या के अवबोध के लिए वर्द्धकिपुत्र का शिष्य बोला-भंते ! हम सब समस्त परिग्रह से निवृत्त हैं, दृष्टांत प्रस्तुत किया। पापों से विरत हैं, फिर हमारे लिए लक्षण वाले वस्त्र से एक बढ़ई ने अपनी पुत्री का विवाह अपने भानजे के साथ क्या? गृहस्थ वस्त्रों के लक्षण चाहता है क्योंकि वह धन, कर उसे गृहजामाता कर दिया। वह प्रतिदिन लकड़ी काटने धान्य, कोश आदि की परिवृद्धि का इच्छुक होता है। जंगल में जाता, परन्तु अच्छी लकड़ी की प्राप्ति के अभाव में ३९५८.लक्खणहीणो उवही, उवहणती णाण-दसण-चरित्ते। वह खाली हाथ लौट आता। इस प्रकार छह महीने बीत गए।
तम्हा लक्खणजुत्तो, गच्छे दमएण दिÉतो॥ एक दिन उसे 'कृष्णचित्रककाष्ठ' मिल गया। वह उसे घर ले शिष्य! लक्षणहीन उपधि ज्ञान, दर्शन और चारित्र का आया और उसका कुलक-धान्य मापने का एक पात्र विशेष उपहनन करती है। इसलिए गच्छ में लक्षणयुक्त वस्त्र का बना दिया। उसने अपनी भार्या से कहा कि इस कुलक को ग्रहण-धारण करने से रत्नत्रयी की वृद्धि होती है। यहां द्रमक बाजार में एक लाख रुपयों में बेचना। वह उसे लेकर गई। का दृष्टांत है।
लोगों ने मूल्य सुनकर उसका उपहास किया। इतने में ही ३९५९.थाइणि वलवा वरिसं, दमओ पालेति तस्स भाएणं। एक बुद्धिमान् व्यक्ति ने उसे देखा। उसने उसका गुण जान
चेडीघडण निकायण, उविट्ठ दुम चम्म भेसणया॥ लिया कि इस माप-पात्र से धान्य को मापने पर वह धान्य ३९६०.दुण्ह वि तेसिं गहणं,
कम नहीं होता। उसने एक लाख रुपये देकर उसको खरीद अलं मि अस्सेहि अस्सिगं भणइ। लिया। इस प्रकार उस गृहजामाता ने सारे कुटुम्ब को धनवड्ढइ भच्चइ धूयापयाण
धान्य से संपन्न कर दिया। इसी प्रकार गच्छ में भी
कुलएण ओवम्म॥ लक्षणयुक्त उपधि से ज्ञान, दर्शन और चारित्र की वृद्धि होती पारस देश के एक नगर में एक अश्वपालक रहता था। है। इसलिए वस्त्र का छेदन विधि से करना चाहिए जिससे उसके पास अनेक घोड़ियां प्रतिवर्ष प्रसव करने वाली थीं। वह प्रमाणयुक्त हो जाए। उसने एक द्रमक को अश्वशाला की रक्षा के लिए रखा। वह ३९६१.दव्वप्पमाण अतिरेग हीण, सभी घोड़े-घोड़ियों का पालन-रक्षण करता था। अश्वपालक
परिकम्म विभूसणा य मुच्छा य। ने उसको इस शर्त पर रखा था कि वह प्रतिवर्ष अपने
उवहिस्स य प्पमाणं, मनपसंद के दो अश्व भृति के रूप में ले सकेगा। वहां रहते
जिण थेर अहक्कम वोच्छं।
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