Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयद्योतिका टीका प्र.३ उ.३ सू.५७ विजयद्वारपार्श्व स्थितनषेधिक्या:नि० १०३ सयन्ति उद्योतयन्ति तापयन्ति प्रभासयन्तीति ॥ 'तेसि ण तोरणाणं पुरओ' तेषां खलु तोरणानां पुरत:-अग्रभागे 'दोदो हयकंठगा जाव उसमकंठगा पन्नत्ता' द्वौ द्वौ हयकण्ठकौ-हयकण्ठप्रमाणौ रत्नविशेषौ, द्वौ द्वौ गजकण्ठको, द्वौ द्वौ किन्नरकण्ठको, द्वौ द्वौ किंपुरुषकण्ठको द्वौर गन्धर्वमहोरगकण्ठको, द्वौ द्वौ वृषभकण्ठको प्रज्ञप्तौ-कथितो, ते च हयकण्ठादि वृषभकण्ठान्तरत्नविशेषाः 'सव्वरयणामया अच्छा जाव पडिरूवा' सर्वरत्नमया अच्छाः यावत-इलक्षणाः घृष्टामृष्टा निरजस्का निर्मला निप्पंका निष्कंकटकच्छाया अभिरूपाः प्रतिरूपा इति । 'तेसुणं हयकंठएसु जाव उसभकंठएमु तेषु खलु हयकण्ठकेषु यावत्-गजकिन्नर किंपुरुषमहोरगगन्धर्ववृषभकण्ठकेषु 'दो दो पुप्फचंगेरीओ' द्वे द्वे पुष्प चङ्गेय्यौँ 'एवं मल्लगंधचुण्णवत्थाभरणचंगेरीओ' एवमेव-पुष्पचंगेरीवदेव माल्यगन्धचूर्णवस्त्राभरउद्योतित करते रहते हैं चमकाते रहते हैं एवं कान्ति से युक्त करते रहते हैं। 'तेसि णं तोरणाणं पुरओ दो दो हयकंठगा जाव उसभकंठगा पन्नत्ता' इन तोरणों के साम्हने दो दो हयकंठक-हयकंठ प्रमाण रत्न विशेष दो दो गजकंठक-गजकंठ प्रमाण रत्नविशेष दो दो किन्नर कंठ प्रमाण रत्नविशेष, दो दो किंपुरुष कण्ठप्रमाण रत्नविशेष, दो दो गंधर्व कण्ठप्रमाण रत्नविशेष और दो दो वृषभकण्ठप्रमाण रत्न विशेष कहे गये हैं। ये हय कण्ठादि से लेकर वृषभकंठ तक के समस्त रत्नविशेष 'सव्वरयणामया' अच्छा जाव पडिरूवा' सर्वात्मना रत्नमय ही है और अच्छ से लेकर प्रतिरूप तक के विशेषणों वाले हैं । 'तेसु णं हयकंठएसु जाव उसभकंठएसु दो दो पुप्फचंगेरीओ' इन हयकंठ से लेकर वृषभ कण्ठ तक के रत्नों के ऊपर दो दो पुष्पचंगेरिकाएं है, 'दो दो मल्लगंधचुणवत्था भरण चंगेरीओ' माल्य-मालाओं को रखने यमावतामने तिथी युत ४२त। २ छ. 'तेसिं णं तोरणाणं पुरओ दो दो हयकंठगा जाव उसभकंठगा पण्णत्ता' थे ताणोनी सा ५० य ४४४ मेट से
યકંઠ પ્રમાણના રત્નવિશેષ બબ્બે ગજકંઠક ગજના કંઠ પ્રમાણવાળા રત્નવિશેષ બબે કિન્નર કંઠ પ્રમાણુવાળા રત્નવિશેષ બબ્બે કિં પુરૂષ કંઠ પ્રમાણ વાળા રત્નવિશેષ બબ્બે ગંધર્વકંઠ પ્રમાણવાળા રત્નવિશેષ અને બબ્બે વૃષભકંઠ પ્રમાણ વાળા રત્નવિશેષ કહેલ છે. આ હયકંઠકથી લઈને વૃષભકંઠક સુધીના સઘળા ४४. रत्नविशेषथी निमित छे. 'सव्वरयणामया, अच्छा जाव पडिरूवा' સર્વાત્મના રત્નમય છે. અને અછથી લઈને પ્રતિરૂપ સુધીના બધાજ વિશેષણે वा छे. 'तेसु णं हयकंठएसु जाव उसभकंठएसु दो दो पुष्फचंगेरीओ' २१॥ હય કંઠકથી લઈને વૃષભ કંઠક સુધીના રત્નની ઉપર બબ્બે પુષ્પગંગેરીકાઓ
જીવાભિગમસૂત્ર