Book Title: Vairagyopadeshak Vividh Pad Sangraha
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री जिनायनमः वैराग्योपदेशक विविध पदसंग्रह पंडित श्रीयसोविजय, विनय विजय तथा ज्ञानसारजी, विरचित.... तेने द्वितीयावृत्तिने, यथामति संसोधन करोवीवे श्रावक, नीमसिंह माणके श्री मोहमयी पत्तन मध्ये निर्णयसागर छापखानामां छपावी प्रसिद्ध कर्यो छे. संवत् १९५८. सने १९०२. वैशाख वदि त्रयोदशि Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'प्रस्तावना. सर्व सुझ जैनबांधवोने मालुम थाय जे था श्री राग्योपदेशक विविधपद संग्रह." नांमनो श्र५ रमणीक, वैराग्यथी नरेलो, संसार स्वरूपने तावनारो, तथा पदोनां चमत्कारोथी नरेलो ग्रंथ थापणा महामाननीक उपाध्याय श्री यशोविजयजी: विनयविजयजी तथा ज्ञानशारजी महाराजें रचेल , तेमां प्रथम "जस विलास" पंडित यशोविजयजी कृत, तथा “विनय विलास" पंडित विनय विजयजी कृत, अने "ज्ञान विलास” पंडित ज्ञान सारजी कृत . आग्रंथ एटलो तो रसिक तथा जैनवर्गना श्रावक, श्राविकाउँने माटे उपयोगी जे केतेनुं अत्रे प्रस्तावनामां कंश पण वर्णन नहि करतां, अमो ते ग्रंथ, श्राधथी ते अंतसुधि वांचीने तेनो रहस्य हृदयमा धारण करवानी अमारा सुज्ञ जैन बांधवोने जलामण करीएं बयें तथा केटलाएक दृष्टी दोष अनें बुधि दोष रही गया हशे तेनुं अ. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वलोकन करीने सर्व श्रेष्ट पुरुषो क्षमा पूर्वक सुधा रिने वांचशो. इत्यलं विस्तरेण । ता २५ मी मे लां . श्रावक, शनेरए०५. नीमसिंह माणेकना, कार्य प्रवर्तको. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥अथ॥ ॥श्रीजशविलास प्रारंभः॥ ॥पद पदेखें ॥ ॥राग धन्याश्री ॥ चेतन ज्ञानकी दृष्टि निहालो ॥ चेतन ॥ टेक ॥ मोह दृष्टि देखे सो बाउरो,होत महा मतवालो ॥ चेतनः ॥१॥ मोह दृष्टि अति चपल करतहे, नव वन वानर चालो ॥ योग वियोग दावानल लागत, पावत नांहि विचालो॥ चेतन ॥२॥ मोह दृष्टि कायर नर डर, करे - कारन टालो ॥ रन मेदान लरे नहीं अरिसुं, सूर लरेज्युं पालो ॥ चेतन॥३॥ मोह दृष्टि जन जनके परवश, दीन अनाथ मुखालो॥मागेनीख फरे घर घरसुं, कहे मुकुं को पालो ॥ चेतन ॥४॥ मोद दृष्टि मद मदिरामाती, ताको होत उबालो ॥ पर अवगुन राचे सोश्रह निस, काग असुचिज्यों कालो। चेतनः ॥५॥ ज्ञान दृष्टिमां दोष न एते, करे झान अजुश्रालो ॥ चिदानंद घन सुजस वचन रस, स. जान हृदय पखालो ॥ चेतन० ॥६॥ इति ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २ ॥ जश विलास पद बीजुं ॥ ॥ राग सारंग ॥ कंत बिनु कहो कौन गति नारी ॥ टेक ॥ सुमति सखी जई वेगी मनावो, कहे चेतन सुन प्यारी ॥ कंत० ॥ १॥ धन कंन कंचन महल मालिए, पिउ बिन सबहि उजारी ॥ निद्राजोग बहु सुख नांही, पियु बियोग तनु जारी ॥ कंत०॥२॥ तोरे प्रीत पराई डुरिजन, ते दोष पुकारी ॥ घर जंजनके कहन न कीजें, कीजे काज बिचारी ॥ कंत० ||३|| विम मोह महामद बिजुरी, माया रेन - धारी ॥ गर्जित रति लवे रति दाडुर, कामकी ज सवारी ॥ कंत० ॥ ४ ॥ पिच मिलवेकुं मुक मन तलफे, में पि खिजमतगारी ॥ जुरकी देश गये पिउ मुऊकुं, न लहे पीर पीयारी ॥ कंत० ॥ संदेश सुनी आए पिउ उत्तम, जइ बहुत मनुहारी ॥ चिदानंद घन सुजस विनोदें, रमे रंग अनुसारी ॥ कंत० ॥ ६ ॥ ॥ पद त्रीजुं ॥ Jain Educationa International ॥ राग धन्याश्री ॥ परम गुरु जैन कहो क्यौं होवे, गुरु उपदेश बिना जन मूढा, दर्शन जैन बिगोवे ॥ परम गुरु जैन कहों क्यों होवे ॥ टेक ॥१॥ कहत कृ For Personal and Private Use Only Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जशविलास पानिधि समजल कीले, कर्म मयल जो धोवें ॥ बहुल्ल पापमल अंग'न धारे, शुद्ध रूप निज जोवे॥परम॥॥ स्यादवाद पूरन जो जाने, नय गर्जित ज. स वाचा ॥ गुन पर्याय अव्य जो बूके, सोश जैन हे साचा ॥परम॥३॥ क्रिया मूढमति जो अज्ञानी, चालत चाल थपूठी ॥ जैनदशा उनमेही नाही, कहे सो सबही जूठी ॥परमा पर परनति अपनी कर माने, किरिया गर्वै घेहेलो ॥ उनकुं जैन कहो क्युं कहिये, सो मूरखमें पहिलो ॥परम॥५॥ ज्ञान नाव शान सबमांही, शिव साधन सर्दहिए ॥नाम नेखसे काम न सीके, नाव उदासे रहिए ॥ परम ॥६॥ ज्ञान सकल नय साधन साधो, क्रिया ज्ञानकी दासी ॥ क्रिया करत् धरतुहे ममता, याहि गले में फांसी ॥परमा॥ क्रिया बिना ज्ञान नहिं कबहुँ, क्रिया ज्ञान बिनु नांही ॥ क्रिया ज्ञान दोउ मिलत रहतुहे, ज्यौं जल रस जलमांही ॥ परम ॥७॥ क्रिया मगनता बाहिर दीसत, ज्ञान शक्ति जस जांजे ॥ सदगुरु शीख सुने नहीं कबहुँ, सो जन जनतें खाजे ॥परमगाए॥ तत्व बुधि जिनकी परनति Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जशविलास हे, सकल सूत्रकी कूची ॥ जग जसवाद वदे उन हीको, जैन दशा जस ऊंची ॥ परम ॥१०॥ इति॥ ॥पद चोथु॥ ॥ राग धन्याश्री ॥ परम प्रनु सब जन शब्दें ध्यावे ॥ जब लग अंतर जरम न नांजे, तबलग कोऊन पावे ॥ परम प्रजु॥१॥ टेक ॥सकल अंस देखे जग जोगी, जो खिनु समता आवे ॥ ममता अंध न देखे याको, चित्त चिहुं जैरे ध्यावे ॥ परम प्रजु॥२॥ सहज शक्ति अरु नक्ति सुगुरुकी,जो चित्त जोग जगावे ॥ गुण पर्याय अव्यसुं अपने, तो लय कोउ लगावे ॥ परम प्रजु० ॥३॥ पढत पूरान वेद अरु गीता, मूरख अर्थ न नावें ॥श्त ऊत फरत ग्रहत रसनाही, ज्यौं पशु चर्वित चावे॥ परम प्रज्जुन ॥४॥ पुजलसें न्यारो प्रनु मेरो, पुजल आप डिपावे॥ उनसे अंतर नहीं हमारे, अब कहां जागो जावे॥ परम प्रजु० ॥५॥ अकल अलख अज अजर. निरंजन, सो प्रनु सहज सुहावे ॥ अंतरजामी पूरन प्रगव्यो, सेवक जस गुन गावे॥परम प्रजु०॥६॥इति॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जशविलास ॥ पद पांचमुं॥ ॥ राग उपर प्रमाणे ॥ चेतन जो तुं ज्ञान अन्यासी ॥ श्रापहि बांधे आपहि बोडे, निजमति शक्ति बिकासी ॥ चेतन ॥१॥ टेक ॥ जो तुं आप खनावें खेले, श्रासा बोरी उदासी॥सुरनर किन्नर नायक संपति, तो तुज घरकी दासी॥ चेतन॥॥ मोह चोर जन गुन धन लूसे, देत श्रास गल फांसी। श्रासा बगेर उदास रहेजो, सो उत्तम संन्यासी ॥ चेतन ॥ ३ ॥ जोग लश पर श्रास धरतहे, याही जगमें हांसी ॥ तुं जाने में गुनकुं संचुं, गुनतो जावे नासी ॥चेतन॥४॥ पुजलकी तुं श्रास धरतहे,सो तो सबहिं बिनासी ॥ तुं तो निन्नरूप हे जनतें, चिदानंद अविनासी॥ चेतन ॥५॥ धन खरचे नर बहुत गुमाने, करवत लेवे कासी ॥ तोजी दुःखको अंतन श्रावे, जो श्रासा नहिंघासी ॥चेतन॥६॥सुखजल विषम विषय मृगतृष्णा, होत मूढमति प्यासी॥ वित्रम नूमि नइ पर श्रासी, तुं तो सहज विलासी ॥चेतन॥ ७॥ याको पिता मोह छुःख जाता, होत विषय रति मासी ॥नव सुत नरता अविरति प्रानी, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जशविलास मिथ्यामति हे हांसी ॥ चेतन ॥ ७ ॥ श्रासा बोरें रहे जो जोगी, सो होवे सिव वासी॥ उनको सुजस बखाने ज्ञाता, अंतरदृष्टिप्रकासी ॥चेतनाति॥ ॥पद बहं॥ - ॥राग कनडो॥ अजब गति चिदानंद घनकी ॥ टेक ॥ जव जंजाल शक्तिसुं होवे, उलट पुलट जिनकी ॥ अजब॥॥नेदी परनति समकित पायो, कर्मवज्र घनकी ॥ जैसी सबल कठिनता दीसे, कोमलता मनकी ॥ अजब ॥२॥ जारी नूमि नयंकर चूरी, मोहराय रनकी ॥ सहज अखंड चंगता याकी, बमा विमल गुनकी ॥ अजब० ॥३॥ पापवेली सब ज्ञान दहनसे, जाली नववनकी ॥ शीतलता प्रगटी घट अंतर, उत्तम लबनकी ॥ अजब ॥४॥ उकुरा जगजनते श्रधिकी, चरन करन घनकी ॥ शक्कि वृद्धि प्रगटे नीज नामे, ख्याति अकिचनकी॥ श्रजब० ॥ ५॥ अनुजवबिनु गति कोउ न जाने, अलख निरंजनकी ॥ जस गुन गावत प्रीती निवाहो, उनके समरनकी ॥ १०॥६॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जशविलास ॥पद सातमुं॥ ॥ राग सारंग ॥ जिउ लाग रह्यो परजावमें, टेक ॥ सहज खंजाव लखे नहिं अपनो, परियो मोह जंजालमें ॥ जिनम् ॥१॥ वं मोद करे नहि करनी, डोलत ममता वाउमें ॥ चहे अंध ज्यु जलनिधि तरवो, बेठो काणे नाउमें ॥ जिज ॥२॥ अरति पिशाची परवश रहेतो, खिनहु न समस्यो श्राउमे॥ श्राप बचाय सकत नहिं मूरख, घोर वि. षयके घाउमें॥ जिज०॥३॥पूर्वपुण्य घन सबहि ग्रसतहे, रहत न मूल बढाउमें ॥ तामें तुज केसे बनी श्रावे, नय व्यवहारके दाउमें ॥ जिज ॥४॥ जस कहे अब मेरो मन लीनो, श्रीजिनवरके पाउमें ॥ याहि कल्यान सिधिको कारन, ज्युं वेधकरस खाउमें ॥ जिउ० ॥ ५ ॥ इति ॥ ॥पद आठमुं॥ ॥राग बिलाउल ॥ मेरे साहिब तुम हि हो,श्री पास जिणंदा ॥ खिजमतगार गरीब हुँ, मे तेरा बंदा ॥ मेरे ॥१॥ टेक ॥ में चकोर करूं चाकरी, जब तुमहिं चंदा ॥ चक्रवाक में दुश् रहौं, जब Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जशविलास तुमहिं दिणंदा ॥ मेरे ॥२॥ मधुकरपरे में रन. जनुं, जब तुम अरविंदा ॥ नक्ति करौं खगपति परे, जब तुमहिं गोविंदा ॥ मेरे ॥ ३॥ तुम जब गर्जित घन नये, तब में शिख बंदा ॥ तुम सायर जब में तदा, सुरसरिता अमंदा ॥ मेरे ॥ ४ ॥ दूर करो दादा पासजी, नवकुःखका फंदा॥ वाचक जश कहे दासकुं, दियो परमानंदा ॥मेरे॥५॥इति॥ ॥पद नवमुं ॥ ॥ राग सामेरी ॥ मेरे प्रजुसुं प्रगट्यो पूरन राग ॥ टेक ॥ जिन गुन चंद किरनसुं उमग्यो, सहज समुख अथाग ॥ मेरे ॥ १ ॥ ध्याता ध्येय जये दोउ एकहु, मिट्यो नेदको नाग ॥ कुल बिदारी बवे जब सरिता, तब नहिं रहत तडाग ॥ मेरे ॥ ॥२॥ पूरन मन सब पूरन दीसे, नहिं कुबिधाको लाग ॥ पाल चलतपनही जे पहिरे, नहि तस कंटक लाग॥ मेरे॥३॥जयो प्रेम लोकोत्तर जूगे, लोक बंधको ताग ॥ कहो कोउ कबु हमतो नरूचे, बुटि एक वीतराग ॥ मेरे ॥४॥ वासत हे जिन गुन मुऊ दिलकुं, जेसो सुरतरु बाग ॥ ओर वास Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जशविलास नालगेन तातें, जस कहे तुंवडलागामेरे ॥५॥ति ॥पद दशमुं॥ ॥ राग गोडसारंग तथा पूर्वी ॥ पसारी कर लीजे,श्कुरस नगवान ॥ चढत सिखा श्रेयांस कुमरकी, मानु निरमल ध्यान ॥ पसारी० ॥१॥ टेक ॥ में पुरुषोतम करकी गंगा, तुं तो चरन निदान ॥ श्त गंगा अंबर तर जनकुं, मानुं चली असमान ॥ ॥ पसारी० ॥२॥ किधो विधु बिंब सुधातूं चाहत, श्राप मधुरता मान ॥ किधो दायककी पुण्य परंपर, दाखत सरगविमान ॥ पसारी० ॥३॥ प्रजुकर - हुरस देखी करत हे, ऐसी उपमा जान ॥ जश कहे चित वित पात्र मिलावें, युं नविकुं जिन ना. न॥ पसारी॥ ४ ॥ इति ॥ ॥ पद अगीयार, ।। ॥ राग अडाणो ॥ शीतल जिन मोहिं प्यारा टेक ॥ नुवन विरोचन पंकज लोचन, जिनके जिन हमारां॥ शीतल ॥१॥ ज्योतिशुं ज्योत मिलत जब ध्यावें, होवत नहि तब न्यारा ॥ बांधी मूठी खुले जव माया, मिटे महा भ्रम नारा ॥ शीतल ॥२॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जशविलास तुम न्यारे तब सबहि न्यारा, अंतर कुटुंब उदारा। तुमही नजिक नजिक हे सबहीं, शछि अनंत अपारा ॥ शीतल ॥३॥ विषय लगनकी अगनि ब्रूजावत, तुम गुन अनुनव धारा ॥ मगनता तुम गुनरसकी, कुन कंचन कुन दारा ॥ शीतल ॥४॥ शीतलता गुन दोर करत तुम, चंदन काद बिचारा॥ नामेहीं तुम ताप हरतहे, वाकुं घसत घसारा ॥ ॥शीतल ॥५॥ करह कष्ट जन बहत हमारे, नाम तिहारो श्राधारा ॥ जस कहे जनममरण जय नागो, तुम नामे नवपारा॥शीतल॥६॥ इति ॥ ॥ पद बारमुं॥ ॥राग वेलावल ॥ प्रजु तेरो वचन सुन्यो जबहीथे सुविहान ॥ टेक ॥ तबहीथे तत्त्व दाख्यो, चा. ख्यो रस ध्यान ॥ जाव नाली ए जागी, मानुं कीधो सुधापान ॥ प्रनु तेरो॥१॥ श्रुतचिंता ज्ञान सोतो, खीर नीर वान ॥ विषय तृष्णा बुकावे, सोहि साचो ज्ञान ॥ प्रनु तेरो० ॥२॥ गायन हरन तातें; नादे धरे कान ॥ तेसेहिं करत मोहिं, संत गुन ध्यान ॥ प्रजु तेरो ॥३॥ प्रानतें अधिक सांझ, केसे कहूं Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जश विलास ११ प्रनि ॥ प्रानथी जिन्न दाख्यो, प्रत्यक्ष प्रमान ॥ प्रभु तेरो ० ॥४ ॥ जिन्न ने जिन्न कबु, स्याद्वादें वान ॥ जस कड़े तु हैं तु हें, तुं हें जिन जान ॥ प्र० ॥५॥ ॥ पद तेरमुं ॥ ॥ राग परज ॥ चेतन राह चले ऊलटे ॥ टेक ॥ नखशिखलो बंधनमां बेठे, कुगुरु वचन गुलटे ॥ चेतन० ॥ १ ॥ विषय विपाक जोग सुख कारन, बिनमें तुम पलटे ॥ चाखी बोर सुधारस समता, न वजल विषय घटे ॥ चेतन० ॥ २ ॥ जवोदधि निच रहे तुम ऐसे, यावत नाहिं तटे ॥ जिहां तिमिंगल घोर रहतुहे, चार कषाय कटे ॥ चेतन० ॥ ॥ ३ ॥ वरविलास बनिता नयनके, पडे पास पलटे | अब परवश जागे किहां जायोगे, काले मोहनटे ॥ चेतन० ॥ ४ ॥ मन मेले जो किरिया कीनी, उगे लोक कपटे | उनकुं फलबिनुं जोग मिटेगो, तुमकुं नांहि रटे ॥ चेतन० ॥ ५ ॥ सीख सुनी ब रहो सुगुरुके, चरणकमल निकटे ॥ युं करते तुम सुजस लहोगे, तत्त्व ज्ञान प्रगटे ॥ चेतन० ॥ ६ ॥ इति ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जशविलास ॥पद चौदमुं॥ ॥राग नायकी कनडो॥ चेतन ममता बांड परीरी, दूर परी॥ चेतन ॥ टेक ॥यर रमनिसुं प्रेम न कीजें,श्रादरी समता श्राप वरीरी ॥ चेतन०॥ ॥१॥ ममता मोह चंडालकी बेटी, समता संयम नृप कुमरीरी ॥ ममता मुख पुगंध असत्यें, समता सत्य सुगंध जरीरी। चेतन ॥२॥ ममतासें लरते दिन जावे, समता नहिं को साथ लरीरी, ममता हेतु बहुत हे पुश्मन, समताके कोऊ नथरीरी॥ चेतन ॥३॥ ममताकी धर्मति हे थाली, डाकिनी जगत अनर्थ करी ॥ समताकी शुनमति हे आली, परउपगार गुणे समरीरी ॥ चेतन० ॥४॥ ममता पुत्त जए कुल खंपन, सोक बियोग महा मत्सरीरी ॥ समता सुत होवेगे केवल, रहे दिव्य निशान धुरीरी ॥ चेतन ॥ ५॥ समता मग्न रहे जो चेतन, जो ए धारे शीख खरीरी॥ सुजसविलास लहेगो तो तुं, चिदानंदघन पदवि वरीरी ॥ चेतन० ॥ ६ ॥ इति ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जशविलास ॥ पद पन्नरमुं॥ ॥रागनायकी कनडोगयागति कौन हे सखी तोरी, कोन हे सखी तोरी ॥ टेक ॥ श्त उत युहि फिरत हे घरेली, कंत गयो चित चोरी॥यागति॥१॥ चितवत हे बिरहानल बुजवत, सिंच नयन जल जोरी ॥ जानत हे उहां हे बडवानल, जलण जत्यो जिहुं श्रोरी ॥ यागतिः ॥२॥ चल गिरना. र पिया दिखलावं, नेह निहावन धोरी ॥ हलि मिति मुगति मोहोलमें खेले, प्रनमे जस याजोरी ॥यागति॥३॥ इति ॥ ॥पद शोलमुं॥ ॥राग सारंग ॥ हम मगन लए प्रजु ध्यानमें, टेक ॥ बिसर गश् उविधा तन मनकी, अचिरा सुत गुन ज्ञानमें ॥ हम ॥१॥ हरिहर ब्रह्म पुरंदरकी शकि, श्रावत नांहि कोउ मानमें ॥ चिदानंदकी मोज मची हे, समतारसके पानमें ॥ हम ॥ ॥॥ इतने दिन तुं नांहि पिलान्यो मेरो, जन्म गमायो अजानमें ॥ श्रवतो अधिकारी होइ बेठे, प्रजु गुन अखय खजानमें ॥ हम ॥३॥ गश् दी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૨૪ जशविलास नता सबही हमारी, प्रजु तुज समकित दानमें ॥ प्रजु गुन श्रनुजवके रस श्रागें, श्रावत नही कोउ म्यानमे ॥ हम ॥४॥ जिनहि पाया तिनहि विपाया, न कहे कोजके कानमें ॥ ताली लागी जब अनुजवकी, तब जाने कोउ शानमें ॥ हम ॥५॥ प्रज्जु गुन अनुजव चंअहास्य ज्यो, सोतो न रहे म्यानमें ॥ वाचक जश कहे मोह महा अरि, जीत लीयो हे मेदानमें ॥ हम ॥ ६ ॥ इति ॥ ॥पद सत्तरमुं॥ ॥ राग काफी ॥ देखतही चित्त चोर लीयो है, देखतही चित्त चोर लीयो ॥ सामको नाम रुचे मोहि श्रह निस, साम बिना कहा काज जीयो ॥ देखतही० ॥१॥ टेक ॥ सिझवधूके लीए मुफ बगेरी, पशुथनके सिर दोष दीयो॥ परकी पीर न जाने तासों, वैर वसायो जो नेह कीयो॥ देखतही० ॥२॥प्रान धरूं में प्रानपिया बिन, वज्रहथें मोहि कठिन हियो । जस प्रनु नेमि मिले. पुःख डायो, राजुल शिवसुख अमृत पियो । देखत ही० ॥३॥ इति ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जशविलास १५ ॥पद अढारमुं॥ .॥ राग कल्याण ॥ सखुने प्रनु नेटे, अंतरीक प्रनु नेटे ॥ स ॥ टेक ॥ जगत वबल हित दाइ, स० ॥ मोह चोर जब जोर फिरावत, तब समरवो प्रनु नेटे ॥ स ॥१॥ थोर सखा चार दिवसके, साच सखा प्रनु बेठे ॥ इतनो श्राप विवेक विचारो, मायामें मत लेटे ॥ स ॥२॥ जामणडे तो नूख न नांगे, बिनुं जोजन गए पेटे ॥ नगवंत नक्ति बिना सवि निष्फल, जस कहे नक्तिमें नेटे ॥ स ॥३॥इति ॥ ॥ पद ओगणीशमुं॥ - ॥राग धन्याश्री ॥ जिन चरण सरन ग्रहुं ॥ टेक ॥ हृदयकमलमें ध्यान धरतुहे, सिर तुज थाण वहुँ ॥ जिन ॥१॥ तुज सम खोल्यो देव खलकमें, पैट्ये नांहिं कहुं ॥ तेरे गुनकी जपुं जपमाला, श्रद निसि पाप दडं ॥ जिन ॥२॥ मेरे मनकी तुम सब जानो, क्या मुख बहुत कहुं, कहे जस बिजय करो तुम साहिब, ज्युं जव फुःख न लहुँ । जिन ॥३॥ इति ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६ . जशविलास ॥ पद वीशमुं॥ ॥राग जयजयवंती ॥ अजब बनीहे जोरी, अर्धग धरीहे गोरी ॥ शंकर शंकहिं बोरी, गंगसिर धरीहे ॥ ॥१॥प्रेमके पीबत प्याले, होत महा मतवाले, न चलत तिहूं पाले, असवारी खरी हे॥१०॥२॥ ज्ञानीको एसो उत्साह, समताके गले बांह, सिरपर जगनाह, श्राण सुर सरीहे ॥०॥३॥ लोकके प्रवाह नाहि, सुजस विलास मां हि, चिदानंदघन बाहि, रति अनुसरी हे ॥१०॥४॥ इति ॥ ॥ पद एकवीशमुं॥ ॥ राग उपर प्रमाणे ॥ धर्मके विलास वास, झानके महा प्रकास, दास नगवंतके, उदास नाव लगे हें ॥ समता नदीतरंग, अंगही उपंग चंग, मजान प्रसंग रंग, अंग जगमगेहें ॥ धर्म ॥१॥ कर्मके संग्राम घोर, लरे महा मोह चोर, जोर ताको तोरवेंकुं, सावधान जगेहें ॥ शीलको धरी सनाह, धनुख महा उत्साह, ज्ञान बानके प्रवाह, सब वेरी जगे हें ॥ धर्म ॥२॥थायो हे प्रथम सेन, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जश विलास कामको गयो हे रेन, हरिहर ब्रह्म जेण, एकलेने उगेहें, क्रोध मान माया लोज, सुजट महा अखोज, हारे सोय बोड योज, मुख देश जगेहें ॥ धर्मः॥३॥ नोकषाय नये खीन, पापको प्रताप हीन, ओर जट नये दिन, ताके पग उगेहें। कोउ नहीं रहे गढे, कर्म जो मिले ते गाढे, चरनके जिहा काढे, करवाल नगेहें ॥ धर्मः ॥४॥जगत्रय जयो प्रताप, तपत अधिक ताप, तातें नाहिं रही चाप, श्ररी तगतगेहैंसुजस निसान साज, विजय वधाइ लाज, ए. से मुनिराज, ताकुंहम पाय लगेहें॥धर्म०॥५॥इति ॥ ॥पद बावीशमुं॥ ॥ राग रामकली ॥ षनदेव हितकारी, जगत गुरु रुपनदेव हितकारी ॥टेक ॥ प्रथम तीर्थंकर प्रथम नरेसर, प्रथम यति ब्रह्मचारी॥रुषनदेव० ॥ ॥१॥ वरसी दान देई तुम जगमें, इसति इति निवारी ॥ तैसी काही करतु नांही करुना, साहिब बेर हमारी ॥ षज॥॥ मांगत नहिं हम हाथी घोरे, धन कन कंचन नारी ॥ दियो मोहि चरन कमलकी सेवा, याहि खगत मोहि प्यारी ॥ षज० ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १० जशविलास ॥ ३ ॥ जव लीला वासित सुर डारे, तुंपर सबहीं जवारी ॥ में मेरो मन निश्चल कीनो, तुम थापा सिरधारी ॥ रुषज० ॥ ४ ॥ ऐसो साहिब नहिं कोउ जगमें, यासुं दोय दिलदारी || दिलहि दलाल प्रेमके बिचे, तिहां हव खेंचे गमारी ॥ रुषज० ॥ ५ ॥ तुंमहि साहिब में हुं बंदा, या मत देऊ विसारी ॥ श्रीनय बिजय विबुध सेवकके, तुमहों परम उपकारी ॥ रुषज० ॥ ६ ॥ ॥ पद त्रेवीशमं ॥ ॥ राग वेलावल ॥ गौतम गणधर नमियें हो, अह निसि गौतम गणधर नमियें ॥ टेक ॥ नाम जपत नवही निधि पइएं, मन वंबित सुख लहिएं दो ॥ ० ॥ १ ॥ घर अंगन जो सुरतरु फलियो, कहा काज बन जमियें ॥ सरस सुरनि घृत जो हुवे घर में, तो क्यों तैले जमियें हो ॥ श्र० ॥ ॥ २ ॥ तेसी श्री गौतम गुरु सेवा, ओर वोर क्युं रमियें ॥ गौतम नामें जवजल तरिएं, कहा बहुत तनु दमियें ॥ श्र० ॥ ३ ॥ गुण अनंत गौतमके समरन, मिथ्यामति विष गमियें ॥ जस कड़े गौतम Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जशविलास गुनरस श्रागें, रुचत न हें हम अमियें॥हा॥इति॥ ___॥पद चोवीशमुं॥ ॥राग नह ॥ मुखदारे सुखदाइ, दादो पासजी सुखदा ॥ ऐसो साहिब नहिं कोउ जगमें, सेवा कीजें दील ला ॥ सुख ॥ १ ॥ सब सुखदाइ एह निनायक, एहि सायक सुसहाश् ॥ किंकरकुं करे शंकर सरिसों, श्रापे अपनी उकुरा ॥ सुख०॥ ॥२॥ मंगल रंग वधे प्रनु ध्याने, पापबेली जाए करमाश् ॥ सीतलता प्रगटे घट अंतर,मिटे मोदकी गरमा ॥ सुख ॥३॥ कहा करुं सुरतरु चिंतामनिकुं, जो में प्रनु सेवा पाइ॥श्री जसविजय कहे द. र्शन देख्यो॥घर अंगन नवनिधियाशासुख ॥॥इति ॥पद पचीशमुं॥ ॥ राग देशाख ॥ अबमें साचो साहिब पायो, टेक ॥ याकी सेव करतहुँ याकुं, मुज मन प्रेम सुहायो॥ अब० ॥१॥ गकुर श्रोरन होवे अपनो, जो दीजे घर मायो ॥ संपति अपनी खिनमें देवे, वेतो दिलमें ध्यायो॥अब० ॥२॥रनकी जन करत चाकरी, दूरदेश पाय घासे ॥अंतरयामी ध्याने Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जशविलास दीशे, वेतो अपने पासें ॥ श्रब० ॥ ३॥ श्रोर कब हुँ कोउ कारन कोप्यो, बहुत उपाय न तूसे । चिदानंदमें मगन रहतुहे,वेतो कबहुं न रुसे॥श्रबण॥४॥ थोरनकी चिंता चिंतीन मिटे,सब दिन धंधे जावे ॥ थिरता गुन पूरन सुख खेले, वेतो अपने जावें ॥ श्रवण ॥ ५॥ पराधीन हे जोग शोरको, जातें होत वियोगी॥सदा सिक समता विलासी, वेतो निजगुन जोगी॥अब० ॥६॥ ज्यौं जानो त्यों युगति न जानो, में तो सेवक उनको॥पक्षपात तो परसुं होवे, राग धरतहुँ गुनको ॥ श्रब० ॥ ७॥ नाव एक हे सब ज्ञानीको, मूरख नेद न नावे ॥ अपनो साहिब जो पहिचाने, सो जस लीला पावे ॥१०॥७॥ ॥ पद बवीशमुं॥ ॥ राग नूप कल्याण ॥सयनकी नयनकी बयनकी बबी नीकी ॥ मयनकी गोरीतकी लगी मोहि श्रवियां ॥ मनकी लगन जर अंगनीय लागे थली, कल न परत कबु कहा कहुं बतीयां॥सयनकी॥१॥ मोहन मनाउ मानी, कहा बनी रति गनी, शिवा देवीके नंदन मानो बिनतियां ॥ गुन गहो जस Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जशविलास घहो घर रहो सुख लहो, उःख गमो मुझ समो रंग रमो रतियां ॥ सयनकी॥२॥ इति ॥ पद सत्तावीशमुं॥ ॥ राग काफी हुशेनी ॥ साहिब ध्याया मन मोहना, अति सोहना जवि बोहना ॥साहिबा टेक॥ आजतें दिन सफल मेरे, मानु चिंतामनी पाया ॥ साहिब० ॥ १॥ चोसमझे मिलिय पूज्यो, शानी गुन गाया ॥ साहिब० ॥ ॥ जनम महोछव करे देव, मेरुशिखर से श्राया ॥दरिको मन संदेह जानी, चरनन मेरु चलाया ॥ साहिब० ॥३॥ अहि वैताल रूप देखी, देवें न वीर खोजाया॥प्रगट जये पाय लागी, वीरनाम बुलाया ॥ साहिब० ॥४॥ इस पूजे वीर कहे, व्याकरन नीपाया॥ मोहिथी निशाल घरन, युंहिं वीर पढाया ॥ साहिब० ॥ ५॥ वरसी दान दे धीर, लेश् व्रत सुहाया ॥ सालतले ध्यान ध्यातां, घाती धन खपाया ॥ साहिब०॥६॥ लहि अनंत ज्ञान आप, रूप जगमगाया॥जस कहे हम सोश् वीर, ज्यौतिसुं ज्योति मिलाया ॥सा॥ Jain Educationa' International For Personal and Private Use Only Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ___ जश विलास पद अठ्ठावीशमुं॥ ॥ राग केदारो दरबारी॥ श्रावे हाथी दलू साज गाजते, नेमजी घर श्रावे, ए देशी ॥ प्रजुबल दे. खी सुरराज, लाजतो श्म बोले । देखो बल नांग्यों चम सेरो, कोनहि जग तुम तोले ॥ प्रजु० ॥१॥ टेक ॥ चरन अंगुठे कंपित सुरगिरि, मानुं नाचत डोले ॥ इन मिसि प्रनु मोहि उपर तूने, हरख हियाको खोले ॥ प्रजु० ॥२॥ मरत शेषधर हरत महोदधि, जय नंगुर नूगोले ॥ दिसि कुंजर दि. ग्मूढ नए तब, सबहिं मिलत एक टोले ॥प्रजु ॥ ॥३॥ लीला बाल अबाल पराक्रम, तीन जुवन धंधोले ॥ जस प्रजु वीर महेर श्रब कीजें, बहुरि हुन परिहु नोले ॥ प्रजु० ॥४॥ इति ॥ ॥ पद ओगणत्रीशमुं॥ ॥ राग उपर प्रमाणे ॥ प्रनु धरी पीठ वेताल बाल, सात ताललों वाधे ॥ काल रूप विकराल नयंकर, लागत अंबर श्राधे ॥ प्रजु ॥१॥टेक ॥ बाल कहे को वीर ले गयो, परिजन देव श्राराधे ॥ तिल त्रिनाग चित्त वीर न खोज्यो, बल अनंत कुन Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जशविलास २३ “बाधे ॥ प्रजु० ॥२॥ वढत रहे नांहि सुरजिषण, जानु मोहि विराधे ॥ कुलिश कठिन दृढ मुष्टि मास्यो, संकुचित तनु मन दाधे ॥ प्रनु० ॥३॥सुर कहे परतख मोहि नयोहे, पानी रस विण खाधे ॥ जस कहे जे प्रसंस्यो तैसो, तुंदि वीर शिव साधे॥ प्रजु० ॥४॥ इति ॥ ॥ पद त्रीशमुं॥ ॥ राग श्रीराग ॥श्रब मोही ऐसीथाय बनी॥ टेक ॥ श्री संखेश्वर पास जिनेसर, मेरे तुं एक धनी ॥अब० ॥१॥ तुं बिनु कोउ चित न सुहावे,श्रावे कोडि गुनी ॥ मन दोरे तुज ऊपर रसियो, अदि जिम कमल ननी ॥ श्रब० ॥२॥ तुज नामें सवि संकट चूरे, नागराज धरनी ॥ नाम जपों निसिवासर तेरो, या सुन मुज करनी ॥ श्रब० ॥३॥ कोपानल उपजायत उर्जन, मथन वचन बरनी ॥नाम जपुं जलधार तिहां तुज, धारं कुःख हरनी ॥ अब० ॥४॥ मिथ्यामति बहु जन हे जगमां, मदन धरे धरनी॥उनतें हम तुज नक्ति प्रनावे,जय नहें एक कनी॥अब०॥५॥ सजान नयन सुधा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जशविलास रस अंजन, सुरजन रवि नरनी ॥तुज मूरत निरखे सो पावे, सुखजस लील घनी ॥श्रव॥ ६॥इति॥ ॥पद एकत्रीशमुं॥ ॥राग प्रजाति ॥ विमलाचल नित वंदिये, कीजे एहनी सेवा ॥ मानु हाथ ए धर्मनो, शिवतरु फल लेवा ॥ विमलाचल ॥१॥ टेक ॥ उज्वल जिनग्रह मंडले, तिहां दीपे उत्तंगा॥ मानु हिमगिरि विज्रमे, श्राश् अंबर गंगा ॥ विमलाचल॥२॥ को अनेरु जग नहीं, तीरथ ए तोले ॥एम श्री मुख धागलें, श्री सीमंधर बोले ॥ विमलाचलम् ॥ ॥३॥ जे सघला तीरथ करे, यात्रा फल लहिएं ॥ तेहथी ए गिरि नेटतां, शतगुणु फल लदिएं । वि. मलाचल ॥४॥ जन्म सफल होए तेहनो, जो ए गिरि वंदे॥सुजस विजय संपद लहे, ते नर चिर नंदे ॥ विमलाचल ॥ ५ इति ॥ ॥ पद बत्रीशमुं॥ ॥ राग देव गंधार ॥ देखो मा अजब रूप जिनजीको ॥ देखो०॥ टेक ॥ उनके श्रागें ओर सबनको, रूप लगे मोहि फीको ॥ देखो॥१॥ लोचन Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जश विलास २.५ करुना अमृत कचोले, मुख सोढ़े अति नीको ॥ क वि जस विजय कहे यों साहिब, नेमजी त्रिभुवन टीको | देखो० ॥ इति ॥ ॥ पद तेत्री शमुं ॥ ॥ राग गुर्जरी पूर्वी ॥ बाला रूप शाला गले, माला सोहे मोतनकी ॥ करे नृत्य चाला गोरी, टोरी मिलि जोरीसी ॥ देवरकुं रहि घेरी, सेना मानु काम केरी, गुनगाती यावे तेरी, करे चित चोरिसी ॥ विवाद मनावे खाली, पहिरी दखण फाली, वाकुं निहाले बाली, बोडी लाज छोरीसी ॥ तोजी नेमि स्वामि गज, गामी जस कामी जस, धामी रहे ग्र दि मौन ध्यान, धारा वज्र दोरीसी ॥ १ ॥ इति ॥ ॥ पद चोत्रीशमं ॥ ॥ राग धन्याश्री ॥ जबलग आवे नहिं मन गम ॥ टेक ॥ तबलग कष्ट क्रिया सवि निष्फल, ज्यौं गगने चित्राम || जबलग० ॥ १ ॥ करनी बिन तुं करे मोटाइ, ब्रह्मव्रति तुऊ नाम ॥ श्राखर फल न प्रदेगो ज्यों जग, व्यापारी बिनु दाम || जबलग० ॥ ॥ २ ॥ मुंग मुमावत सबदि गडरिया, हरिण, सेफ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६ जशविलास बन धाम ॥ जटाधार वट जस्म लगावत,रासस हतु हे घाम ॥ जबलगम् ॥३॥ एतेपर नहीं योगकी रचना, जो नहि मन विश्राम ॥ चित अंतर पर बलवेकुं चिंतवत, कहा जपत.मुख राम ॥ जबलग ॥४॥ बचन काय गोपें दृढ न धरे, चित्त तुरंग लगाम ॥ तामे तुं न लहे शिवसाधन, जिउ कण सुने गाम ॥ जबलग० ॥५॥ पढो ज्ञान धरो संजम किरिया, न फिरावो मन गम ॥ चिदानंद घन सुजस विलासी, प्रगटे आतमराम ॥ जबलग० ॥६॥ इति ॥ ॥पद पांत्रीशमुं॥ ॥ राग सोरठा ॥ चतुरनर सामायक नय धारो ॥ टेक ॥ लोक प्रवाह बांडकर अपनी, परिणति शुक विचारो ॥ चतुरनर ॥१॥ अव्यत अखय अनंग श्रातमा, सामायक निज जातें ॥ शुरूप समतामय कहीएं, संग्रह नयकी वातें ॥ चतुरनर० ॥२॥श्रब व्यवहार कहे युं सब जन, सामायक हुइ जावे ॥ तातें श्राचरना सो माने, ऐसा नैगम गावे ॥ चतुरनर ॥३॥ आचरना रिजुसूत्र Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जशविलास सिथलकी, बिनु उपयोग न माने ॥ श्राचारी उपयोगी थातम, सो सामायक जाने ॥ चतुरनर॥४॥ शब्द कहे संजत जो ऐसो,सो सामायक कहियें॥चो. थे गुनगने श्राचरना,उपयोगे जिन्न लहियें ॥ चतुरनर ॥ ५॥ अप्रमत्त गणे र्याको, समनिरूढ नय साखी ॥ केवल ज्ञान दशा थिति उनकी, एवंजूते नाखी ॥ चतुरनर ॥६॥ सामायक नय जो हु न जाने, लोक कहे सो माने ॥ ज्ञानवंतकी संगति नाहीं, रदियो प्रथम गुनगाने ॥ चतुर ॥७॥ सामायक नर अंतर दृष्टे, जो दिनदिन अच्यासें ॥ जग जसवाद लहे सो बैठगे, ज्ञानवंतके पासें ॥ चतुरनर ॥ ७॥ ॥पद बत्रीशमुं॥ ॥राग बिहागडो ॥ सबल या बाक मोह मदि राकी ॥ टेक ॥ मिथ्यामतिके जोरे गुरुकी, वचन शक्ति जिहां थाकी ॥ सबल ॥ १॥ निकट दशा बम जम उंची, दृष्टि देतहे ताकी॥न करे किरिया जनकुं नाखे, नहि नवथिति पाकी ॥ सबल ॥२॥ जाजन गत जोजन कोउ बांडी, दसत्तर जिऊं दोरे॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जश विलास गहत ज्ञानकुं किरिया त्यागी, होत श्रोरकी श्रोरें॥ सबल० ॥३॥ ज्ञानबात निसुनि सीर धूने, लागे निज मतिमी॥जो कोउ खोल कहे किरियाको, तो माने नृप चीठी ॥सबलाज्यु कोज तारु जलमें पेसी, हाथ पाउ न हलावे ॥ झानसेती किरिया सब लागी, युं अपनो मत गावे ॥ सबल ॥५॥ जैसे पाग कोज सिर बांध, पहिरन नाह लंगोटी। सगुरु पास किना बिनु सीखे,श्रागम बात त्युं खोटी॥ सबल०॥६॥ जैसे गज अपने सिर ऊपर, बगर श्रापही मारे ॥ ज्ञान ग्रहत क्रिया तुन्छारत, अल्पबुधि फल हारे ॥ सबल० ॥७॥ ज्ञान क्रिया दोउ शुद्ध धरेगे, शुद्ध कहे निरधारी ॥ जस प्रताप गुननिधिकी जाजं, उनकी में बबिहारी ॥ स. बल ॥ ॥ इति ॥ ॥पद सडनीशमुं॥ - ॥राग काफी जंगलो ॥ चेतन अब मोहि दर्शन दीजे ॥ टेक ॥ तुम दर्शन शिवसुख पामीजे, तुम दर्शन जव बीजे ॥ चेतन ॥ १॥ तुम कारन तप संयम किरिया, कहो कहांलों कीजे ॥ तुम दर्शन Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जशविलास बिनु सब या फूठी,अंतर चित्त न जीजे ॥ चेतना ॥२॥ क्रिया मूढमति कहे जन केश, ज्ञान थोरकुं प्यारो ॥ मिलत नावरस दोजन नाखे, तुं दो-तें न्यारो ॥चेतन॥३॥ सबमें हे ओर सबमें नाही, पूरन रूप एकेलो ॥ आप खनावे वे किम रमतो, तुं गुरु थरु तुं चेलो ॥ चेतन ॥४॥ अकल अलख प्रनु तुंसब रूपी,तुं अपनी गति जाने॥श्रगम रूप श्रागम अनुसारें, सेवक सुजस बखाने॥चेतन ॥५॥इति ॥ ॥पद अडत्रीशमुं॥ ॥राग नीम पलासी ॥ राम चिरीया चेहरीहो ॥ एदेशी ॥ मन कितहुं न लागे हेजेंरे ॥ मन॥ टेक ॥ पूरन श्रास नश्थली मेरी, अविनासीकी सेजेंरे ॥ मन ॥१॥अंग अंग सुनि पिउ गुन हरखे, लागो रंग करेजेंरे ॥ एतो फिटायबो नवि फिटे, करहु जोर जोरेजेरे ॥ मन० ॥२॥ योग अनालंबन नहिं निष्फल, तीर लगो ज्युं वेजेंरे ॥ अबतो नेद तिमिर मोहि नागो, पूरन ब्रह्मकी से. जेरे ॥ सुजस ब्रह्मके तेजेरे ॥ मन० ॥३॥इति ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जश विलास ॥ पद योगाचाली शमुं ॥ ॥ राग शोनी ॥ चिदानंद विनासीदो, मेरो चिदानंद विनासी हो ॥ टेक ॥ कोर मरोर करमकी मेटे, सहज खजाव विलासी हो ॥ चिदानंद० ॥ ॥ १ ॥ पुल मेल खेलजो जगको, सोतो सब दि बिनासी हो ॥ पूरन गुन अध्यातम प्रगटें, जागे जोग उदासी हो ॥ चिदानंद० ॥ २ ॥ नाम जेख किरिया - कुं सबदी, देखे लोक तमासी हो ॥ चिन मूरत चेतन गुन चिने, साचो सोउ सन्यासी हो ॥ चिदानंद० ॥ ३ ॥ दोरी देवारकी किति दोरे, मति व्यव - दार प्रकासी हो ॥ अगम अगोचर निश्चय नयकी, दोरी अनंत अगासी हो ॥ चिदानंद० ॥ ४ ॥ ना नाघटमें एक पिठाने, श्रतमराम उपासी हो ॥ नेद कलपना में जम मूल्यों, लुब्ध्यो तृष्णा दासी हो ॥ चिदानंद० ॥ धर्म सिद्धि नवनिधि हे घटमें, कहा ढुंढत जइ काशीदो ॥ जस कदे शांत सुधारस चाख्यो, पूरन ब्रह्म ज्यासी हो ॥ चिदा० ॥ ६ ॥ ॥ पद चालीशमुं ॥ ॥ राग दोरी ॥ दरी नारी टोले मिलि रंग हो For Personal and Private Use Only ३० Jain Educationa International Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जशविलास होरी ॥टेक॥फाग रमे तजी लाल, रंग होहोरी देत रकुं घेर रही ॥ रंगहो ॥ व्याह मनावन काज लाल ॥ रंग ॥१॥ ताल कंसाल मृदंगसुं ॥ रंग ॥ मधुर बजावत चंग लाल ॥ रंग ॥ गयब गुलाल नयन जरे ॥ रंग ॥ बश्न बजावे अनंग लाल ॥रंग ॥५॥ पिचकारी बांटे पीय ॥ रंग॥ जरी जरी केसर नीर लाल ॥रंग ॥ मार्नु मदन करती बटा ॥रंग ॥ अलवे उडावे अंबीर लाल ॥ रंग ॥३॥ योवन मद मदिरा बाकी ॥ रंग॥ गावत प्रेम धमाली लाल ॥ रंग॥ राचत माचत नाचती ॥रंग॥ कौतुकसुं करे श्राली लाल ॥रंगण॥ ॥४॥सोहे मुख तंबोलसुं॥रंग॥ मानु संध्यायुत चंद लाल रंग ॥ पूरित केसर फुलेखसुं॥रंग॥ जरत मेद ज्युं बुंद लाल ॥रंग ॥५॥ थण जुज मूल देखावती ॥रंग ॥ बाद लगावत कंठ लाल ॥ रंग ॥ कहे देवर परनो पीया ॥ रंग ॥ परना. बिन पुरुष उलंठ लाल ॥ रंग०॥६॥ रूख मिलित रहे वेलीसुं ॥रंग॥सागर गंगा रंग लाल ॥ रंग ॥ जान उगाने अजानवें ॥ रंग॥ किजं न करो त्रिया Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२ जशविलास संग लाल ॥ रंग ॥७॥ यु बिलास हरी नारीके ॥ रंग ॥ देखी धरे प्रनु मोन लाल ॥ रंग ॥ स्त्री शिशु सठ हठ न तजे ॥ रंग॥ करे वचन श्रम कों न लाल ॥ रंग ॥७॥ जनके जाने कदा जयो॥ रंग॥ मनको मान्यो प्रमान लाल ॥ रंग॥ चतुर. न चूके नेमजी ॥रंग०॥ पाए सुजस कल्यान लाल ॥रंग ॥ ए॥ इति ॥ ॥पद एकतालीशमुं॥ ॥ जयजय जयजय पास जिणंद ॥ टेक ॥ अंतरीक प्रनु त्रिभुवन तारन, नविक कमल उहास दिणंद ॥ जय० ॥१॥ तेरे चरन शरन में कीने, तुं बिनु कुन तोरे जवफंद ॥ परम पुरुष परमारथ दरशी, तुं दिये नविककुं परमानंद ॥ जय० ॥२॥ तुं नायक तुं शिव सुख दायक, तुं हित चिंतक तुं सुखकंद ॥ तुं जन रंजन तुं नव नंजन, तुं केवल कमला गोविंद ॥ जय० ॥३॥ कोडि देव मिलिके कर न शके, श्क अंगुठ रूप प्रतिबंद ॥ऐसो अद जुत रूप तिहारो, वरषत मानुं अमृतको बुंद॥जय ॥४॥ मेरे मनमधुकरके मोहन, तुम हो विमान Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जश विलास ३३ सरल अरविंद ॥ नयन चकोर विलास करतुहे, देखत तुम मुख पूरनचंद ॥ जय० ॥५॥ दूर जावे प्रजु तुम दासनतें, कुःखदोहग दालिज अघदंद ॥ वाचक जस कहे.सहस फलतें तुमहों, जे बोले तु. म गुनके वृंद ॥ ज० ॥६॥ ॥पद बेतालीशमुं॥ ॥राग धन्याश्री॥ वामानंदन जगदानंदन, सेवकजन श्रासा विसराम ॥ नेक निजर करी मोहि पर निरखो, तुम हो करुनारसके धाम ॥ वामा० ॥ ॥१॥टेक ॥ इतनी नूमि प्रनु तुमही धान्यो, परिपरि बहुत बढाइ माम ॥ अब उ चार गुनान बढावत, लागत हे क्या तुमकुं दाम ॥ वामा०॥ ॥२॥श्रह निसि ध्यान धरुं हुं तेरो, मुखथी न विसारूं तुम नाम ॥ श्रीनयविजय विबुध सेवक कहे, तुम हो मेरे आतमराम ॥ वामा ॥३॥ पद तेतालीशमुं॥ ॥ राग काफी ॥ अजीत देव मुफ वालहा, ज्यु मोरा मेहा ॥ टेक ॥ ज्यु मधुकर मन मालती, पंथी मन गेहा ॥ अजीत ॥१॥ मेरे मन तुंहि रुच्यो, प्र Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जशविलास नु कंचन देहा ॥ हरीहर ब्रह्म पुरंदरा, तुज श्रागें केहा ॥श्रजीत॥२॥ तुंही अगोचर को नहीं, सजन गुन रेहा ॥ चाहे ताकुं चाहिये, धरी धर्म सनेहा ॥ अजित ॥३॥ नक्ति वछल जग तारनो, तुंबिरुद वदेहा ॥ वीतराग हुए वालहा ॥ क्युं कर्म री बेहा ॥अजितः ॥ ४ ॥ जे जिनवर हे नरतमें, एरावत विदेहा ॥ जस कहे तुज पद प्रणमतें, सब प्रणमे तेहा ॥ अजित ॥५॥ ॥पद चुमालीशमुं॥ ॥ राग गोडी ॥ संजव जिन जब नयन मिल्यो हो ॥ टेक ॥ प्रगटे पूरव पुण्यके अंकुर, तबतें दिन मोहि सफल वत्यो हो ॥ संजव० ॥१॥अंगनमें श्रमियें मेह वूडे, जन्म तापको व्याप गयो हो ॥ जैसी नक्ति तैसी प्रजु करुना, श्वेत संखमें बुध मिल्यो हो ॥ संजव० ॥२॥ मरत फिरत दे रही दीलतें, मोह मन जिणे जगत्रय बस्यो हो ॥ समकित रतन लेहु दरिसणतें, अब न जाऊं कुगति रख्यो हो ॥ संजव० ॥३॥ नेह नजर जर निरखतही मुफ, अनुसुं हियडो हेज हव्यो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५ जशविलास हो ॥ श्रीनयविजय विषुध सेवककुं ॥ साहिब सुरतरु होय फल्यो हो ॥ संजव० ॥४॥ इति ॥ ॥पद पीसतालीशमुं॥ ॥ राग नट्ट ॥ प्रजुतें हियडो हेज हट्यो हो ॥ टेक ॥ याकी सोजा विजित तपस्या, कमल करतुंहे जलचारी॥ विधुके सरन गयो मुख थरिके, बनतें गगन हरिण हारी ॥ प्रज्जु ॥१॥सहजहि अं. जन मंजुल निरिषत,खंजन गरव दियो मारी॥बिन खर दे चकोरकी सोजा, अग्नि नखे सो पुःखजारी। प्रजुतें ॥२॥ चंचलता गुन लियो मीनको, अलि ज्यु तारी हे कारी ॥ कहुं सुजगता केती इनकी, मोहि सबहि अमरनारी ॥ प्रजुते ॥३॥ घूमत हे समता रसपाने, जैसे गजवर मद जारी॥ तीन जुवनमां नही को श्नको, अनिनंदन जिन अनुकारी॥ प्रजुते ॥४॥ मेरे मन तो तुमहि रुचत हे, परे कुन परकी लारी ॥ तेरे नयनकी मेरे नयनमें, जस कहे देउबविशवतारी॥प्रजुतें ॥५॥इति ॥ ॥पद बेतालीशमुं॥ ॥ राग मारु ॥ सुमति नाथ साचाहो ॥ टेक ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६ जश विलास पर पर परखत हि जया, जैसा हीरा जाचाहो ॥ श्रोर देव सवि परहस्या, में जाणी काचाहो ॥ सुमति० ॥ ॥ १ ॥ तेसी किरिया हे खरी, जैसी तुज वाचाहो ॥ थोर देव सवि मोहें जरया, सवि मिथ्या माचादो ॥ सुमति० ॥ २ ॥ चतरासी लखवेषमां, हुं बहु पर नाचाहो || मुगति दान देइ साहिबा, अब करहो ऊंचाड़ो || सुमति० ॥ ३ ॥ लागी अग्नि कषायकी, सब गेरही श्राचादो ॥ रक्षक जाणी श्रादस्या, में तुम शरन माचाहो ॥ सुमति० ॥ ४ ॥ पक्षपात नहिं को सुं, नहिं लालच लांचाहो ॥ श्रीनय विजय सुशिष्यको, तोसुं दिल राचाहो ॥ सुमति० ॥ ॥ इति ॥ || पद सुडतालीशमुं ॥ ॥ राग पूरवी ॥ घमि घमि सांजरें सांइ सलूना, घरि घ०ि ॥ टेक ॥ पद्म प्रभु जिन दिलसें न बिसरे, मानु कियो कबु गुनको टूना ॥ दरसन देखतही सुख पाउं, तो चिन होतढुं उजा मूना ॥ घमि० ॥ १ ॥ प्रजुगुन ज्ञान ध्यान विधि रचना, पान सुपारी काथा चूना ॥ राग जयो दिलमें योगें रहे छिपाया बाना वूना ॥ घमि० ॥ २ ॥ प्रजुगुन For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जशविलास ३७ चित्त बांध्यो सब साथे, कुन पेसे ले घर खूना ॥ राग जग्या प्रजुसु मोहि परगट, कहो नया कोऊ कहो जूना ॥ घमि ॥ ३॥ लोक लाजसें जो चित चोरे, सोतो सहज विवेकही सूना ॥ प्रजुगुन ध्यान विगर भ्रम नूला, करे किरिया सो राने रूना ॥ घमि ॥ ४ ॥ मेंतो नेह कियो तोहि साथे, अब निवाह तोतो व हूना॥जस कहे तो बिन पोरन सेवू, अमिय खाश्कुन चाखेचूना॥घमि०॥॥इति॥ ॥ पद अडतालीशमुं॥ ॥ राग श्मन कल्याण ॥ ऐसे सामी सुपार्श्वसें दिल लगा, उखनगा सुख जगा जगतारणा ॥राजहंसकुं मानसरोवर, रेवा जल ज्युं वारणा ॥ ऐसे ॥१॥ टेक ॥ मोरकुं मेह चकोरकुं चंदा, मधु मनमथी चित्त गरना ॥ फूल अमूल जमरकी अंबही, कोकिलकुं सुखकारना ॥ ऐसे ॥२॥सीताकं राम काम ज्यु रतिकुं, पंथीकं घर बारना ॥ दानी कुं त्याग याग बह्मनकुं, योगीकुं संयम धारना ॥ ऐसे ॥३॥ नंदनवन ज्युं सुरकुं वन, न्यायीकुं न्याय निहारना ॥ त्युं मेरे मन तुंहि सुहायो, थोर Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३० जशविलास तो चिततें उतारनां ॥ ऐसे० ॥ ४॥ श्रीसुपार्श्व दरिशन पर, तेरे, कीजें कोमी जवारना ॥ श्री नय विजय विबुध सेवककुं, दियो समता रस पारना। ऐसे ॥२॥ इति ॥ ॥ पद गणपचाशमुं ॥ ॥ राग रामग्री ॥ श्रीचंद्रप्रन जिनराज राजे, वदन पूनमचंदरे ॥ जविक लोक चकोर निरखत, लहे परमानंदरे ॥ श्रीचंद्र० ॥ १ ॥ टेक ॥ महमदे महिमाएं जसजर, सरस जस अरविंदरे ॥ र कणे कविजन जमर रशिया, लहि सुख मकरंदरे ॥ श्री चंद्र ॥ २ ॥ जस नामे दोलत अधिक दिये, टले दोहग दंदरे ॥ जस गुन कथा जव व्यथा जांजे, ध्यान शिवतरु कंदरे || श्री चंद्र० ॥ ३ ॥ विपुल हृदय विशाल जुजयुग, चलित चाल गयंदरे ॥ - तुल अतिशय महिमा मंदिर, प्रणत सुरनर वृंदरे ॥ श्री चंद्र० ॥ ४ ॥ में दास चाकर प्रभु तेरो, शीष्य तुज फरजंदरे ॥ जस विजय वाचक इम विनवे, टालो मुज जव फंदरे ॥ श्री चंद्र० ॥ ५ ॥ इति ॥ ॥ पद पचाशमुं ॥ ॥ राग केदारो ॥ में कीनो नहीं तो बिन थोर For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५ जशविलास सुराग ॥ टेक ॥ दिनदिन वान चढे गुन तेरो, ज्यु कंचन परजाग ॥ ओरनमें हे कषायकी कलिका, सो क्यु सेवा लाग ॥ में कीनो॥१॥राजहंस तुं मानसरोवर , ओर अशुचि रुचि काग ॥ विषय जुजंगम गरुम तुं कहियें, ओर विषय विषनाग ॥ में कीनो ॥२॥ओर देव जल बीलर सरिखे, तुं तो समुज अथाग ॥ तुं सुरतरु जग वंबित पूरन, ओर तो सुको साग ॥ में कीनो० ॥३॥ तु पुरुषोत्तम तहि निरंजन, तुं शंकर वडनाग ॥ तूं ब्रह्मा तुंबकि महाबल, तुंदि देव वीतराग ॥ में कीनो ॥४॥ सुविधिनाथ तुज गुन फूलनको, मेरो दिल हे बाग॥ जस कहे जमर रसिक होइ तामें, लीजें नक्ति पराग ॥ में कीनो ॥५॥ पद एकावनमुं॥ ॥राग फागनी देशी॥चन कसाय पाताल कल श जिहां, तृष्णा पवन प्रचंग ॥ बहु विकल्प कबोल चढतुहे, श्रारति फेन उदंड ॥ १ ॥ जवसायर जीषण तारीएं हो, अहो मेरे ललना ॥ पासजी त्रिजुवन नाथ दिलमें,ए विनति धारियें हो॥१०॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४० जश विलास ॥ २ ॥ जरत उदाम काम वडवानल, परत सैल गिरी शृंग ॥ फिरत व्यसन बहु मगर तिमिंगल, करतड़े निमग उमंग ॥ ० ॥ ३ ॥ नमरी याके बिच जयंकर, उलटी गुलटी वाच ॥ करत प्रमाद पिशाच सहित जिहां, श्रविरति व्यंतरी नाच ॥ ० ॥ ४ ॥ गर्जत अरति फुरति रति विजुरी, होत बहोत तोफान ॥ लागतियोरकुं गुरु मलबारी, धरम जिहाज निदान ॥ ० ॥ ५ ॥ जुरई पाटे ए जिन अति जोरी, सहस अढार शीलंग ॥ धरम जिहाज तिउ सज करी चलवो, जस कहे शिवपुर चंग ॥ ० ॥ ६॥ ॥ पद बावनसुं ॥ ॥ख टलियां मुख दीठे हो मुज सुख उपनोरे, नेट्यो नेट्यो वीर जिणंदरे ॥ दवे मुज मनमंदिरमां प्रभु श्रावी वसोरे, पाजुं पामुं परमानंदरे ॥ ० ॥ ॥१॥ पीठ बंध हां कीधो समकीत वज्रनोरे, काढ्यो काढ्यो कचरो नें भ्रांतिरे ॥ हां श्रति उंचा सोहे चारित्र चंडुखारे, रूडी रूडी संवर जांतिरे ॥ ० ॥ ॥ २ ॥ कर्म विवर गोखे इहा मोति जुमकारे, जुले Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जशविलास ४१ जुले धीगुण आठरे ॥ बार नावना पंचाली श्रचरय करेरे, कोरी कोरी कोरणी काउरे ॥ ०॥॥हां श्रावी समता राणीसुंप्रखरमोरे,सारि सारि थिरता सेजरे ॥ किम जश् शकशो एकवार जो श्रावशोरे, रंज्या रंज्या हियमानी हेजरे ॥ मु०॥४ ॥ वयज अरज सुनी प्रजु मनमंदिर आवियारे, श्रापे तुग तुग त्रिजुवन नाणरे ॥ श्री नयविजय विबुध पय सेवक नणेरे, तेणे पाम्या पाम्या कोमि कल्यापरे ॥ पु० ॥५॥ इति ॥ ॥पद त्रेपनमुं॥ ॥सङन राखत रीति नली, बिनु कारन उपकारी उत्तम, जाइ सहज मिति ॥ उर्जनकी मन परिनति काली, जैसी होय गली ॥ स॥१॥ोरनको देखत गुन जगमें, उर्जन जाये जली ॥ फल पावे गुन गुनको ज्ञाता, सजन हेज हली ॥ स० ॥ ॥॥ऊंच इति पद बेठो फुर्जन, जाइ नांहिं बली ॥ उपगृह उपर बेठी मीनी, होत नहिं उजली॥ स ॥३॥ विनय विवेक विचारत सजन, ना कलाव जली ॥ दोष लेश जो देखे कबहुँ, चाले Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जशविलास चतुर टली ॥ स०॥४॥ अब में ऐसो सऊन पायो, उनकी रीत जली ॥ श्रीनय विजय सुगुरु सेवातें, सुख रस रंग रली ॥ स० ॥५॥ इति ॥ ॥पद चोपनमुं॥ आज श्रानंद जयो, प्रजुको दर्शन सह्यो, रोम रोम सितल लयो, प्रजु चित्त आयो हे॥श्रा॥मन ढुंते धास्या तोहे, चलके आयो मन मोहे, चरण कमल तेरो, मनमें ठहरायो हे॥श्रा ॥१॥श्रकल अरूपी तुंही, श्रकल अमूरति योही, निरख निरख तेरो, सुमतिशुं मिलायो ॥श्रा॥॥ सुमति खरूप तेरो, रंग नयो एक अनेरो, वारंग श्रास्म प्रदेशे, सुजस रंगायो हे ॥ श्रा० ॥३॥इति ॥ ॥पद पंचावनमुं॥ ॥ ज्ञानादिक गुण तेरो, अनंत अपर अनेरो॥ वाही कीरत सुन मेरो, चित्तहुँ जस गायो हे ॥ झान० ॥१॥ तेरो ग्यान तेरो ध्यान, तेरो नाम मेरो प्रान, कारण कारज सिको, ध्याताध्येय ठहरायो हे ॥ ज्ञा० ॥२॥ बूट गयो भ्रम मेरो, दर्शन पायो में बेरो॥चरण कमल तेरो, सुजस रंगायो हे॥ज्ञा॥३॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४३. जशविलास ॥ पद उप्पनमुं॥ ॥ बाद बादीसर ताजे, गुरु मेरो गछ राजे, पंच महाव्रत जहाज, सुधर्मा ज्युं सवायो हे॥ बा ॥ ॥१॥ बिध्याको वडो प्रतापसंग, जल ज्युं उठत तुरंग, निरमल जेसो संग, समुफ कहायो हे ॥ बा० ॥२॥ सत्तसमुन नस्यो, धरम पोत तामे तस्यो, शील सुखान वालम, क्षमालंगर मास्यो हे॥ बा० ॥३॥ सहरू संतोष करी, तपतो तपी ह्या नरी, ध्यान रंजक देत धरी, मोला ग्यान चलायो दे॥ बा ॥ ४ ॥ एसो जहाज क्रियाकाज, मुनिराज सजो साज, दया मया मणि माणिक, ताहिमें जरायो हे ॥ बा० ॥५॥ पुण्य पवन श्रायो, सुजस जहाज चलायो, प्राणजीवन एसो माल, घर बेठे पायो हे ॥ बा ॥६॥ इति ॥ ॥पद सत्तावनमुं॥ ॥एरी आज श्रानंद जयो मेरे तेरो, मुख निरख निरख रोम रोम शीतल जयो अंगोअंग ॥ ए॥ सुक समजल समता रस जीलत, आनंद रंग ज. यो अनंतरंग ॥ ए॥१॥ एसी थानंद दशा प्र. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४ जश विलास गटी चित्त, अंतर ताको प्रजाव चलत, निरमल गंगवादी गंग ॥ समता दोन मिल रहे, जस विजय जीलत ताके संग ॥ ए० ॥ २ ॥ ॥ पद अठावनमुं ॥ ॥ जो जो देखे वीतरागने, सो सो होशे वीरारे ॥ बिन देखे होसे नहीं कोई, कांइ होए अधीरा रे ॥ जो० ॥ १ ॥ समय एक धनहीं घटसी, जो सुख दुःखकी पीमारे ॥ तुं क्युं सोच करे मन कूका होवे वज्र जो हीरारे ॥ जो० ॥ २ ॥ लगे न तीर कमान बान क्युं, मारी सके नहीं मिरारे ॥ तुं संजार पुरुष बल अपनो, सुख अनंत तो पीरारे ॥ जो० ॥ ३ ॥ नयन ध्यान धरो वा प्रजुको, जो टारे जव जीरारे ॥ सजसचेतन धरम निज अपनो, जो तारे जव तीरारे ॥ जो० ॥ ४ ॥ इति ॥ ॥ पद प्रोगणसामुं ॥ ॥ जजन बिनुं जीवित जेसे प्रेत, मलिन मंदमति डोलत घर घर, उदर जरनके देत ॥ ज० ॥ १ ॥ डुर्मुख वचन बकत नित निंदा, सजन सकल दुःख देत ॥ कबहुं पापको पावत पैसो, गाढे धुरीमे देत ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जशविलास ४५ जः॥२॥ गुरु ब्रह्मन श्रचुत जन सजान, जातन कवण निवेत ॥ सेवा नहीं प्रजु तेरी कबहु, जुवन नीलको खेत ॥ ज०॥३॥ कथे नहीं गुन गीत सु. जस प्रजु, साधन देव अनेत ॥ रसनारस विगारो कहांलों, बुडत कुटुंब समेत ॥ न० ॥ ४ ॥ इति ॥ ॥पद साठमुं॥ ॥प्रज्जु तेरो गुन ज्ञान, करत मदा मुनि ध्यान, समरत श्रागे जाम, हृदेमें समायो हे ॥ प्रजु०॥ ॥१॥ मन मंजन कर लायो, सुक समकित ठहरायो, वचन काय समजायो, एसे प्रजुकुं ध्यायो हे ॥प्र० ॥२॥ध्यायो सही पायो रस, अनुभव जाग्यो जस, मिट गयो भ्रमको रस,ध्याता ध्येय समायो हे ॥ प्रण ॥३॥ प्रगट जयो महा प्रकास, ज्ञानको महा उदास ॥ एसो मुनिराज ताज, जस प्रजु यो हे॥ प्र० ॥४॥ ॥पद एकसपमुं॥ ॥राग कनमो ॥ ए परम ब्रह्म परमेश्वर, परम श्रानंदमयि सोहायो ॥ ए परतापकी सुख संपत्ती बरनी न जात मोपें, ता सुख अलख कहायो॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६ जशविलास ए० ॥१॥ता सुख ग्रहवेकुं मुनि मन खोजत, मन मंजन कर ध्यायो । मनमंजरी जश, प्रफुल्लीत दसा लश्, तापर जमर लोजायो ॥ ए० ॥२॥नमर श्रनुन्जव नयो, प्रजुगुन वास लह्यो ॥चरन करन तेरो, अलख लखायो ॥ एसी दशा होत जब, परम पुरुष तब, पकरत पास पठायो ॥ ए० ॥३॥ तब सुजस नयो, अंतरंग आनंद लह्यो, रोम रोम सीतल न. यो, परमात्म पायो ॥ अकल स्वरूप नूप, कोऊ न परखत कूप, सुजस प्रनु चित श्रायो ॥ ए० ॥४॥ ॥पद बासठमुं॥ ॥ राग ध्रुपद ॥ केसे देत कर्मनकुं दोस, मन निवहे वेहे श्रापुकानो ॥ ग्रहे राग अरु दोष ॥के०॥ विषयके रस श्राप नूलो, पाप सो तन ठोस ॥॥१॥ देवधर्म गुरुकी करी निंदा, मिथ्यामतके जोस ॥के ॥२॥ फल उदय नइ नरक पदवी, नजोगे केको संग ॥ के० ॥३॥ किए श्रापुं कर्म जुगतें, अब कहा करो सोस ॥॥॥ फुःख तो बहु काल वीत्यो, लहे न सुख जल श्रोस०॥ के० ॥५॥क्रोध मान माया खोन, जस्यो तन घट गेस ॥ के० ॥६॥चेत चेतन Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जशविलास ४ पाय सुजस, मुगति पंथसो पोस ॥ के इति । ॥ पद त्रेसपमुं॥ ॥ राग गोडी सारंग ॥ तुहारे शिर राजत श्रजब जटा, बारके मानुं गयल न बारत ॥ सीस सपगार बटा ॥ तुहारे ॥१॥ किधुं गंगा श्रमरीस सुर सेवत, यमुना उन्नय तटा ॥ गिरिवर सिखरें एह अनोपम, उन्नत मेघ घटा ॥ तु॥२॥ केसे बाल लगे जवि नवजल, तारत अति विकटा ॥ ह. रि कहे जस प्रजु षन रखो ए, हम हिंथति उलटा ॥ तु० ॥३॥ ॥पद चोसम्मुं॥ ॥ राग बिहाग ॥ माया कारमीरे, माया म करो चतुर सुजाण ॥माया वायो जगत ववुधो, फुःखीयो थाय अजान ॥ जे नर मायायें मोहि रह्यो, तेने सुने नही सुख ठगम ॥ माया ॥१॥न्हाना मोटा नरखी माया, नारीने अधकेरी॥ वली विशेष अधिकी माया, गरढाने जाजेरी मायाजा॥ माया कामण माया मोहन, माया जग धूतारी ॥ मायाथी मन सहुनुं चलीयुं, लोनीने बहु प्यारी ॥माया॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४० जशविलास ॥३॥ माया कारन देश देशांतर, अटवी वनमा जाय ॥ जहाज बेसीने छीप छीपांतरें, जश् सायर जंपलाय ॥ माया ॥ ४॥ माया-मेली करी बहु नेली, लोने लक्षण जाय ॥ जयथी धन धरतीमा गाढे, उपर विसहर थाय ॥ माया ॥५॥ योगी जति तपसी संन्यासी, नग्न थर परवरिया ॥ बंधे मस्तक अग्निता, मायाथीन उगरिया ॥ माया॥ ॥६॥ शिवजूति सरिखो सत्यवादी, सत्यघोष कहेवाय ॥ रत्न देखी तेनुं मन चलियुं, मरीने 3. गति जाय ॥ माया ॥७॥ लोज धरत मायायें रमियो, पमियो समुल मोकार ॥ मुठ माखनीयो थश्ने मरियो, पोतो नरक मोकार ॥ माया॥७॥ मन वचन कायायें माया, मूकी वनमां जाय ॥धन धन ते मुनिश्वर राया, देव गांधर्व जस गाय ॥ माया ॥ए ॥ इति ॥ ॥ पद पांशपमुं॥ ॥ कब घर चेतन श्रावेंगें, मेरे कब घर चेतन श्रावेंगे ॥ टेक ॥ सखिरि लेबु बलैया बार बार ॥ मेरे कब० ॥ रेन दीना मानुं ध्यान तुं साढा, कब Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जश विलास हुंके दरस देखावेंगे ॥ मेरे कब० ॥ १॥ विरह दीवानी फिरु ढुंढती, पीठ पीन करके पोकारेंगे ॥ पीउ जायं मले ममतासे,काल अनंत गमावेंगे॥मेरे कबण ॥२॥ करुं एक ज़पायमें उद्यम, अनुजव मित्र बोलावेंगे ॥ श्राय उपाय करके अनुनव, नाथ मेरा समजावेंगे ॥ मेरे कब० ॥३॥ अनुजव मित्र कहे सुनो साहेब, अरज एक अवधारेंगे ॥ ममता त्याग समता धर अपनो, वेगें जाय मनावेंगे ॥ मेरे कब०॥४॥अनुजव चेतन मित्र मिले दोऊ, सुमति निशान घुरावेंगे ॥ विलसत सुख जस लीलामें, अनुजव प्रीति जगावेंगे ॥ मेरे कब० ॥५॥इति ॥ ॥पद गसपमुं॥ ॥ राग मोतीमानी देशी ॥ सूरत मंगन पास जिणंदा, अरज सुणो टालो पुःख दंदा ॥ साहेबा रंगीला हमारा, मोहना रंगीला ॥ तुं साहेब हुँ ढुं तुज बंदा, प्रीति बनी जैसी कैरव चंदा ॥सा॥९॥ तुजसुं नेह नहीं मुज काचो, घणही न नांजे हीरो जाचो सा॥ देतां दान ते कांश विमासो, लागे मुज मन एह तमासो ॥ सा० ॥॥ केडलागा ते केड न Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५० जशविलास बोमे, दीयो वंडित सेवक करमें ॥ सा॥ अक्षय खजानो तुज नवी खूटे, हाथा थकी तोसुं नवी बूटे ॥ सा ॥३॥जो खिजमतमां खामी दाखो, तो पण निज जाणी हित राखो॥ सा ॥ जेणे दी, डे तेहज देशे, सेवा करशे ते फल लेशे ॥सा॥४॥ धेनु कूप आराम खनावे, देतां देतां संपत्ती पावे ॥ सा॥तिम मुजने तमो जो गुण देशो,तो जगमा जस अधिक वहेशो ॥ सा ॥५॥ अधिकुं श्रोढुं किशु रे कहावो, जिमतिम सेवक चित्त मनावो ॥ सा॥ माग्या विण तो माय न पिरसे, ए उखाणो साचो दिसे ॥ सा ॥६॥ श्म जाणीने विनती कीजें, मोहनगारा मुजरो लीजें ॥ सा ॥ वाचक जस कहे खमियें आसंगो, दियो शिव सुख धरी अविहड रंगो ॥ सा ॥७॥ इति ॥पद सडसपमुं॥ ॥राग श्राशावरी॥चेतन मोहको संग निवारो, ग्यान सुधारस धारो ॥चे॥१॥ मोह महातम मल दूरेरे, धरे सुमति परकास ॥ मुक्ति पंथ परगट करेरे, दीपक ज्ञान विलास ॥ चे ॥२॥ ज्ञानी ज्ञान म Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जशविलास गन रहेरे, रागादिक मल खोय ॥ चित्त उदास करनी करेरे, कर्मबंध नहिं होय ॥॥३॥ लीन जयो व्यवहारमें रे, युक्ति न उपजे कोय ॥दीन नयो प्रजु पद जपेरे, मुगति कहांसुं होय ॥ चे० ॥४॥प्रनु समरो पूजो पढोरे, करो वीविध व्यवहार ॥ मोद खरूपी श्रातमारे, ग्यान गमन निरधार ॥चे ॥ ॥५॥ ज्ञान कला घट घट वसेरे, जोग जुगतिके पार ॥ निज निज कला उद्योत करेरे, मुगति होय संसार ॥ चे ॥६॥ बहु विध क्रिया कलेसशुं रे, शिव पद न लहे कोय ॥ग्यान कला परगाससों रे,स. हज मोद पद होय ॥ चे ॥ ७॥अनुजव चिंतामणि रतनरे, जाके हश्ए परकास ॥ सो पुनीत शिव पद लहेरे, दहे चतुर्गतिवास ॥ चे॥७॥ महिमा सम्यक् ग्यानकीरे, अरुचि राग बल जोय ॥ क्रिया करत फल जुजतेरे, कर्म बंध नहिं होय ॥चे॥ए॥ नेद ग्यान तबलों जलोरे, जबलों मुक्ति न होय ॥ परम जोति परगट जिहारे, तिहां विकल्प नहिं को. य ॥ चे ॥ १० ॥ नेद ग्यान साबू जयोरे, समरस निर्मल नीर ॥ धोबी अंतर आतमारे, धोवे निज गुण चीर ॥ चे० ॥ ११ ॥ राग विरोध विमोह मलीरे, ए. Jailt Educationa International For Personal and Private Use Only Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जशविलास ही श्राश्रव मूल ॥ एही करम बढायकेंरे,करे धर्मको नूल ॥ चे॥१२॥ ग्यान सरूपी आतमारे, करेग्यान नहिं थोर ॥ अव्यकर्म चेतन करै रे, एह व्यवहारकी दोर ॥ चे ॥ १३ ॥ करतां परणामी अव्य रे, कर्मरूप परिणाम॥किरिया परजयकी फिरतरे,वस्तु एकत्रय नाम ॥चे॥ १४ ॥ करता कर्म क्रिया करेरे, क्रिया करम करतार ॥ नाम नेद बहुविध नये रे, वस्तु एक निर्धार ॥ चे० ॥ १५ ॥ एक कर्म कर्तव्य. तारे, करे न करता दोय ॥ तेसें जस सत्ता सधिरे, एक नावको होय ॥ चे० ॥ १६ ॥ इति ॥ ॥पद अडसम्मुं॥ ॥राग धन्याश्री ॥ जबलग उपसमनांहिं रति, तब लगे जोग धरे क्युं होवे, नाम धरावे जति ॥ जब० ॥१॥ कपट करे तुं बहु विध जाते, क्रोधे जले बति ॥ ताको फल तुं क्या पावेगो, ग्यान विना नां. -हिं बती ॥ जब० ॥२॥ नूख तरस ओर धूप सहतु हे, कहे तु ब्रह्म व्रति ॥ कपट केलवे माया मंमे, म. नमें धरे व्यकती॥ जब ॥३॥जस्म लगावत गढो रहेवत, कहत हे हुँ वसति ॥ जंत्र मंत्र जमी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जशविलास ५३ बूटी खज, लोनवश मूढ मति ॥ जब० ॥४॥बडे बडे बहु पूर्वधारी, जिनमें सक्ति इति ॥ सोनी उपसम डोमी बीचारे, पाये नरक गति ॥ जब० ॥५॥ कोउ गृहस्थ कोन होवे वैरागी, जोगी जगत जति॥ अध्यात्म जावें उदासी रहेगो, पावेगो तबही मुगति । जब० ॥ ६॥ श्री नय विजय विबुध वर राजे, जाने जग कीरति॥श्री जस विजय उवद्याय पसायें, हेम प्रजु सुख संतति ॥ जब० ॥ ७॥ इति ॥ ॥पद अगणोतेरमुं॥ ॥राग रामग्री ॥ चंडप्रजु जिनराज राजे, वदन पूनम चंदरे॥नविक लोक चकोर निरखत, खदे परमानंदरे ॥ चं ॥ १॥ महमहे महिमायें जमर, रस जस अरविंदरे ॥ रणफणे नविजन चमर रसिया, लहि सुख मकरंद रे ॥ चं॥२॥जस नामें दोलत अधिक दीपे, टले दोहग दंदरे ॥ जसगुण कथा जवव्यथा नांजें, ध्यान शिवतरु कंद रे ॥ चं०॥ ॥३॥विपुल हृदय विशाल जुजयुग, चलत चाल गयंदरे ॥ अतुल अतिसय महिमा मंदिर, प्रणत सुर नर वृंदरे ॥ चं०॥ ४ ॥ हुँ दास चाकर देव तोरो, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४ जशविलास सिस तुज फरजंदरे ॥ जसविजय वाचक एम विनवे, टाल मुज जव फंद रे ॥ चंद्र० ॥ ५ ॥ इति ॥ ॥ पद सित्तेरमुं ॥ ॥ राग काफी ॥ तो बिना थोर न जाचुं जिनंदराय ॥ तो० ॥ टेक ॥ में मेरो मन निश्चय किनो, एहमां कतु नहिं काचुं ॥ जिनंदराय ॥ तो ० ॥ १ ॥ तम चरन कमलपर पंकज मन मेरो अनुभव रस जर चाखुं ॥ अंतरंग अमृत रस चाखो, एह वचन मन साधुं ॥ जी० ॥ तो० ॥ २ ॥ जस प्रभु ध्यायो महारस पायो, अवर रसें नहिं राचुं ॥ अंतरंग फ रस्यो दरसन तेरो, तुज गुण रस रंग माचुं ॥ जी० ॥ तो० ॥ ३ ॥ इति ॥ ॥ पद इकोतेरमुं ॥ ॥ राग प्रजाती ॥ दृष्टि रागें नवि लागियें, वली जागियें चित्तें ॥ मागियें शिख ज्ञानी तणी, हठ जांगीएं नित्यें ॥ दृष्टि० ॥ १ ॥ जे बता दोष देखे नहिं, जिहां जिहां यति रागी ॥ दोष बता प दाखवे, जिहांथी रुचि जांगी ॥ दृ० ॥ २ ॥ दृष्टि राग चले चित्तथी, फरे नेत्र विकरालें || पूर्व उप For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जशविलास ५५ कार न सांजले, पडे अधिक जंजाले ॥ १० ॥३॥ वीर जिन जब हुता विचरता, तव मंखली पूत्तो ॥ जिन करी जड जने श्रादस्यो, श्हां मोह अति धू. तो ॥ १०॥४॥धि नंडार रमणी तजी, नजी श्राप मति रागो ॥ दृष्टि रागें जमाली लह्यो, नवि नवजल तागो ॥ ६ ॥ ५॥ वली श्राचार्य सावय जे, हुओ अनंत संसारो ॥ दृष्टि राग खमति पणे थयो, महानिशीथ विचारो ॥ १० ॥६॥ हुवे जि. न धर्म थाशातना, अजाण्युं कहे रंगें ॥ मंमुथा. गदें जिनवरें, वंदियो जगवर अंगें ॥ ६ ॥७॥ ग्रामना नटने मूर्खनो, मिख्यो जेहवो जोगो ॥हष्टिराग मिल्यो तेहवो, कथक सेवक लोगो ॥ १० ॥ ॥ ॥ श्रापण गोउडी मीठमी, हठीने मन लागे ॥ ज्ञानी गुरु वचन रसियामणां, कटुक तीरस्यां वागे॥ दृ०॥ ए ॥ दृष्टिरागें भ्रम उपजे, वधे ज्ञान गुण रागें ॥ एहुमां एक तुमें श्रादरो, जलो होय जे श्रागें। ६० ॥ १० ॥ दृष्टि रागी कदा मत हुवो, सदा सुगुरु श्रनुसरजो ॥ वाचक जसविजय कहे, हित शिख मन धरजो ॥ १० ॥ ११॥ इति ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जशविलास ॥ पद बहोतेरमुं॥ ॥राग गोडी ॥ जब लगें समता क्षणुं नहिं श्रावे, जबलगें क्रोध व्यापक हे अंतर, तबलगें जोग न सोहावे ॥ ज० ॥१॥ बाह्य क्रिया करें कपट केलवे, फिरके महंत कहावे ॥ पक्षपात कबहु नहिं बोडे, उनकुं कुगति बोलावे ॥ जब० ॥२॥ जिन जोगीने क्रोध किदांतें, उनकुं सुगुरु बतावे ॥ नाम धारक जिन्न निन्न बतावे ॥ उपसम विनु दुःख पावे ॥ ज० ॥३॥ क्रोध करी खंधक श्राचारज, हुश्रो अग्निकुमार ॥ दंडकी नृपनो देश प्रजाल्यो, नमियो जव मोकार ॥ ज ॥४॥ संब प्रद्युम्न कुमार संताप्यो, कष्ट दीपायन पाय ॥क्रोध करी तपनो फल हास्यो, कीधो धारकां दाय ॥ ज० ॥५॥काउस्सग्गमा चढ्यो श्रति क्रोध, प्रसन्न चंड शषिराय ॥ सातमी नरक तणां दल मेली, कडवां तेन खमाय॥ ज०॥६॥पार्श्वनाथने उपसर्ग कीधो, कम नवंतर धीठ ॥ नरक तिर्यंचनां दुःख पामी,क्रोध तणां फल दीठ ॥ ज० ॥ ७॥ एम अनेक साधु पूर्वधर, तपिया तप करी जेद ॥कारज पझे पण ते नवि Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जश विलास ຊອ टकिया, क्रोध तणुं बल एह ॥ ज० ॥ ८ ॥ समता जाव वली जे मुनि वरिया, तेदनो धन्य अवतार ॥ खंधक ऋषिनी खाल उतारी, उपसमें उतारयो पार ॥ ज० ॥ ए ॥ चंडरुद्र श्राचारज चलतां, मस्तक दीया प्रहार ॥ समता करतां केवल पाम्यो, नवदीक्षित अणगार ॥ ज० ॥ १० ॥ सागरचंदनुं शीश प्रजास्युं, नीसनसेन नरेंद्र ॥ सुमता जाव धरी सुरलोकें, पोतो परम श्रानंद ॥ ज० ॥ ११ ॥ खेमा करतां खरच न लागे, जांगे कोड कलेस ॥ अरिहंत देव श्राराधक थाये, वाधे सुजस प्रवेश ॥ ज० ॥ १२ ॥ रति ॥ ॥ पद तदोंतेरमुं ॥ ॥ राग धन्याश्री ॥ प्रभु मेरे तुं सब वातें पूरा, परकी प्राश कहा करे प्रीतम, ए किए वातें अधूरा ॥ प्रभु ॥ १ ॥ परवश बसत लहत परतद दुःख, सबहीं बासें सनूरा || निजघर आप संचार संपदा, मत मन होय सनूरा ॥ प्र०॥२॥ परसंग त्याग लाग निजरंगें, यानंद वेली अंकूरा ॥ निज अनुजवरस लागे मीठा, ज्युं घेवर में बूरा ॥ प्रभु० ॥ ३ ॥ अपने ख्याल पलक में खेले, करे शत्रुका चूरा ॥ सहजानंद Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जशविलास अचल सुख पावे, घरेजगजस नूरा॥प्रजु० ॥॥इति॥ ॥पद चम्मोतेरमुं॥ ॥ अथ श्री पूजाविधिनुं पार्श्व जिन स्तवन ॥ ॥ शालिना जोगी रह्यो ॥ ए देशी ॥ पूजाविध मांहे नावियेंजी, अंतरंग जे नाव ॥ ते सवि तुक श्रागल कहुंजी,साहेब सरल खन्नाव। सुहंकर अवधारो प्रजुपास ॥ ए श्रांकणी ॥ दातण करतां नाविएंजी, प्रजुगुण जल मुख सुरु ॥ ऊल उतारी प्रमत्तताजी, हो मुझ निर्मल बुझ ॥ सु॥ ॥२॥ जतनायें स्नानें करीजी, काढो मेल मिथ्यात॥ अंगुगे अंग शोषवीजी, जाणो हुँ अवदात ॥ सु॥३॥ क्षीरोदकनां धोतियांजी, चित्तवो चित्त संतोष ॥ श्रष्टकर्म संवर जलोजी, श्राउपडो मुहकोश ॥ सु० ॥४॥ श्रोरशीयो एकाग्रताजी, केसर ज. क्ति कल्लोल ॥श्रझा चंदन चिंतवोजी, ध्यान घोल रंग रोल ॥ सु० ॥५॥ नाल वढं आणा नतीजी, तिलकतणो तेह नाव ॥ जे श्रानरण उतारीयेंजी, ते उतारो निज नाव ॥ सु०॥६॥ जे निर्माल उतारियेंजी, ते तो चित्त उपाध, पखाल करतां चिंतवोजी, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जश विलास ५ निर्मल चित्त समाध ॥ सु० ॥ ७ ॥ अंग लूणां बे धर्मनांजी, आत्म खजाव जे अंग ॥ जे श्रारण पहेरावी एंजी, ते स्वजाव निजचंग ॥ सु० ॥ ८ ॥ जे नववाडी विशुद्धताजी, ते पूजा नव अंग ॥ पंचाचार विशुद्धता जी, तेह फूल पंचरंग ॥ सु० ॥ ॥ ए ॥ दीवो करतां चिंतवोजी, ज्ञान दीपक सुप्रकास ॥ नयचिंता घृत पूरियुंजी, तत्त्व पात्र सुविलास ॥ सु०॥ १० ॥ धूप रूप ति कार्यताजी, कृष्णागरुनो जोग ॥ शुद्ध वासना मह महेजी, ते तो अनुव योग ॥ सु० ॥ ११ ॥ मद स्थानक अड बांडवाजी, तेह अष्ट मंगलिक ॥ जे नैवेद्य निवेदियेंजी, ते मन निश्चल टीक ॥ सु० ॥ १२ ॥ लवण उतारी जावीएंजी, कृत्रिम धर्मनो त्याग ॥ मंगल दीवो अति जलोजी, सुद्ध धरम परजाग ॥ सु० ॥ १३ ॥ गीत नृत्य वाजिंत्रनोजी, नाद नाद असार ॥ समरति रमणी जे करीजी, ते साचो थेइ कार ॥ सु० ॥ ॥ १४ ॥ जावपूजा एम साचवीजी, सत्य वजारें घंट | त्रिभुवन मांहे ते विस्तरेजी, टाले कर्मनो कंट ॥ सु० ॥ १५ ॥ एषी परें जावना जावतांजी, साहेब जस सुप्रसन्न ॥ जनम सफल जग तेहनोजी, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६० जशविलास तेह पुरुष धन धन ॥ सु०॥ १६ ॥ परम पुरुष प्रजु सामलाजी,मानो ए मुज सेव ॥ दूर करो नव श्रमलोजी, वाचक जस कहे देव ॥ सु०॥ १७॥ इति ॥ ॥ पद पंचोतेरमुं॥ ॥राग गोडी ॥ संजव जिन नयन मिल्योहे, प्रगटे पुण्यके अंकूर ॥ ए श्रांकणी॥ तबथें दिन मोही सफस वस्यो ॥ अंगणे अमीये मेह बुग, जनम तापको व्याप गयो हे॥ संज॥१॥ जैसी नक्ति तैसी प्रनु करुना, स्वेत संखमें दूध मिल्यो हे॥ दर्शनथें नवनिधि रिधि पाश्, फुःख दोहग सब दूर टल्यो हे ॥ संज० ॥२ ॥ मरत फिरत हे दूरहिं दिलथे, मोहमदल जिणे जगत्र जल्यो हे॥ समकित रत्न लहुं दरिसनसें,अब नवि जालं कुगति रख्यो हे॥ संज ॥३॥ नेह नजर नर निरखनही मुज, प्रजुसुं हैयडो देज हव्यो हे॥ श्री नयविजय विबुध सेवककुं, साहेब सुरतरु होय फल्यो हे॥ ॥ संज० ॥४॥ इति ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विनयविलास ॥अथ। ॥श्रीविनय विलास प्रारंभः॥ ॥ पद पेहेढुं॥ ॥ राग जयजयवंती ॥ सजन सलूने लाल, चरन न बोरुं ताल, मेरे तो अजब माल, तेरोश जजनहे ॥१॥ दोलत न चाहुं दाम, काम सुन मेरे काम, नाम तेरो श्रागे जाम, जिउको रंजन हे ॥२॥ तेरो हुं श्राधीन लीन, जल ज्युं मगन मीन, तीन जग केरो प्रनु, फुःखको नंजन हे ॥३॥ नानि मरु देवानंद, नयन श्रानंदचंद, चरन विनय तेरो,अमियको अंजन दे ॥४॥ ॥पद बीजुं॥ ___॥राग कनडो दरबारी ॥ या गति बोरदे गुन गोरी ॥तु गुन गोरी० ॥ टेक ॥ श्रचरिज एडं मिसे शशि पंकज, बिच जमुना वहेलोरी॥ या गति॥ ॥१॥चल गिरनार पिया दिखलावू, बहुरि जोरि रति होरी ॥ मुगति महलमें मिले राजुल नेम, विनय नमे कर जोरी॥या गतिम् ॥२॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६५ . विनयविलास ॥पद त्रीजुं॥ ॥ राग कल्याण नूपाल ॥ मेरी गति मेरी मति, मेरी रति मेरि बति, मेरो पिया मेरो जिया, यफुपति यतियां ॥ मेरी ॥१॥ मेरो ज्ञान मेरो ध्यान, मेरो प्रान मेरोत्रान, मेरो जश सुनि थनिधान, मोहि उवसति बतियां ॥ मेरी ॥२॥ गए गिरनार मोकुं, बारि रस डारि तोज, रहि चित्त दिन रति, जे. से दीया बतियां ॥ मेरी० ॥ ३॥मेरे तुंहिं मेरे तुंहि, शिवा देवी नंद तुंहि, मानो पिया राजुलकी, बिनय बिनतियां ॥ मेरी० ॥४॥ इति ॥ ॥पद चोथु॥ ॥ राग दरबारी कनडो॥ कुरमति मारदे मेरे प्रानी ॥टेक॥ जूठी सब संसारकी माया, जूठी गरव गुमान।। फुरमति॥१॥ श्राप न बूके मोह निंदसुं, मोले उनियां दिवानी ॥ वीतराग दुःख मारण दिलसुं, विनय जपो शुद्ध ज्ञानी ॥पुरमति॥॥इति॥ ॥पद पांचमुं॥ ॥ राग भूपाल तथा गोडी ॥ प्यारे काहेकुं ल. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विनय विलास लचाय ॥ टेक ॥ या दुनियांका देख तमासा, देखतहि सकुचाय ॥ प्यारे० ॥१॥ मेरी मेरी करत हे बाउरे, फीरे 'जिउ अकुलाय ॥ पलक एकमें व. हुरि न देखे, जलबुंदकी न्याय ॥ प्यारे॥२॥कोटि विकल्प व्याधिकी वेदन, लही शुद्ध लपटाय ॥ झान कुसुमकी सेज न पाश्, रहे अघाय श्रघाय ॥ प्यारे ॥३॥ किया दोर चिहुं शोर जोरसें, मृग तृष्णा चित्तलाय॥प्यास बुजावन बुंद न पायो, यौंदि जनम गुमाय ॥ प्यारे ॥४॥ सुधा सरोवर हे या घटमें, जिसने सब कुःख जाय ॥ विनय कहे रुदेव दिखावे,जो लाउ दिल गय ॥प्यारे॥५॥इति॥ ॥पद हुं॥ .. ॥ राग सामेरी ॥ पिउजी मोहि दरिसन दीजी एंरे ॥ टेक ॥ तेरे दरशनकी में प्यासी, तुं कहा जयो उदासी ॥ पिउजी० ॥१॥ पिउ पिउ जपतें जर टुक, नयनो निंदकी बाजीरे ॥ तब देखा पिन प्रेमसें फनी. संकचि रहि में लाजीरे ॥ पिजजी॥ ॥२॥ रसिक न राख्यो हृदेसुं नीरी, सखिमें बहुत वरांसीरे ॥ अब पाउं तो पाउ न गेलं, राखुं रंग Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६५. विनयविलास बिलासी रे ॥ पिउजी॥३॥ पिउके गुनकी मोतन माला, कंठ करौं जप मालीरे ॥ चकित जये मेरे लोचन चिहुं ओर, सुरिजन पंथ मिहालीरे ॥ पितजी ॥४॥ कहे मति नारी जीवन प्यारे, में हुं तेरी बंदीरे ॥ गोद बिग बिनय विनोदें, घर श्रावो श्रानंदी रे ॥ पिउजी० ॥५॥ इति ॥ ॥ पद सातमुं॥ ॥ राग मिश्रित बिहागडो ॥ प्यारे प्रीतमजी हठ गेरो ॥ टेक ॥ तोरन आए फिरे कुन कारन, कीहें रच्यों या गोरो ॥ प्यारे ॥१॥ मोसु कीनी ऐसी गाइ, जैसें करत गोरो ॥ फूल जगतमें कांहि दिखायो, एसो ब्याह बरघोरो ॥ प्यारे ॥ ॥२॥ में तो नाहन बोरुं नव नवको जूस्यो प्रेमको जोरो ॥ अबतो चरन बिनय मोहि दीजें, रा. जुल करत निहोरो ॥ प्यारे ॥३॥इति ॥ ॥ पद आठमुं॥ ॥राग जयजयवंती ॥ सुरत मंडन पास, देखत अति उदास, सुजस सुवास जास, जगतमें जोतहे ॥ सुरत मोहनरूप, सुर नर नमे नूप, अकल Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विनयविलास सरूप सामि, अधिक उद्योत हे ॥१॥ नमत नमत नव, पायो प्रनु अनिनव, सुरतरु सुख सब, देयन प्रवीन दे॥ तेरा करुं गुन ग्यान, सोउ दिन सुविहान, तिहारे चरन. मेरो, दिल लयलीन हे ॥२॥ मुगट कुंडल माल, रतन तिलकनाल, सुगुन रसाल लाल, पूजा बनि हेमकी ॥ केसर कपूर फूल, धूप धरंबहुमूल, बिनयकुं दिजे टुक, निजरज्युं प्रेमकी॥३॥ ॥ पद नवमुं॥ ॥राग मेघ मल्हार ॥ जिउ प्रान मेरे मोहन, करं बिनती दोउ करही जोर ॥ बिन गुन्हा क्यों बोरि सिधाए, महर करहु यादो सिरके मोर ॥ जिउ०॥ १॥ बिरह विज्ञान जग्यो मेरे जिउमें, पिउ पिउ दे सबही तोर ॥सूऊ न परत अजब गतिया कलु, कीधो बिजोग संजोगकी दोर ॥जीज ॥२॥ पलक एक कल न परत मोकुं, पिट पिउ रटत हो तही जोर ॥ चमक लोह ज्यौं खेंच दिउँ मन, चले प्रेमकी बांह मरोर ॥ जिज ॥३॥ लियो बीन मन मानिक मेरो, जिनको मूल हये लख करोर॥ तो अब मोहि दिजे मन अपनो, करहो नीश्राउ पिउ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६ विनय विलास मकरो जोर ॥ जिन० ॥ ४ ॥ रतन तीन दीजें राजु लकुं, जयो रंगरस ऊकही जोर ॥ बिनय सदा सेव हु सुखदाइ, समुदराज शिव। देवी किसोर ॥ जिउ० ॥ ५ ॥ इति ॥ ॥ पद दशमुं ॥ ॥ राग जेजेवंती ॥ जहुं कहालौं प्यारे, रहोगे हमसुं न्यारे, वाहितो धुतारि प्यारि, तुम चित्त ना5 दे ॥ १ ॥ बहुत बिगोइ खोइ, इनही सकल गुन ॥ लोगन में शोजा तुम, जलि युं बढाई हे ॥ २ ॥ - मकुं काहेकुं मानो, वाहिसो तिहारो तानो ॥ जानोगे पहि वातो, जैसी दुःखदाइ दे ॥ ३ ॥ सबनकुं प्यारी नारी, माया हे जगतदारी ॥ इनसेंतें यारी जारी, श्रखर बुराइ दे ॥ ४ ॥ जूते हि दिखावे नेह, पाथरकी जैसी त्रै ॥ बटकी दाखेंगी बेद, अंत तो पराइ हे ॥ ५ ॥ कड़े ज्ञान कला जिउ, जानो सो करदो पिन, जैसी हे तैसी तो तुम, बिनये सुनाइ दे ॥ ६ ॥ इति ॥ गीरमुं ॥ ॥ पद राग बिहागडो ॥ सांइ सलूनाकेसें पाऊरी, मन For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विनयविलास थिर मेरा न होय ॥ दिन सारा बातोमें खोया, रजनी गुमाइ सोय ॥ सांइ० ॥१॥ टेक ॥ बेर बेर बर ज्यामै दिलकुं, बरज्या न रहे सोय ॥ मन उर मदमत्त बाला कुंजर,, अटके न रहे दोय ॥ सां० ॥ ॥२॥ बिन ताता बिन शीतल होवें, जिनुक हसे डिनु रोय ॥ उिनु हरखे सुख संपति पेखी, डिनु रे सब खोय ॥ सांइ० ॥३॥ वृथा करत हे कोरी कुराफत, नावी न मिटे कोय ॥ या कीनी में याहि करुंगी, यौंही नीर बिलोय ॥ सां० ॥४॥ मन धागा पिउ गुनको मोती, हार बनाई पोय ॥ बिनय कहे मेरे जिनके जीवन, नेकनिजर मोहे जो५ । सां० ॥५॥ इति ॥ ॥पद बारमुं॥ ॥राग नट ॥थिर नांहिरे थिर नांहि, यावत धन यौवन थिर नांहि ॥ पलक एकमें बेद दिखावत, जैसी बादलकी गंहि ॥ थिर ॥१॥टेक ॥ मेरें मेरे कर मरत बिचारे, पुनियां अपनी करीचाही॥ कुलटा स्त्री ज्यौं उलटा होवे, या साथ किसिके ना याहि ॥ थिर ॥२॥ कहे उनियां कहा हसे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६०. विनयविलास बाउरे, मेरी गति समजौं नाहिं ॥ केतेही गेरे में प्यासे, केते उर गहे बांदि ॥ थिर ॥३॥ सयन सनेह सकल दे चंचल, किसके सुत किसकी मा॥ रितु बसंत शिर रूख पात ज्यौं, जाय परोगे को कांही॥ थिर ॥४॥ अजरामर अकलंक अरूपी, स. ब लोगनकुं सुखदाय॥ बिनय कहे जव फुःख बंधनतें, बोडनहार वे सांश् ॥ थिर ॥५॥ ॥पद तेरमुं॥ ॥ राग बिहागडो ॥ मन न काहुके वश, मन कीए सब वश, मनकी सो गति जाने, याको मन वश हे॥१॥ पढोहो बहुत पाठ, तप करो जै पाहार, मन वश कीए बिनु, तप जप बशहे ॥२॥ काहेकुंफीरे हे मन, काहु न पावेगो चेन, विषयके उमंग रंग, कलु न फुरसहे ॥३॥ सोउ ज्ञानी सोउ ध्यानी, सोउ मेरे जीया यानी॥जिने मन वशकियो, वाहिको सुजश दे ॥४॥ विनय कहे सौ धनु, याको मनु लिनु बिनु, सां सां सां सांझ, सांसें तिरस हे॥५॥इति ॥पद चौदमुं॥ ॥ राग श्रीराग ॥ अजब तमासा इक नाख्या ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विनयविलास ६ए टेक ॥ कोउ जात हे दोनु जोरे, पिडला श्रगिला सुंहास्या॥श्रजब॥॥श्राय नजीक मले जब पीबला, तंब श्रगिला रिहु दोरे ॥ पिडला जोर स जोख्या चाहे, अगिला दोरतहि दोरे ॥ अजब० ॥ ॥॥खोड खाडका चेन बिचारे, श्रागिला थांखो मुदि मगें ॥ पिबला बापरा लिनु छिनु अटके, कयरे ऊंखर जाय लगे ॥ अजब० ॥ ३ ॥ तब प्रजुने एक उर पाया, उने जाय श्रागिला बांध्या ॥ पि. बला तबथें रहा उदासी, साहिबने बहु सुख साध्या ॥ अजब॥४॥ एक नीच श्रति एकहि मध्यम, एक उत्तम प्रनुकुं प्यारा ॥ या तिनोकुं बिनय पिबान्यो, रहो अधमसेंतीन्यारा ॥थजब० ॥५॥ति॥ ॥ पद पन्नरमुं॥ ॥राग नेरध ॥ जागो प्यारें नयो सुबिहान, श्री तीर्थकर उदयो जान ॥ जागो ॥ ए टेक ॥ पाए जविक मन कमल बिकास, उड गए औगुन नरम उदास ॥जागो॥॥नयन उघारी बिलोको कंत,मोहतिमिर अब श्रायो अंत ॥प्रगटी ज्ञान कलाकी ज्योत, मुगति पंथ अब जयो उद्योत ॥ जागो ॥२॥सुप Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ go विनय विलास नमें मूंकी रह्यो मेरे लाल, इन विधि गया अनंता काल || अब सुनेका बोडो ख्याल, या सब जूहा मिथ्या जाल | जागो० ॥ ३ ॥ या अपावन माया सेज, उसपर पिऊका इतना हेज ॥ सुकलध्यान पखारो अंग, युं प्रगटे तुम निर्मल रंग ॥ जागो० ॥ ४ ॥ पिन निरखो जिनराज दिनंद, कड़े मति नारी मिटे युं निंद || आप संजालो खोली नेत, विनयकरी विनको पि चेत ॥ जागो० ॥ ५ ॥ ॥ पद शोलमुं ॥ ॥ राग ॥ हुसेनी ॥ खुदा के बंदे वे सीर मत व्यो बज गारी ॥ एदेशी ॥ सुन सुहागिन बे दिलकी बात - मारी ॥ टेक ॥ में सोदागर दूर बिदेशी, सोदाकरने खाया ॥ देखत तोकुं नूलिगया सब तो दिसुं चित्त लाया || सुन० ॥ १ ॥ निसी वासर तेरे रस राता, अपने काम न बूके || तेरे विरह दरदतें - रपूं, क्युं दुस्मनसें ॥ सुन० ॥ २ ॥ सुंदरी तें कबु कामन कीया, तुज बिनु पलक न जावे ॥' लोचन लागी रहे तेरी लालच, र कटु न सोहावे ॥ सुन० ॥ ॥ ३ ॥ अरथ गरथ सब तुजे खिलाया, दमरा ए For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विनयविलास क'न कमाया ॥ क्युंकर जा मिलुं सांकुं, व्याया कबु न लाया ॥सुन॥॥ विनयवती तुं खरी पियारी, जो अब करी हुशीयारी ॥ मुंदसी करे तो मिलु सांसुं, अविहड.करं श्रयारी ॥ सुन० ॥५॥इति॥ ॥ पद सत्तरमुं॥ राग उपर प्रमाणे ॥ काया कामनी बेलाल, सुनी कहे जिऊरा ॥ मेंहु बंदी बेलाल, तुं मेरा पिऊरा॥ पिऊरा सुनिबे करूं बिनती, म करी पोरसें नेहरे ॥ दो दिवसकी या दाम दोलत, देत लिनुमें बेहरे ॥१॥ तुं गुमास्ता बेलाल, अपने शेउका ॥ ले जा यगा बेलाल, हुकमी ठेठका ॥ ठेठका आवे हुकम जब तुहीं, पलक श्क न शके रही। तो कहा मूरख करे धंधा, अंते तेरा कबु नहीं ॥२॥हो ने खुश्रा बेलाल, अपने सांश्का, नाहु चोरीए बेलाल, नाहक पाश्का ॥ पाश्का नाहक चोरी उसका, जब नवि देत जबापरे ॥ तब ताहिकुं दे दूर दोऊख, दोष देखे आपरे ॥३ ॥ सोदा हकका बेलाल, एसा कीजीएं, होवे फायदा बेलाल, साहिब रीजीएं ॥ रीकीएं साहिब युं निवाजे, आप फुःखतें उझरे ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विनयविलास बिनती इतनी मानी बालिम, बेपरवाही मत करे ॥४॥ तुं परदेशका बेलाल, पंथी पाहुणा, प्रीत में बांधी बेलाल, क्युं रहुं तो विना ॥ तुं बिना क्युं करी, रहुं फुःख नरी, सती युं संमें चर्बु ॥ सांश्का करी बिनय सङान, युं अनेदें तुज मिद् ॥ ५॥इति ॥ पद अढारमुं॥ ॥ राग श्राशावरी ॥ कहा करुं मंदिर कहा करूं दमरा, न जानें कहां तुं उड बेठेगा नमरा ॥जोरी जोरी गए गेरी दुमाला, उड गए पंखी पड रह्या माला ॥ कहा ॥१॥ टेक ॥ पवनकी गठरी केसें पराज, घर न बसत थाय बेठे बटाउ। अगनी बुजानी काहेकी कारा, दीप बीपे तब केसे उजारा ॥ कहा ॥२॥ चित्रके तरुवर कबहुं न मोरे, माटिका घोरा केतेक दोरे ॥ धुंएकी हेरी तूरका थंना, उहां खेले हंसा देखो अचंना ॥ कहा॥३॥फिरि फिरि आवत जात ऊसासा, लापरे तारेका कैसा विश्वासा ॥ या पुनियांकी जूठी हे यारी, जैसी बनाश् बाजीगर बारी॥ कहा ॥४॥परमातम अविचल अबिनासी, सोहे शुरु परम पद वासी ॥ वि. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विनय विलास न कहे वे साहिब मेरा, फिर न करू फेरा ॥ कहा० ॥ ५ ॥ इति ॥ ॥ पद प्रोगणीशसुं ॥ ॥ राग काफी ॥ किसके चेले किसके दूत, श्रातमराम किला अवधूत ॥ जिउ जानले ॥ श्रहो मेरे ज्ञानी का घर सुत ॥ जिउ जानले, दिल मानले ॥ १ ॥ थप सवारथ मिलिया अनेक, आए इकेला जावेगा एक ॥ जि० ॥ दि० ॥ २ ॥ मढी गिरंदकी झूठे गुमान, आजके काल गिरेंगी निदान ॥ जि० ॥ दि० ॥ ३ ॥ तीसना पावडली बर जोर, बाबु काहेकुं साचो गोर ॥ जि० ॥ दि० ॥ ४ ॥ श्रागि गिठी नावेगी साथ, नाथ रमोगे खाली हाथ || जि० ॥ दि० ॥ ५ ॥ श्राशा जोली पत्तर लोज, विषय निक्षा जरी नायो योज | जि० ॥ दि० ॥ ६ ॥ करमकी कंथा डारो दूर, विनय विराजो सुख जरपूर || जि० ॥ दि० ॥ ७ ॥ इति ॥ ॥ ॥ पद वीशमुं ॥ ॥ राग श्राशावरी ॥ घोरा जूठा दे रे तुं मत भूले असवारा ॥ टेक ॥ तोहि मुघा ए लगतुहे प्यारा, For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४ विनयविलास ए अंत होयगा न्यारा ॥ घोरा ॥१॥ चरे चीज अरुमरे केदसुं, उवट चले अटारा ॥ जीन करे तब सोया चाहे, खानेकुं हुशिधारा ॥ घोरा ॥२॥ खूब खजीना खरच खिलावों, यो.सब न्यामत चारा॥ सवारीका अवसर होवे, तब गलिया होवे गमारा ॥ घोराण॥३॥ बिनु ताता बिनु प्यासा हो वे, खिजमत (बहुत) करावनहारा ॥ दूर दोर जंगल में मारे, रे धनी बिचारा ॥ घोरा ॥४॥कर हो चोकमा चातुर चोकस, यो चाबक दोयचारा ॥श्न घोरेकुं विनय सिखाउँ, युं पावो नवपारा॥घोरा॥५॥ ॥पद एकवीशमुं॥ ॥राग आशावरी ॥ पांचो घोरे एक रथ जूता, साहिब ऊसका जितर सूता ॥ खेडु उसका मद मतवारा, घोरेकुं दोरावनहारा ॥ पांचो ॥१॥ टेक ॥ घोरे जूठे ओर ओर चाहे, रथकुंफिरि फिरि उवट वाहे ॥ विषम पंथ चिहुं उर अंधियारा, तोनि न जागे साहिब प्यारा ॥ पांचो॥२॥ खेर रथकुं दूर दोरावे, बेखबर साहिब फुःख पावे ॥ रथ जंगलमां जाय असुळे, साहिब सोया कबुथ न Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विनयविलास बू ॥ पांचो ॥३॥ चोर गोरे जहां मिलि श्राये, दोनुकुं मदप्याला पाए ॥ रथ जंगल में जीरण कीना, मालधनीका उदारी लीना ॥पांचो॥॥धनी जग्या तब खेड्डु बांध्या, रासी परांना से सिर सांध्या ॥चोर जगे रथ मारग लाया, अपना राज बिनय जिऊ पाया ॥ पांचो० ॥ ५॥ इति ॥ ॥पद बावीशमुं॥ ॥राग सोरठ ॥ चतुर विचारो चतुर विचारो, ते कुण कहियें नारीजी ॥ पीउथी क्षण एक न रहे श्रलगी, कुलवंती अति सारीजी ॥ च ॥१॥ ना. चे माचे प्रियसुंराचे, रमे जमे प्रीय सार्थेजी ॥ एक दिने सा बाली तरुणी, नवि ग्रहवाये हाथजी॥०॥ ॥२॥ चीर चीवर पहेरी सा सुंदरी, उंडे पाणी पेसेजी ॥ पण जीजाये नहीं तस कांक्ष, अचरज ए जग दीसेजी ॥ च ॥३॥ वादल काले मरे ततंकालें, पातप योगें जीवेजी ॥ अंधारामां जो निसि जाय, तो देखाउँ दीवेजी ॥ च ॥४॥ अवधि क हुं बु मास एकनी, थापो थरथ विचारीजी कीर्ति Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६ . विनयविलास विजय वाचक शिष्य जपे, बुध जननी बलिहारीजी ॥ च० ॥५॥ इति ॥ ॥पद त्रेवीशमुं॥ ॥राग श्राशावरी ॥ जोगी एसा होय फलं, परम पुरुषशुं प्रीत करुं ॥ उरसें प्रीत हरु ॥ १ ॥ निर विषयकी मुखा पहेरुं, माला फीराऊं मेरा मनकी ॥ ग्यान ध्यानकी लाठी पकरु, जनूत चढाऊं प्रजुगुनकी ॥२॥शील संतोषकी कंथा पढेरे, विषय जलावु धूणी ॥ पांचं चोर पेरें करी पकरूं, तो दिलमें न होय चोरी हुंणी ॥३॥खबर लेऊ में खिजमत तेरी, शब्द सींगी बजाऊं ॥ घट अंतर निरंजन बेठे, वासुं लयलगाऊं ॥ ४ ॥ मेरे सुगुरुने उपदेश दिया है, निरमल जोग बतायो ॥ विनय कहे में उनकुं ध्याकं, जिने सुफ मारग दिखायो ॥ ५ ॥ इति ॥ ॥पद चोवीशमुं॥ ॥ मगध देशको राज राजेसर ॥ एदेशी ॥ जंगलथी एक जायो चोपद, नयर वसंतो दीगे॥ नवि बीये नवी नासे त्रासे, बेसे थिर अति धीगे॥१॥ चतुर नर अर्थ विचारी कहियें ॥ चतुराई निवहीयें। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विनय विलास चतुरनर॥नहिंतो गरव न वहियें॥ चतु॥ एटेक॥ जीव दया पालक रंगीलो,थावियो तुम काम ॥अंगुल लघुयुग गुरु सरवाले, निधिश्रदर तस नाम ॥चतु०॥ ॥२॥ घनरिपु तसरिपु तसरिपु सेवक, मंदिर नंदन जेह ॥ तरुणो पण निज दारि खोले, खेले नित नेह ॥ चतु॥३॥ रोग रहित काया अति निमल, पण तस एक विकार॥ पी पीश्ने नाके नाखें, न रहे पेटें थाहार ॥ चतु ॥॥ तात सहोदर तास नपुंसक, पासे बेतुं सोहे ॥ विनय नणे जे अर्थ कहे ते, पंमितनां मन मोहे ॥ चतु०॥५॥ इति ॥ ॥ पद पचीशमुं॥ ॥ राग श्राशावरी ॥ साधु नाश् सोहे जैनका रागी, जाकी सुरत मूल धुन लागी ॥ सा॥टेक ॥ सो साधु श्रष्ट करमसुं जगडे, सुन बांधे धर्मशाला ॥॥ सोहं शब्दका धागासांधे, जपे अजंपा मा: ला ॥ साधु ॥१॥ गंगा यमुना मध्य सरसति, अधर वंहे जलधारा ॥ करीथ स्नान मगन हुश्बेठे, तोड्या कर्म दल नारा ॥ साधु ॥२॥ आप श्रज्यंतर ज्योति बिराजे, अंकनाल ग्रहे मूला ॥ पबिम Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 30 विनय विलास दिशाकी खमकी खोलो, (तो) बाजे अनहद तूरा ॥ साधु० ॥ ३ ॥ पंचभूतका नरम मिटाया, बड़े मांहिं समाया ॥ विनय प्रभुसुं ज्योत मिलि जब, फिर संसार न श्राया ॥ साधु० ॥ ४ ॥ इति ॥ ॥ पद ब्वीशसुं ॥ ॥ राग गोमी ॥ शांति तेरे लोचन हे अनियारे ॥ शां० ॥ टेक ॥ कमल ज्यों सुंदर मीन ज्यौं चंचल, मधुकरथी प्रति कारे ॥ शां० ॥ १ ॥ जाकी मनोहरता जीत बनमें, फिरते हरिन बिचारे ॥ चतुर चकोर पराजव निरखत, बपरे चुनत अंगारे ॥ शां० ॥ ॥ २ ॥ उपशम इसके अजब चकोरे, मानो बिरंची संजारे || कीर्त्तिं विजय वाचक को विनयी, मोकों हे अति प्यारे || शां० ॥ ३ ॥ इति ॥ ॥ पद सत्तावीशमं ॥ ॥ राग गोडी ॥ तोलों बेर बेर फिर आवेंगें, जीऊ जीवन मेरे प्यारे पीयुकी, जो जो सोजन पावेंगे ॥ तोलों ||१|| बिहर दिवानी फिरुं हुं ढूंढती, सेज न साज सुहावेंगे ॥ रूपरंग जोबन मेरी सहियो, पीयु बिन केसें देह देखावेंगे ॥ तोलों० ॥२॥ नाथ For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विनय विलास gu निरंजन के रंजनकुं, बोत सिणगार बनावेंगे ॥ करले बीना नाद नगीना, मोहनके गुन गावेंगे ॥ तोलों० ॥ ३ ॥ देखत पीयुकुं मनि मुगताफल, जरी जरी थाल बधावेंगे ॥ प्रेमके प्याले, ग्याननी चाले, विरहकी प्यास बुजावेंगे ॥ तोलों० ॥४॥ सदा रही मेरें जी में पीऊजी, पीयुमें जीत मिलावेंगे ॥ विनय ज्योतिसें ज्योत मिलेगी, तब इहां वेह न श्रावेंगे ॥ तोलों० ॥ ५॥ इति ॥ ॥ पद अठ्ठावीशमुं ॥ ॥ राग धन्याश्री ॥ मेरी सजनी कृषन चंद्रानन नमुं वारिषेण जगवंत ॥ वर्द्धमान जिन प्रणमियें, लहीयें सुख अनंत ॥ मेरे श्रतम सासय जिन मुख जोय, जिम सासय सुख होय ॥ मेरे श्रातम० ॥ ॥ १ ॥ ए श्रकणी ॥ जवन पतिनां जवन बहोत्तेर, लाखने सातज कोमी ॥ एटले प्रासादे कहा, जिन चार नमुं करजोकी ॥ मे० ॥२॥ ज्योतिषी व्यंतर तणा: जे, नगर विमान संख, तिहां असंख्य प्रासादें कह्या जिन, चार नमुं सह संख ॥ मे० ॥३॥ तिर्बे लोकें गुण सजी, अधिक शत बत्रीश || जिन जवन तिहां चार जिन ए, नमतां पूगे जगीस ॥ मे० ॥ ४ ॥ लाख Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 10 विनयविलास चोरासी सहस सत्ता, णव अधिक वीश ॥ उडून लोक प्रासाद जिन ए, नमियें नामी शीश ॥मे॥५॥ पंचवर्ण उदार मणिमय, सप्त दस्त प्रमाण ॥ केश धनु सय पंच परिमित, एजिन मुरति जाण ॥ मे०॥ ॥६॥ इंसादिक सुर सयल पूजे, करे समकित सुछ॥केसर चंदन अगर पूजा, रचे नाव विशुद्ध ॥ मे० ॥ ७॥ घणा सुरवर लहिये जिनपद, पूजतां ए जिन चार ॥ ध्यान धरतां एह प्रजुनूं, लहियें जवनो पार ॥ मे ॥ ॥ श्री कीर्ति विजय उवकाय केरो, लहे ए पुण्य पसाय ॥ सासता जिन थुणिये एणीपर, विनय विजय उवजाय ॥मे ॥ए। इति॥ ॥ पद ओगणत्रीशमुं॥ ॥ राग भूपाल ॥ श्री विमलाचल मंगन आदिजिना, प्रह उठी वंदो एक मनां ॥ माता मरुदेवानंदुना, नावें दीगे नयन श्रानंदना ॥ वि० ॥१॥ रवि उदयो जग पंकजवना, विकसत बूटा अलि बंध. नां॥होवे निंदित जो निज लोचनां, श्रातमहितमन थालोचना॥वि॥॥चंचल ए तन धन जोबनां, बीजो सरण नको जिन जीवनांनाइसफल करोरे जी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विनय विलास ८१ वनां, करि विनय जजो जगजीवनां ॥ वि० ॥५॥ इति ॥ ॥ पद त्रीशमुं ॥ ॥ सुख पूरण सोना घणी, प्रभुपास जिणंदा ॥ राज रोग र जयहरे, जिम घन अरविंदा ॥ सु० ॥ ॥ १ ॥ अश्वसेन वामा तणो, सुत नमे सुरिंदा ॥ नाम जपतां तेनुं, बूटे जब फंदा ॥ सु० ॥ २ ॥ पन मावइ सानिध करे, धनद धर शिंदा ॥ जजो स्वामी एक चित्तयुं, मधुकर अरविंदा ॥ सु० ॥ ३ ॥ प्रभु देखी मन उल्लसे, जेम कुमुदिनी चंदा ॥ सार वखत तदीयो, एम विनय जलिंदा ॥ सु० ॥ ४ ॥ ॥ पद एकत्रीशमुं ॥ ॥ राग ॥ रामकाली ॥ अजब जोत हे तेरी, हो श्रम, जब जोत दे तेरी ॥ तुं परमातम तुं परमागम, लबद्धि रिद्धि सब तेरी ॥ हो० ॥ १ ॥ सिद्ध बुद्ध हे तुं सिद्धि साधक, तुं गुनकुं सम चंगेरी ॥ तेरो गुन गोरस गुनवेकुं, मुदित जइ मतिं मेरी ॥ हो० ॥ २ ॥ चिदानंद चेतन तुं चातुर, सुरति सुद्ध तुं दे चेरी ॥ जूलो कहा जमे या जवमें, जइ अनंती फेरी ॥ हो० ॥ ३ ॥ दूर नहिं या घटमें For Personal and Private Use Only S Jain Educationa International Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विनयविलास तोहे सब, ब्रह्म ग्यानकी सेरी ॥ माया मोह तिमिर दल, ग्यान कला गति घेरी ॥हो ॥४॥ विनय खरूप संजारो अपनो, धर्मति दूर उखेरी ॥ श्रापही आपसों आप विचारो, मुगति नश् अब मेरी ॥ ॥ हो ॥५॥ इति ॥ ॥ पद बत्रीशमुं॥ ॥ राग रामकली ॥ श्रब क्युं न होत उदासी, हो यातम ॥ अब क्यु न॥ए थांकणी॥ उलट पलट घट घेरी रही है, क्युं तुम आशा दासी॥ हो॥ ॥१॥ निसि बासर उनसुं तुम खेलो, होत खलकमां हांसी ॥ोरो विषम विषयकी श्राशा, ज्यु नि. कसें नव फांसी ॥ हो॥॥पूरण जश्न कबहीं किसकी, पुरमति देत विसासी ॥ जो डोरी नहीं सो. बत इनकी, तो कहा जये सन्यासी॥ हो ॥३॥ रूपरही सुमति पटराणी, देखो हृदय विमासी ॥ मुफ रहेहो क्या मायामें, अंते बोरी तुम जासी ॥ हो ॥४॥ श्राश करो एक विनय विचारी, अवि. चल पद अविनासी ॥ श्राशा पूरण एक परमेसर, सेवो शिवरपुरवासी ॥ हो ॥५॥इति ॥ N. . Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विनयविलास ॥ पद तेत्रीशमुं॥ ॥ सरसति • पाये लागुं, मारे वचन विलास ॥ विजयाणंद सूरिंदनी, जावें जणशुं नास ॥ सहगुरुना गुण गातां, माता हो सुखपास ॥ नरहरि नारी सारी, होय घर अंगण दास ॥१॥ सकल कला अन्यासी, वासी रहे सुगम ॥ श्रीमंत साइनो नंदन, वंदन श्रति श्रनिराम ॥ महिमाहे महिमा निधि, जासतणुं वरनाम ॥ जापथी पाप टले सब, लहिये दोलत दाम ॥२॥ जास तणा गुन गाजे, बाजे देश विदेश ॥ चरण कमल थाणंदे, वंदे सयल नरेस ॥ तास तणा गुण बोर्बु,खोलु मुगति निवेश ॥मानव नव मुख जीहां, दीहा सफल करेस ॥ सिणगार देयनो जा यो, गायो नक्तियें भाज॥ पुण्य अनंता लीधां, सीधां वंडित काज ॥ सोनागी वेरागी, सुंदर मुनि सिरताज ॥ नव सायर उतारे, तारे जिम वमजहाज ॥ ॥४॥ कीर्तिविजय उवकाय पसाय लश्नलेनाव ।। गपति गायो पायो, ऊलट सरले नाव ॥ जिहांलगें चंब दिवाकर, मानस नाम तलाव ॥ तिहांलगें जयवंता गुरु, होजो पुण्यप्रजाव ॥ ५ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विनय विलास ॥ पद चोत्रीशसुं ॥ ॥ बावा हम विचार करलागे, हम बिचार करलागे ॥ बा० ॥ टेक ॥ मनमें चिंता रहि न कोउ, दुःखनरम जोजागे ॥ बा० ॥ १ ॥ गुरुका शब्द तीर तरकसमें, करे कमान बिचारी ॥ साचे सो रन स मसेर हमारे, तो ग्यान घोडे असवारी ॥ बा० ॥ ॥ २ ॥ गोरव काज वसीला कीया, चेहेरे नाम लिखाया | सत्य काज संतोष लगामी, तेजीका चाबक लाया ॥ बा० ॥ ३ ॥ प्रेम प्रीत बिच जाम न दीना, तुरत बरात लखाइ ॥ नाम खजाना जगत अलुफा, तो खुब चाकरी पाइ ॥ बा० ॥ ४ ॥ हांसल दाम खरच कतु नांहीं, तागीर करे न कोइ ॥ विनयकुं दरसन उमदी खिजमत, जाग्य विना न हाइ ॥ बा० ॥ ५ ॥ इति ॥ ॥ पद पांत्रीशमं ॥ ८४ ॥ यदि यदि जिन ध्यायो, चरणारविंद उदायो | चल उदयो प्रभु मुख सूर ॥ ० ॥ टेक ॥ सोम सुक्तित जयो, त्रिहुं लोक आनंद लह्यो ॥ प्रभु मुख देखत चंद्र शीतल जरपूर ॥ श्र० ॥ १ ॥ घर For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विनय विलास त्य घर मंगल बायो, बुद्धि विवेक आयो ॥ गुरुके चरण धायो, सुकर समकित पायो ॥ श्र० ॥ शनी केतु राहु चलायो, विनय पद तिहां पायो ॥ नवनिधान शुज शिव वधू पहोचायो ॥ श्र० ॥ २ ॥ इति ॥ ॥ पद बत्रीशमं ॥ ॥ परम पुरुष तुंहि, कल मूरति युंही, अकल अगोचर नूप, बरन्यो न जात हे ॥ परम || १ ॥ टेक ॥ तिन जगत नूप, परम वलजरूप, एक अनेक तुंही, गिन्यो न गिनात हे ॥ परम० ॥ २ ॥ अंग अनंग नांहिं, त्रिभुवनको तुं सांई, सब जीवनको सुखदाइ, सुखमें सोहात दे ॥ परम० ॥ ३ ॥ सुख अनंत तेरो, ग्रह्यो न यावे घेरो, इंद्र इंद्रादिक हेरो, तोहुं न हिं पात हे ॥ परम० ॥ ४ ॥ तुंही अविनाशी कहायो, लखेमें न कानहीं थायो ॥ विनय करी जो चायो, ताकुं प्रभु पायो हे ॥ परम० ॥ ५ ॥ इति ॥ ॥ पद साडीशमं ॥ ॥ राग आशावरी ॥ माया महा ठगणी में जानी ॥ माया० ॥ टेक ॥ त्रिगुन फांसा लेईकर दोरत, बोलत अमृतबानी ॥ माया० ॥ १ ॥ केसव घर कमला For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जशविलास होइ बेठी,संजु घर जवानी ॥ ब्रह्माघर सावित्रि होइबेठी, इं घर इंसाणी॥ माया॥२॥ पंमितकुं पोथी होइ बेठी, तीरथीयाकुं पानी ॥ योगी घर जनूत हो बेठी, राजाके घर रानी ॥माया॥३॥ किनें माया हीरो करलीनो, किने ग्रही कोरीजानी॥ कहत विनय सुनो श्रब लोको, उनके हाथ बिकानी॥ माया ॥४॥इति ॥ ॥इति श्रीजशविलास तथाश्रीविनयविलास संपूर्ण.॥ - - - Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ज्ञानविलास ॥ उही श्रीअसिथाउसायनमः॥ ॥अथ ॥ ॥श्रीज्ञानविलास प्रारंजः॥ ॥पद पदेढुं॥ ॥ राग भैरव ॥ चारित्र पति श्री चारित्र पावं, नवनिधि श्रीगृह ध्येयं ॥ चा० ॥ टेक ॥ नक्ति जर निर्डर गण ननित, नित्यं क्रम मर्चेयं ॥ चा॥१॥ रितु शर घन वैडूर्य मणि छवि, रविकर रुचि सुशरीरं॥कज मकरंदोत्कट सम वदनं, दसन कुंदल हीर ॥ चा ॥२॥नम्रित धनु पूरण शशि नयनं, शांति सुधारस रूपं ॥अनुपमउत्कटगुण गण जलाधं, परमानंद सरूपं ॥ चा॥३॥ गंजीरोत्कट शरत्रि सगुण, युक्त वचामृत पेयं ॥ त्रिजुवन गत नवि धर्मुपशमनं, शिवतरुबीज गृहेयं ॥ चा ॥४॥ पुष्पफलान्वित सुरतरुलब्धं, वंबित पूरण एयं ॥ चारित्रनंदी श्रीसंततिदायक, पार्श्व चारित्र जिन झेयं ॥चा०॥५॥ति॥ पद बीजं ॥ ॥ राग भैरव ॥ जोर जयो उठ जागो मनुवा, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ज्ञानविलास साहिब नाम संजारो॥ जो ॥ टेक ॥ सुतां सुतां रयन विदानी, अब तुम नींद निवारो ॥ मंगलकारि अमृत वेला, थिरचित्त काज सुधारो ॥ जो ॥ ॥१॥ खिनजर जोतुं याद करेगो, सुख नीपजेगो सारो ॥ वेला वीत्या हे परतावो, क्युं कर काज सुधारो ॥ जो ॥२॥ घरव्यापारे दिवश वितायो, राते निंद गमायो॥ न वेला निधि चारित्र श्रादर, ज्ञानानंद रमायो ॥ नो० ॥३॥ इति ॥ ॥पद त्रीजुं॥ ॥ राग भैरव ॥ मेरे तो मुनि वीतराग, चित्त माहे जोई ॥ मेरे ॥ टेक ॥ और देव नाम रूप, दूसरोन कोई ॥ मेरे ॥१॥ साधनके संघ खेल खेल, जाति पांत खोई ॥ अवतो वात फैल गश, जाने सब कोई॥ मेरे ॥२॥ घाति करम नसम बाण, देहमें लगाई ॥ परमयोग सुनाव, खायक चित्त लाई ॥ मेरे ॥३॥ तंबूतो गगन नाव, नूमि शयन नाई॥ चारित नवनिधि सरूप, ज्ञानानंद नाई॥ मेरे ॥४॥इति ॥ . Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ԵՍ ज्ञानविलास ॥पद चोथु ॥ ॥.राग भैरव.॥ ब्रह्मरूप ज्योतिरूप, चित्तमा संनारके ॥ ब्रह्म ॥ टेक ॥ निर्मल जाको रूप विराजे, अव्य नाग वीतराग, स्वगुन लोग परम योग,ज्ञान दरश एकरूप, जगतनास कारके ॥ ब्रह्म ॥१॥ अक्षय अविचल गुणगणधामी, परमरूपातम रूप, सिझसरूप विश्वनूप, बाल तरणि रोचिरूप, दरव नाव नासके ॥ ब्रह्म ॥२॥ परमानंद चेतनमय मूरति, रिपुनिकंद बोधकंद, सुख अमंद खनवृंद, तत्वरंग चारितनंद, ज्ञानानंद वासके ॥ ब्रह्म॥३॥इति ॥ ॥पद पांचमुं॥ ॥ राग भैरव ॥ ब्रह्मज्ञान कांति देख, आनंद अंग पश्यां ॥ ब्रह्म ॥ टेक ॥ जव्य जन संसटाल, तिन लोक प्रतिपाल ॥ करम वरग रहित होय, सासत गुण लहियां ॥ ब्रह्म ॥१॥ सहज निजपद पहिचान, शुज अशुज नाव जान ॥ सकल पर: जन विनाव, दूरथी तजैयां ॥ ब्रह्म ॥२॥ फटिक सम खहमान, विमल गुण गण निधान ॥ परमनिधि चारितरूप, ज्ञानानंद लदियां ॥ ब्रह्म ॥३॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ज्ञानविलास ॥ पद बहु॥ ॥राग वेलावल ॥ साहिब वात पहिचानियें, जानो तेहनो नाव ॥ वह जान्या बिन ए तनु, पाइन सम गव ॥ साहिब० ॥ १॥ झाने ग्येयकी एकता, ध्याने ध्येय समाय ॥ निज अनुन्नव घट जोश्ये, कहावें स्योरमाय ॥साहिब॥२॥वेद पुरानमें कबुनहीं,नहीं कबुवाको सहिनान॥गं निधि चारितरूपमय, ज्ञानानंद सुजान॥ साहिब०॥३॥इति॥ ॥पद सातमुं॥ ॥राग वेलावल ॥ या नगरी में क्युं कर रहना, राजा लूंट करे सो सहना ॥ या० ॥टेक॥ नहीं व्यापार इहां को चाले, नही को घरमांहें गहना ॥ या०॥१॥ तसकर पण निज दाव विचारे, जेद निहाले फिर फिर रहना ॥ नारी पांच शीपाश्सा, स्मण करे नित कुणसें कहना ॥ या ॥२॥ अंजलि जल जिम खरची खूटे, श्राखर ग दिन देगा परना ॥ यातें नवनिधि चारित संयुत, ग ज्ञानानंद हेगा सरना ॥ या० ॥३॥इति ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ज्ञान विलास ॥पद आठमुं॥ ॥राग वेलावल ॥ साधो ना देखो नायक माया ॥ सा ॥टेक ॥ पांच जातकावेस पहिराया, बहु विध नाटक खेल मचाया ॥ सा ॥१॥ लाख चौरासी योनिमांहे, नानारूपें नाच नचाया ॥ चवदह राजलोक गत कुलमें, विविध जांतिकर नाव दिखाया ॥ सा०॥॥ अजतक नायक धायो नांहिं, हारगयो कहुं कुनसें नाया॥यातें निधि चारित्र सहायें, अनुपम ज्ञानानंद पदनाया ॥ सा ॥३॥ ॥पद नवमुं॥ ॥राग वेलावल ॥ श्रवहीं प्यारे चेतले, घर पूं. जी संजारो ॥ अब० ॥ टेक ॥ सहु परमाद तुं गंमदे, निरखो कागल सारो ॥ श्र० ॥ १ ॥ मगरूरी तुम मत करो, नहिं परगल तुझ माया ॥ पूंजी तो उडी घणी, व्यापार वधाया ॥ १० ॥२॥ गांफिल होय कर मतरदे, पग देख फिलावो, घटमें निधि चारित गही, ज्ञानानंद रमावो ॥ १० ॥३॥ ॥पद दशमुं॥ ॥राग वेलावल ॥ प्यारे चित्त विचारले, तुं क Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ज्ञानविलास हांसें श्राया ॥ बेटा बेटी कवन हे, किसकी यह माया ॥ प्यारे० ॥१॥ वनो जावनो एकलो, कुण संग रहाया ॥ पंथक होयकर जीलमें, कैसे लपट्यो लाया ॥ प्यारे ॥२॥ नीसर जावो फंदसे, ग बिनमें नाया ॥ जो निधि चारित श्रादरे,ज्ञानानंद रमाया ॥ प्यारेण ॥३॥ इति ॥ ॥पद अगीआरमुं॥ ॥राग श्राशावरी ॥ अवधू सुता क्यां इस मठमें ॥१०॥ टेक ॥ इस मठका हे कवन जरोंसा, पम जावे चटपटमें ॥ अ॥ बिनमें ताता जिनमे शीतल, रोग शोग बहु मग्में ॥ १०॥ १॥ पानी किनारे मठका वासा, कवन विश्वास एतटमें॥१०॥ सूता सूता काल गमायो, अजहुँ न जाग्यो तुं घटमें। अ॥२॥ घरटी फेरी आटो खायो, खरची न बांधी वटमें ॥ ॥ इतनी सुनी निधि चारित्र मिलकर, ज्ञानानंद आए घटमें ॥ १० ॥३॥ ॥पद बारमुं॥ ॥राग श्राशावरी ॥ बिनजारा तें खेप नरी नारी॥ वि०॥टेक॥चार देसावर खेप करी तम, लान Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ज्ञानविलास लंयो बहु नारी ॥ बि० ॥ फिरता फिरतां नयो तुं नायक, लाखी नाम संजारी ॥ वि०॥१॥सहसलाख करोमां उपर, नाम फलायो सारी ॥ बि० ॥ बेटा पोतरा बहु घर कीना, जगमें संपत्त सारी ॥ वि०॥ ॥२॥ खूटी खरची लदगयो डेरो, पम्गयो टांमो जारी ॥ बि० ॥ विन खरचीतें कवन संजारे, टांडेकी नई खवारी ॥विण ॥३॥ पहेले देखी पग जो राखे, निधि चारित तुं धारी ॥ वि०॥ ज्ञानानंद पद श्रादरतो, खरची होती सारी ॥ वि०॥४॥इति ॥ ॥पद तेरमुं॥ ॥राग श्राशावरी ॥ योगी तेरा सूना मंदिर क्युं॥ योगी० ॥ टेक ॥ बहु महनतकर मंदिर चुनियो, अब नहीं बसता क्युं ॥ योगी ॥ १॥ तीरथजलकर एहने धोया, जोग सुरनि दरव क्युं ॥ योगी॥ जसमजूत ए मंदिर ऊपर, घास लगाया क्युं ॥ यो गी० ॥ ५॥ रामनाम एक ध्यानमें योगी, धूनी ज्युकी त्युं ॥ योगी० ॥ एह विचार करी जाइ साधो, नवनिधि चारित व्युं ॥ योगी० ॥ ३ ॥ इति ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ए। ज्ञान विलास ॥ पद चौदमुं॥ ॥ राग श्राशावरी ॥ श्रबधू वह जोगी हम.माने, जो हमकुं सबगत जाने ॥ १०॥ब्रह्मा विष्णु महे. सर हमही, हमकुं इसर माने ॥१०॥ १ ॥ चक्री बल वासुदेव जे हमहीं, सबजग हमकुं जाने ॥ श्र॥ हमसे न्यारा नहिं को जगमें, जग परमित हम माने ॥ १० ॥२॥ अजरामर अकलंकता हमहीं, शिववासी जेमाने॥॥निधि चारित झानानंद जोगी, चिद्घन नामजे माने॥०॥३॥ति॥ ॥पद पंदरमुं॥ ॥ राग आशावरी ॥ साधो नाइ नहिं मिलियो हम मीता ॥ सा ॥ टेक ॥ मीता खातर घर घर नटकी, पायो नहिं परतीता ॥ सा ॥ जहां जाऊं ताहां अपनी अपनी, मत पख नांखे रीता ॥ सा॥ ॥१॥ संसय करूं तो कहे बिनाला, वहज रूसे नीता ॥सा॥श्त उतसे अधविचमें जूली, कैसे कर दिन वीता ॥ सा ॥२॥आगम देखत जग नवि दे, जिम जल जख पग रीता ॥सा॥ तिनश्री हव श्रम निधि चारित युत, ग ज्ञानानंद मीता ॥सा ॥३॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ज्ञानविलास ॥पद शोलमुं॥ ॥राग रामकली ॥ नानारंग गहन कानन विच, चार दिनारा देख तमासा ॥ ना० ॥ टेक ॥ रंग सुरंग फूली वनराश, नित नित देखत रहत उहा. सा॥ ना ॥१॥ बोटे मोटे बहु विध तरुवर, करम हेतु मदमाता ॥ पंच सखी सुख पवने हिलमिल, अंगोअंग जूले रंगराता ॥ ना० ॥२॥ केतेश् पात फूल फल जडगए, केतेश् पाके पाता ॥रह गश् सांख पुण वसंत समय गत, केतेश नयगए फूल फल पाता ॥ ना० ॥३॥ फिर निर धूत पवन योगें कर, जलबुद बुदका वासा ॥ग दिन चटपट सबही चलगए, जिम जल बिच बतासा ॥ ना० ॥४॥ उलट पलट तरु देख्यो वनमें, तुरतही जयो उदासा ॥ यातें नवनिधि चारित्र नंदें, झानानंद सुख खासा ॥ ना० ॥ ५ ॥ इति ॥ ॥पद सत्तरमुं॥ ॥ राग रामकली ॥ निज श्रासाका बड़ा बरोसा, पर आसा हे गलकी पासा ॥ नि॥ टेक ॥थापहि परकी आस करतहे, कैसे पूर करे ते साँ। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ए६.. ज्ञान विलास नि॥१॥पर श्रासा खिन खिन रमवमियो, रहकर देख्यो खूब तमासा ॥ नि ॥ श्रासा दासिके वस कूकर, जटके गलिगलि घरघर वासा ॥ नि॥ ॥२॥ निज श्रासीकी त्रास करंता, जटपट पूरण होवे श्रासा ॥ नि० ॥ एह विचार करी जाइ साधो, पामो नवनिधि चारित खासा ॥ नि० ॥३॥ ॥पद अढारमुं॥ ॥ राग रामकली ॥कुण जाणे साहेबका वासा, जिहां रहतादे साहिब साचा ॥ कु० ॥ टेक ॥ साधु होय के जलमें बूडे, जिम मबलीकाहे जल वासा ॥ कु० ॥१॥ बामण होयकर गाल बजावे, फेरे काठकी माल तमासा ॥ गौमुखि हाथें होठ हलावें, तिणका साहिब जोवे तमासा ॥ कु०॥२॥ मुहां होयकर बांग पुकारे, क्या कोई जाणे साहिब बहेरा ॥ कीडीके पग नेउर वाजे, सोबी साहि'ब सुनता गहेरा ॥ कु० ॥ ३ ॥ कंठ काठ केश मुहमो बांधे, काला चीवर पहरे तमासा ॥ बोत अडोतका पानी पीवे, नद अन नोजनकी श्रासा ॥ कु० ॥४॥ साधु नए असवारी बेसे, नृपपरनीति Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ज्ञान विलास करे सुख खासा॥पंचाग्नि के ताप तपत दे, देह खाख रासनपर जासा ॥ कु० ॥५॥श्राप दरव श्रागल के राखे, देव नाम परसाद लगाता ॥ घंट बजाडी श्रापहिं खावे, नित नित साहिबकुं दिखलाता ॥ कुण्॥६॥ सरवंगी जे सबकुं माने, अपनी अपनी मतिमें बहुरा ॥ साहेब सब नटबाजी देखे, जग जनकारज वस जया बहुरा ॥ कु० ॥ ७॥ श्म कर नहिं को साहेब मिलता, जगमें पाखंग सबही कीता ॥ चारित्र ज्ञानानंद विना नहिं, समजो जगमें तन कोश् मीता ॥ कु० ॥ ॥ इति ॥ ॥ पद उंगणीशमुं॥ ॥राग रामकली ॥ वालो माहरो क्यों चटके परवासा, तुजम निरखो साहेब वासा ॥ वा० ॥ टेक ॥ बिनु अनुजव ताकुं नहिं जाने, देखे कैसे उजासा ॥ वा ॥१॥ नहिं मानस नहिं नारी साहिब, नांहि नपुंसक बागम नासा ॥ पांचो रंग जाके नहिं दिसे, तामें नहिं गंध रसकावासा ॥ वाण ॥२॥ नहिं नारी नहिं हलका साहेब, नहिं रूखा नांहि चिकनासा ॥ शीता ताता जाके न पावे, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ए. ज्ञानविलास अप्रतिबंध श्रागति गतिजासा ॥ वा ॥३॥ को संघयण जाके नहिं पावे, नहिं को संगण निवासा ॥ जां देखे तां एकही साहिब, जग नन परमितहे जसु वासा ॥ वा० ॥ ४ ॥ सो साहब तुं श्र पना मग्में, निरखो थिर चित्त ध्यान सुवासा ॥ चारित ज्ञानानंद निधि श्रादर, ज्योतिरूप निजनाव विकासा ॥ वा ॥ ५ ॥ इति ॥ ॥पद वीशमुं॥ ॥राग रामकली ॥ जान न बामन काजी साधो, साहबकी गति है गी न्यारी ॥ जाण ॥ टेक ॥ उतपाद व्यय दरव परयायें, एक अनेक गहे पुन सारी ॥ सा ॥१॥ थिरता एक समय गत जाके, उतपाद व्यय पण ध्रुव सारी ॥थस्ति नास्ति नास्ति थास्तिकहे, आगम मांहें अव्य विचारी ॥सा॥२॥ ऐसी बात हम कबहुं न जानी, किनही मुख सुन नांहि संजारी॥ चरम नयन कर नहिं हम निरखी, अनुपम सादवाद गुण धारी ॥ सा ॥३॥ चज निखे सात नये कर, सातें नंग समाधि संजारी ॥ निधि चारित्र ज्ञानानंद अनुजव, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ज्ञान विलास uu निंदचे साहेब जाणे सारी ॥ सा० ॥ ४ ॥ इति ॥ ॥ पद एकवीशभुं ॥ ॥ राग टोडी ॥ सुनो पिया तम सुखसें विचरो री, नंदन वनकी सयल करोरी ॥ सु० ॥ टेक ॥ मेरे बापको बाप मनोहर, बहुविध तरुतल चिरधरोरी ॥ सु० ॥ १ ॥ नारी समीयुत तरुतल बेस्यो, दुः ख सुख की सहु वात करेरी ॥ डुग मंतरी परिकर युत शालो, छायो अंगोछांग मिरैरी ॥ सु० ॥ २ ॥ सासु श्राव सखीयुत श्रा, मनकी मोजां मिल निकस्यो री ॥ धरमराजको परिकर सघलो, आय मि यो मन शुद्ध विकस्योरी ॥ सु० ॥ ३ ॥ दव चेतन सहु निज परिवारें, वसतां श्रनुजव वात करेरी ॥ निधि चारित्र ज्ञानानंद साथै, ज्ञान लहर पामे जलीय परेरी ॥ सु० ॥ ४ ॥ इति ॥ ॥ पद बावीशसुं ॥ ॥ राग टोडी ॥ दूर रहो तम दूर रहो तम दूर र होरी, मोसुं तो तम दूर रहोरी ॥ दू० ॥ टेक ॥ 5तने दिन श्रमने दुःख दीधुं, थारे संग कर सुख न लहोरी ॥ दू० ॥ १ ॥ तीन लोककी ठगनी तूंदी, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०० झान विलास तुजसम नहिं कोई एहवो करेरी ॥ मीठो बोली हिरिदय पैसे, लाम करे बहु नांत परेरी ॥ ७॥ ॥ ५॥ सागरमें तुं था हव ताबे, पाडे गोतो देय टरेरी॥तुज कुटिलाका कवन नरोंसा, बोलतही तुं घात करेरी ॥ दू० ॥ ३॥ इहां सेती तुं दूर परीजा, इहां थारी मति नांह लहेरी॥चारित ज्ञानानंद रखवालो, श्रम प्यारी मोरे पास रहेरी ॥ दू० ॥ ४ ॥ ॥पद त्रेवीशमुं॥ - ॥ राग टोडी ॥तूंही पिया मन गमतो मिल्योरी, उर गेर मन नांहिं मिल्योरी ॥ तूं० ॥ टेक ॥ हुँ तोसुं कबु नहिं चाहूं, केवल अंगें रमन करोरी॥तूं॥१॥ केवल तनमय एकत नावो, मोसुं प्रेमें प्रीति करोरी ॥श्राप दृष्टि सखि आतम साथें, वात करो तम सुख वचरोरी ॥ तूं ॥२॥ मनुवो सुनकर घरनी बानी, पास वसारे प्रीत करेरी ॥ चारित ज्ञानानंद सहायें, वालो धीरज चित्त धरेरी॥तूं०॥३॥इति ॥ ॥पद चोवीशमुं॥ ॥राग टोडी ॥ प्यारे तम चगान सरोरी, शांति खमग तम तेग करोरी ॥ प्या० ॥ टेक ॥ धरम Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ज्ञानविलास १०१ राज लसकर तमसाथें, मोटो मंतरी संग लरोरी ॥ प्या ॥१॥ मोहराज मकरध्वज गजपर, आयो तनखिन कोप करेरी ॥ चल सुत मंतरियुत बहु लसकर, रणकारण सावधान खरेरी ॥प्या॥२॥ वालो संयम बक्तरधारी, धरम टोप धर खमगगहेरी॥आगमसाथें रणमें जजे, पुर्धर रिपदलहनन गहेरी ॥ प्या० ॥३॥ सातनो खयकर तीन पगड्या, थाठ शोलनो घात करेरी ॥ एक एक षट गने मारूं, चोथो क्रोधनो घात चरेरी ॥ प्या० ॥ ॥४॥ दशमे सुखम लोन पिडामी, कूद्यो बारम गन लहेरी॥मोहराजने गजसे पाड्यो, एकहिं हाथें घात वहेरी॥प्या ॥५॥जीत नगारो तेह वजायो, तेरमी में सुख विचरोरी ॥ काची दोय घमी रण जीती, चारित ज्ञानानंद वरोरी ॥प्या०॥६॥इति॥ ॥ पदपच्चीशमुं॥ ॥ राग टोमी ॥ मेरो पिया हे परम सन्यासी, कवन करे हे पियाकी हांसी ॥ मे ॥ टेक ॥ वरजित ईमा पिंगला मारग, सुखमना घर अनिलाषी॥ मे ॥१॥ यम नियम थासन अनुरंगी, प्रत्याहार Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०२. ज्ञान विलास ध्यान धारणवासी ॥ प्राणायाम समाधि सुरंगी, भूलोत्तर सुविलासी ॥ मे० ॥ २ ॥ रेचकपूरक कुंजक दें, बादर मन वशकारी ॥ चरम रंध्र मध्यगेहें पूरी, अनहद नाद विचारी ॥ मे० ॥ ३ ॥ बादर योग युगति सह थिरता, श्रातम ध्यान विलासी ॥ पांचवरण पण तत्व सुदर्शी, परमातम गत जासी ॥ मे० ॥ ४ ॥ परमातम अनुसारे करतां, निज सहु जाव विकासी ॥ चारित ज्ञानानंद सन्यासी, जाने तिण निजवासी ॥ मे० ॥ ५ । इति ॥ ॥ पद ब्वीशमुं ॥ ॥ राग आशावरी फाग ॥ कैसें विचार करो जाइ साधु, दिव्य विचारें मन श्राराधो ॥ कै० ॥ टेक ॥ जो परथम सिद्धगति अनुवियें, संसृति विष कहां सिद्ध होय साधो ॥ कै० ॥ १ ॥ संसृति चउगति जेद कहावे, तीन जेद तीग वेद सुजानो ॥ नारक तिरि जो परथम कहियो, निरजर नर बिनतें कैसे मानो ॥ कै० ॥ २ ॥ चउगति परथम जेद बखानुं, नरनारी कुप पहिले जायो ॥ बीज जाड पहिले कु ण कहियें, इग विना ग किहांसें श्राय ॥ कै० ॥ ३ ॥ · For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ज्ञानविलास इनकी श्रादि किहां कुण जाणे, आगम दिव्य विचार प्रमाणो ॥ चारित ज्ञानानंदें अनुजव, ए सहु नाव अनादि बखानो ॥ कै० ॥ ४ ॥इति ॥ ॥पद सत्तावीशमुं॥ ॥ राग श्राशावरी ॥श्रदजूत एक अचंलो देखो, अबतक जानुं नहिं को लेखो॥१०॥टेक॥ जंगलमांहे मोटो चरखो, कवन बनायो चालत पेखो॥ १० ॥१॥ बोटीसी कीमी तेहनें कांते, पाठ पहर श्रद निसि मन जायो । चालत चालत थाकत नांहिं, इतनो बल यामें किहांसें श्रायो॥०॥२॥ रूबडी तेहनी नहि कहिं दीसे,का जाने कहां राखी नायो ॥ सघलाइ जनने चरखो दीसे,पागल पागल रू न दिखायो॥१०॥३॥कीडी थाकतां चरखो न चाले, केसोनयो हरामी देखो॥ तिनतें चारित झानानंद जे,श्रापमतें रहे तम ते पेखो॥१०॥४॥ति॥ ॥पद अहावीशमुं॥ ॥राग श्राशावरी ॥ श्रदनूत एक अचंलो नारी, निरख समज थापोश्राप विचारी ॥१०॥टेक ॥ पारावाररहित सागर बिच, नाव एक जिहां Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०४, ज्ञानविलास निरखो नारी ॥ दांडी पांच चलावे जाकुं, पतवारी ग हे सुखकारी ॥१०॥ १॥ चनदिसि चित्रित पाट पटंबर, जीतर साहब सुता सारी ॥ चनदिसि तेन तरंड फिरतहे, वालो साहब.गांफल जारी ॥ श्र० ॥॥ शैल सुनत उठ बेठे साहब, नाज गए जहाँ तसकर सार। ॥ चारित ज्ञानानद सत्तार, थानंद हरख लहे हुशिधारी ॥ १० ॥ ३ ॥ इति ॥ ॥ पद उंगणत्रीशमुं॥ ॥ राग श्राशावरी ॥ राम राम सब जगहि माने, राम रामको रूप न जाने ॥रा० ॥ टेक ॥ कवण राम कुण नगरी वासो, कहांसें आयो किहां जयो वासो ॥रा ॥१॥ राम राम सहु जगमें व्यापी, राम विना हे कैसे बालापी ॥ राम विनाहे जंगल वासा, पाडे को जाकी न करे श्रासा ॥रा ॥ रा. महि राजा रामहि राणी, राम रामहि हैरोतानि ॥ रंटन करतहे कवन रामको, कैसो रूप बतावो वाको ॥ रा० ॥३॥ जे के वाको रूप बतावे, तेहिज साचो मुज मन नावे ॥ सो निधि चारित ज्ञानानंदें, जाने आपनो राम श्रानंदें ॥ राम् ॥४॥इति ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ झान विलास १०५ ॥ पद त्रीशमुं॥ ॥ राग श्राशावरी ॥ योगसमाधि योग आधारो, आगममाहें तत्त्व विचारो ॥ यो ॥ टेक ॥ काननपरले खार कीनारे, अनुपम एक नगर सुखकारो ॥ यो ॥१॥ जामें जीव अनंत रहाहे, कुण समरथ ते गिणतां मानो ॥ सादि अनंता श्रायु जेहनो, बहुविध परिगल रिकि बखानो ॥ यो॥२॥ उचनीच जिहां नेद नहीं है, सब जन नूपति नाव निहालो । चारित ज्ञानानंद संजालो, जिम पामो पुरिवास विशालो ॥ यो ॥३॥ इति ॥ ॥पद एकत्रीशमुं॥ ॥ राग तुमरी॥ मंदिर एक बनाया हमने ॥ मंदिर ॥ टेक ॥ जिस मंदिरके दश दरवाजे, एक बुंदकी मायारे ॥ नानो पंखी जाके अंतर, राज करे चित्त लाया रे ॥ मं० ॥१॥हाड मांस जाके नहिं दीसे, रूपरंग नहिं जायारे ॥ पंख न दीसे कहसे पिडा, षटरस जोगें नायारे ॥ मं० ॥२॥ जातो श्रातो नहिं को देखे, नहिं कोई रूप बतावेरे ॥ सब जग खायो तो पण नूखो, तृप्ति कबहिं न पा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०६ ज्ञानविलास वेरे ॥ मं० ॥३॥ जालम पंखी तालम मंदिर, पाडे कोन बतावेरे ॥ वह पंखीको जो कोई जाने, सो ज्ञानानंद निधि पावेरे ॥ मं ॥४॥ इति ॥ ॥पद बत्रीशमुं॥ ॥राग तुमरी ॥ इतना काम करे जे जोगी, सोश योग न जानेरे ॥ ३० ॥ टेक ॥ मूंग मूंमाया जस्म लगाया, जोगी ना हम जानेरे ॥ बक्तर पदेरी रण कुं जीतें, सो योगी हम जानेरे ॥ इत० ॥१॥राजा वसकर पांचों जीते, उर्धर दोयने मारेरे ॥ चार काटके सोल पिडामे, सोश योग सुधारेरे ॥ श्त०॥ ॥२॥ जागृत जावें सरव समय रहे, परमचारित्र कहावेरे ॥ ज्ञानानंद लहेर मतवाला, सो योगी मन नावेरे ॥ इत० ॥३॥ इति ॥ ॥पद तेत्रीशमुं॥ ॥राग तुमरी ॥ वादिनकुं नहिं जाना जबतक, कैसा ध्यान लगाया रे ॥ वा ॥ टेक ॥ जटा वधारीजस्म लगाइ, गंगा तीर रहायारे ॥ उरध बाह श्रातापना लेश, योगी नाम धरायारे ॥ वा० ॥१॥ चार वेद ध्वनि सूत धारकर,बामण नाम कहायारे॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ज्ञान विलास १०७ शासतर पढके ऊगडे जीते, पंमित नाम रहायारे॥ वा॥२॥ सुन्नत करके श्रद्धा बंदे, सीया सुन्नी कहा यारे ॥ वाको रूप न जाने को, नवि केश बतलायारे॥ वा० ॥३॥.जे केश्वाको रूप पहिचाने, तेहिज साच जनायारे ॥ ज्ञानानंद निधि अनुनव योगें, झानी नाम सुहायारे॥ वा० ॥४॥ इति ॥ ॥ पद चोत्रीशमुं॥ ॥ राग तुमरी ॥ ऐसो योग रमावो साधो ॥ ऐ. सो योग रमावोरे ॥ ऐ० ॥ टेक ॥ बरम विनूति अंग रमावो, दया तीर मन जावोरे ॥ ज्ञान शोचता अंतर घटमें, श्रातमध्यान लगावोरे ॥ ऐ० ॥ ॥१॥ धरम शुकल दोय मुंदरा धारो, कनदोरो सम सारोरे ॥ सुन संयम कोपीन बिचारो, जोजन निरजरा धारोरे ॥ ऐ० ॥२॥ अनुभव प्याला प्रेम मसाला, चाख रहे मतवाला रे ॥ ज्ञानानंद ल. हेरमें जूले, सो योगी मदवालारे ॥ऐ०॥३॥इति। पद पांत्रीशमुं॥ ॥ राग बुमरी ॥ ढुं सहलानी जानुं बुं तुम, काहे कुं जटकावे रे॥ ढुं० ॥ टेक ॥ जटकत जटकत न Vain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७ ज्ञानविलास हुँ हरानी, तूं मत रीस चढावेरे ॥ हुं० ॥१॥"ए. तला काल नपुंसक जानी, मंदिरमाह रहावे रे॥ सघलाइ मानसने तूं ठेले, एहि अचंनो आवे रे॥ टुं० ॥२॥ श्रासपास ना श्रमने देखी, कुटिला नाव जनावे रे ॥ वल्वन सांजल मोकुं बांके, मोरी हुरमत जावे रे ॥ हुं० ॥३॥ तूं तो निरलज नयो मतवालो, थारी कवन चलावे रे ॥ अम वहन ज्ञानानंदसाथें, अंगोअंग मिलावे रे ॥हुं०॥४॥इति॥ ॥ पद बत्रीशमुं॥ ॥राग वसंत ॥ योगी यासे चित्त रमायो, याकी गति करत हूँ ॥ यो ॥ टेक ॥ मेरो तो योगी बालो नोलो, बरमचारी मन नायो यो॥ जो यह देखे सोश लोजावे, मतवालो जग जायो॥ यो॥१॥ योगी खातर घर घर जटकी, यह योगी अब पायो ॥ योग ॥ श्रमनें वक्षन याकुं मान्यो, मेरो चित्त लोजायो । यो ॥२॥ निरलोजी निकलंकी योगी, योगी योग रमायो ॥ योग॥ निधि चारित ज्ञानानंद मूरति ॥ प्राण पियारो पायो ॥ यो ॥ ३ ॥ इति ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ झान विलास १०ए. ॥ पद साडनीशमुं॥ ॥राग वसंत.॥ देखी ईग नारी, सतिय शिरोमणि नाई ॥ दे० ॥ टेक ॥ रूपवंत जे नागी नटके, सबहि के मन जाई ॥ दे ॥१॥ सघलाइ मानस तेह रमावे, मुनि जन शोना दाई॥ दे॥ नोगी जन तिन नांहि बतावे, योगी चित्त रमाई ॥ दे॥ ॥२॥ पंडित याकुं लाड करतहे, श्रह निसि चित्त रमाई ॥ दे०॥ योगासर अंगोअंग रमावे, हाथों हाथ जूलाई ॥ दे० ॥३॥ इनने निरखी मुनि मनचाले, ध्यान धरे चित्त लाई ॥ दे० ॥ निधि चारित ज्ञानानंद पायो, या नारी चित्त श्राई ॥दे॥४॥ ॥पद अडत्रीशमुं॥ ॥राग वसंत ॥ सुणलीजो पिताजी, योगीयासें चित्त रमायो॥ सु ॥ टेक ॥ अहनिसि योगी के संग बेसी, जग जन लाज गमायो ॥ सु० ॥१॥ अपने मनरूचि श्रम ए कीधो, चनदिशि वात फखायो ॥ सु ॥ मेरे तो घरसे काम नही हे, योगी पास रहायो । सु० ॥२॥ इतनी कहकर घरसें निकसी, योगी वखन जायो॥ स॥ निधिचारित झा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११० झान विलास नानंद योगी, मिलकर अंग मिलायो ॥सु॥३॥ति पद उंगणचालीशमुं॥ ॥राग वसंत ॥ में कैसे रखें सखी, पियागयो परदेशो ॥में०॥ टेक ॥ रितु वसंत फूली वनराश, रंग सुरंगीत देशो में॥१॥ दूरदेश गये लालची वालम, कागल एको न श्रायो॥ में ॥ निर्मोही निस्नेही पिया मुऊ, कुण नारी लपटायो ॥ में॥२॥ वसंत मासनी रात अंधारी, कैसें विरह बुजायो ॥ में ॥ इतने निधि चारित पुत वन, ज्ञानानंद घर श्रायो ॥ में ॥३॥ इति ॥ ॥ पद चालीशमुं॥ ॥राग वसंत ॥ मेरे पियाकी निशानी, मोरे हाथन श्रावे ॥मे॥टेक॥ रूपी कहुं तो रूप न दीसे, कैसें करी बतलावे ॥ मे ॥ १॥ जोति सरूपी तेद विचारूं, करमबंध कैसें नावे ॥ मे ॥ सिक सना'तन उपजन बिनसन, कैसे विचार सुहावे ॥ मे॥ ॥२॥ वेद पुरानमें नहिं कहि दीसे, किणपर नाव रमावे ॥ मे ॥ यातें चारित ज्ञानानंदी, एकहिं रूप कहावे ॥ मे ॥३॥ इति ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ज्ञानविलास १११ ॥पद एकतालीशमुं॥ ॥राग सारंग ॥ क्योंकर महिल बनावे पियारे ॥ क्यों ॥ टेक ॥ पांच नूमिका महल बनाया, चित्रित रंग रंगावे ॥ क्यों० ॥१॥ गोखें बेगे नाटिक निरखे, तरुणी रस ललचावे, इक दिन जं. गल होगा मेरा, नहिं तुज संग कबु जावे ॥ क्यों ॥२॥ तीर्थंकर गणधर बल चकि, जंगल वास रहा. वे ॥ तेहना पण मंदिर नहिं दीसे, थारी कवन चलावे ॥क्यों॥३॥ हरिहर नारद परमुख चलगए, तूं क्यों काल बितावे ॥ तिनतें नवनिधि चारित श्रादर, ज्ञानानंद रमावे ॥ क्यों ॥४॥ इति ॥ ॥पद बैंतालीशमुं॥ ॥राग सारंग ॥ क्या मगरूरी बतावे पियारे ॥ क्यान॥ अपनी कहा चलावे ॥ पि० क्याटेक ॥ कवन देश कुण नगरीसें आया, कहां तुऊ बास रहावे ॥ पि० ॥१॥ कहा जिनस तुम लाए मगरू, किस विध काल बितावे ॥ कहा जाने का मकसद हेगा, कैसो विचार रहावे ॥ पि० ॥२॥ चार दिनां. की चांदनी हेगी, पाडे अंधार बतावे ॥ घर घर Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११२ ज्ञान विलास फिरतां याराहि मानस, अंगुलीयां दिखलावे ॥ पि० ॥ ३ ॥ तिनतें तूं मगरूरी बांडी, जग सम समता लावे ॥ तो नवनिध चारित्र सहायें, ज्ञानानंद पद पावें ॥ प० ॥ ४ ॥ इति ॥ ॥ पद तेतालीशमुं ॥ ॥ राग सारंग ॥ बिन वालम कहो कुछ गति मादी, वालम हीं गति नारी ॥ बि० ॥ टेक ॥ सुनो सखी तुम वेग मनावो, सइयां लावो निहारी ॥ बिन० || १ || चांदनी राते मकरध्वज शर, आयलग्यो दुःखकारी ॥ विरहव्यथायें अमने खिनजर, सुख नहिं पामे सारी ॥ बिन० ॥ २ ॥ जलबिन मबली समटलवलती, विरहजाल जइ जारी ॥ इतने ज्ञानानंद वालम याए, चारित संग सुखकारी ॥ बि० ॥३॥ ॥ पद चुमालीशमुं ॥ ॥ राग सारंग ॥ सेठ बेठे सारंग महल में ॥ से० ॥ टेक ॥ सेठानी मोह नरपति बेठी, बेटा चार नोपमें ॥ से० ॥ मिथ्या मकरध्वज जसु जाई, व्यापारें गणि कोपमें || से० ॥ १ ॥ उंची दाट बिछात बिठाइ, सुए करे नवरंग में || से० ॥ कनक रतननां भूखन Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ झान विलास पहियां, वांके बेसे रंगमें ॥ से बना गल स्याही राखी, सेठ कहलाए नगरम से। वातें लोक जमा सहु राखी, परखी मेली कुठारमें ॥ से॥३॥ तेहने कागल कटको दीधो, नया निचिंता पलकमें॥से॥ सहसलाख कोडोनां कागल, लेवे देवे खलकमें ॥ से०॥४॥ चार दिशावर हाट करी जिन, जारी सराफ परदेशमें ॥से०॥ सेठ कहे हम करोड पतिहे, हम सम नहिं को देशमें ॥से॥५॥जब जन सहु निज मांगन आया, कीधो दिवालोमगनमें से अबतो शेठ योगीजये नागे,माल दीधो सह सुजनमें ॥से॥६॥ जैसेतैसे एकल चल गए, कवमी नहिं ग बाटमें ॥ हाट सुजन कोश् नहिं साथे, लश् खराबी वाटमें। से॥७॥एह विचार करी ना प्यारे, पुण्य पाप लीयो हाथमें ॥ से०॥ तिनतें नवनिधि चारित अविचल, ज्ञानानंद नयो साथमें ॥ से० ॥ इति ॥७॥ ॥पद पिस्तालीशमुं॥ ॥ राग सारंग ॥ साहिब हे तेरे संगमें ॥सा॥ टेक ॥ जाके दरव अपरिमित होगा, कबहिन खूटे जंगमें ॥ लेना देनां कबु नहिं जाके, लोगो श्रह Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११४. ज्ञानविलास निसि रंगमें ॥ सा ॥१॥ जिम जिम नोगे तिम तिम वाधे, क्युं नटके मति चंगमें ॥ मृगमद गंधे मृग सम नटके, घट अनुनव नहिं रगमें ॥ सा॥३॥ निर्मल गंगानीरजे लाधो, खारी कुण पीवे वाटमें ॥ तिनतें निजघर चारित संयुत, ज्ञानानंद जोवो गठमें ॥ सा ॥ ३ ॥ इति ॥ ॥ पद तालीशमुं॥ ॥ राग कहेरबा ॥ सश्यां मुज गेंदा मंगायदे, गेंदाकी आश् हे बहार ॥ ए चाल ॥ यार मोह नारी मिलायदे, यारोंका याही दे मिलाप ॥ या ॥ टेक ॥ रूपवंत मोह नारी मिलायदे, उत्तम कुलगुण धाप ॥ या ॥१॥ पहिली नारी मुऊ नटकायो, परघर रमवा ढाल ॥या ॥ ते मुज दूतापण कहलायो, जग जन कहेते बिनाल ॥ या॥२॥ सुकुलीनी मोहे नारी मिले जो, तो श्रम चित्त सु. ख नाय ॥ या ॥ इतनी सुनकर खायक मंतरी, सुमतिनो मेलन कराय॥या० ॥३॥ घरनी संगें हरख धरीने, अंग रहे लपटाय ॥ या॥ चारित्र श्रादर ज्ञानानंदें, नवनिधि सहज लहाय ॥ या ॥४॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ झान विलास ॥ पद सुडतालीशमुं॥ ॥ रोग कहेरबा ॥ किस मिस जाउं पणिहार कूवे, पर श्रासन योगीका ॥ ए चाल ॥ कुण मिस पियाकुं मनाय, मिलियो पिउ परदेशीका ॥ कु० ॥ टेक ॥ देश नगर नहिं जानुं जाको, जात पात न जनाय ॥ मि॥१॥ नाम गोत जाको कबु नाहिं, कैसें निरखं जाय ॥ मि॥ निर्मोही निःसनेही पिया मुज, कुण रीते समजाय ॥ मि० ॥२॥ मोसें पहेबें लाड करेथो, मुज बिन खिन न रहाय ॥ मि॥अबतो मोसें रूसक चाख्यो, वात न पूछे जा. य ॥ मि ॥३॥ विरहव्यथायें तन मुज जूरे, किणसुं कहियें धाय ॥ मि ॥ पिन संयम सुन समता साथे, ज्ञानानंद रमाय ॥ मि ॥४॥इति ॥ ॥ पद अडतालीशमुं॥ ॥राग कहेरबा ॥ मेरे जोले नवाब, कलकत्ते. की सयरकुं ले चलोजी ॥ ए चाल ॥ मेरी प्यारी सुनाहे, श्रवतो तम श्रम संग चलोजी ॥ मे॥ टेक ॥ दोय घोडेपर श्रम कियो जीन, तम पण चालो प्यारी संग श्रदीन ॥ मे ॥ १॥ जल पण नांहिं Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - ११६ झान विलास अब हम हाथ, ढील न करो प्यारी चलो हम साथ ॥ मे ॥ तम खातर अम कुःख बहु कीन, प्यारी मत गंडे अमने दीन ॥ मे ॥२॥ नारी कहे परो जारे निगोद, थारे मारे कुण करे वात निखोद ॥ मे ॥ श्रम अब चालुं किंहां थारे संग धूत, तुं मूरख शिर मोल कुमूत ॥ मे ॥३॥ इतनी सुनकर नयो ते उदास, कुटिला अबलानी कुण करे श्रास ॥ मे ॥ तिन अवसर लही निधि चारित्त, झानानंद मूरति नजे सुख चित्त॥मे॥४॥इति ॥ ॥ पद गणपचाशमुं॥ ॥ राग कहेरवा ॥ एक अचंलो मुज मन वशियो॥ ए० ॥ टेक ॥ चालतो हालतो मूंगर दीगे, विचमें एक सिखर उंचो वसियो॥ए॥॥ोटा पांच शिखर जसुं चउदिशि, नाना तरु विण मंडित रहियो॥ ए० ॥ सरव काल सागर विच रहितो, कवन चलावे ते श्रम कहियो ॥ ए॥२॥ मानस नहिं को तेहमां दिसे, ध्रुव श्रध्रुवपणो तेहमें रहियो ॥ ए० ॥ सुगर बिच नवनिधि चारित्र युत, ज्ञानानंद मूरति गुण गहियो ॥ ए॥३॥ इति ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ज्ञानविलास ॥ पद पचाशमुं॥ ॥ राग कहेरवा ॥ बोरी बामनकी, बोरी बामनकी, अंगिया कुं अंतर लगायके चली ॥ हाथमें पिंजरा गुलाबकी बमी, जरे बजारमें घुरती खडी॥ ए चाल ॥ मोरे जोले पिया, मोरे जोले पिया, मो. पर जाउमा मालकें चले ॥ मो० ॥ टेक ॥ मेरे हिरदय बिच राखती, कलु नहिं मारे तोसुं रति ॥ मो० ॥ मोसें पिया तम काह उदास, हुं थारे रंग चरणारी दास ॥ मो० ॥ १॥ जो थारा मनमें रहि एसी हुँस, पेहेलेहि जानति करति रूस ॥ मो० ॥ विन बालम मेरो विगमे काल, क्योंकर वीते हाल निहाल ॥ मो० ॥२॥ श्रबलाकें पति गति मति जान, अनुपम शील नूषण गुणखान ॥ मोरे ॥ इतने नवनिधि चारित्र रंग, मिलगए ज्ञानानंद सुरंग ॥ मोरे ॥३॥ इति ॥ ॥पद एकावनमुं॥ ॥ राग सोरठ ॥ प्रीतके को फंदें पडो ना ॥ ए चाल ॥ वालम नारिके फंदें पडो ना॥ वा ॥ टेक ॥ जो तम नारी के फंदमें पडिहो, कोटिजतन Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११७, ज्ञान विलास मन राखो रहे ना ॥ वा ॥ १॥ नारी कालीनागन सरिखी, देखत चित्त मामामोल करे रे ॥वा ॥ नारीसंयोगें बरमदत्त परमुख, नरकें उरधर कुक चरे रे ॥ वा० ॥॥श्रार्डकुमर मुनि नारि संयोगें, वरस चउवीस गिहिवास कियो रे ॥ वा ॥ नारीकी प्रीतें इनजव परनव, सुख न लहे पगबंध जयो रे ॥वा॥३॥ उत्तम नर इन नाहिं बतावे, ध्यान धरे वनमांद रहे रे ॥ वा० ॥ निरमल निजगुन श्रातम ध्याने, सुफ समाधि नाव लदे रे ॥वा॥४॥ तिनतें वालम तम पण समजो, कुटिलानी प्रीतमी परिहरो रे ॥ वा ॥ मोसुं तो निधि चारित्रश्रादर, ज्ञानानंद सुख रमण करो रे ॥ वा ॥ ५॥ इति ॥ ॥पद बावनमुं॥ ॥ राग सोरठ ॥ देश माहरो पियाकुं बताय दिजो रे, मेंतो लेजंगी जोगनियाको वेस ॥ दे॥ ए चाल॥को सखी पियाकुं बतावैरी, मेंतो जाजंगी वालम पास॥को॥टेक ॥सारी जग्या पूजीयो,वाल मजीको देश ॥कोश्को साच नहिं लह्यो, जो कागल पटुंतें देश ॥ को० ॥१॥ ज्ञानी ज्ञानी सब कहे, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ज्ञानविलास ११ए मोकुं न दीसे झान॥में तो साचो जब कहुं, पिया रूप कहे मान ॥ कोण ॥२॥ सऊन ऐसो जो मिले, पियाकुं कागल मेल ॥ कागल वांची मुज लखे, पागो उत्तर खेल ॥ को ॥३॥ जबलग कागल तेदनो, नहिं थावे श्रमपास ॥ तबलग जूरी बात सहु, नहि पम मोकुं श्रास ॥ को ॥॥ इतने एह विचारमें, निधि चारितके संग॥श्राए ज्ञानानंद पिउ, रमण करे सुखरंग ॥ को ॥ ५ ॥ इति ॥ ॥पद त्रेपनमुं॥ ॥ राग सोरठ ॥ मेंतो कैसे पियाकुं सेरी, पिया'मेरो योगियांको वेस ॥ में ॥ टेक ॥ में तो कन्या नूपकी, जाने सकल जिहान ॥ घरसे निकलुं कुण परें ॥ कहो सखी चतुर सुजान ॥ में ॥१॥ सतिय शिरोमणी श्रम बिरुद,बरमचारी शिर मोल ॥ दीसुं नहिं जगलोकमें, माहरो मोल अमोल ॥में ॥॥ बिनपरण्या उत्तम पुरुष, ध्यान धरे दीनरात ॥ ते पण दरशन माहरो, दरश न लदे तिलमात्त ॥ में॥ ॥३॥ में तो मन गमतो कियो, बांडी जग जन वाद ॥ दूर मत रहे वालम मिले, पसरे जग जस Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १० ज्ञानविलास वाद ॥ मे०॥४॥ कन्या एह विचारतां, श्राय भिले ततकाल ॥ ज्ञानानंद योगी पिया, चारित युत जगपाल ॥ में ॥५॥इति ॥ ॥पद चोपनमुं॥ ॥ राग सोरठ ॥कोश्योगी हमकुं जानेरी ॥मेरो को नामकुं जान ॥ को ॥ टेक ॥ मानस नहिं हम नारी नांहिं, नांहिं नपुंसक जान ॥ को॥१॥ दादा बाबा नहि हम काका, ना हम कुणके बाप ॥ कोण ॥ नाना मामा हम नहि मोसा, कोसें नहिं बालाप ॥ को० ॥२॥ बेटा पोतरा गोलक नांहिं, नाती उहिता न जान ॥ दादी चाची बेटी पोती, ना हम नारी मान ॥ को० ॥३॥ गुरु चेला नहिं हम काढूके, योगी जोगी नांह ॥ को० ॥ पांच जातमें नहिं हम कोश, नहिं को कुल गंह ॥ को ॥ ॥४॥ दरशन ज्ञानी चिद्घन नामी, शिववासी इम जान॥ को० ॥ चारित्र नवनिध अनुपम मूरति, झानानंद सुजान ॥ को० ॥ ५॥ इति ॥ ॥पद पंचावनमुं॥ ॥ राग सोरठ ॥ बनी दगाबाज, रे तूं बमि द Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ज्ञान विलास ११ गाबांज, प्यारी तूं बमिदगाबाज ॥ टेक ॥ तेरे खातर शृंगर दरि बिच, रही दुःख सह्यो में अपार ॥ हांसी खूसी बहु नातरां कीधां,तूं कां नूलि गवार॥ रे तूं बमि ॥१॥ कवडी साटे तेरे खातर, मादरो किधो मोल ॥ ढूंढक योगी यति सन्यासी ॥ मुंमित कियो तें रोल ॥रे तूं बमि ॥२॥ मुहमो बांधी कान ते फाडी, बहुविध वेस कराय ॥ कपट करी सहु पाखंम कीधा, जन लूंट्यो मन नाय ॥ रेतूंबमि ॥३॥घर घर जटक्यो तेरे साथें, पोतें पाप नराय ॥ अब तूं काह न बोले मोसुं, तुं कपटीनी दिखलाय ॥ रेतूं बमि० ॥४॥ ऐसो देखी जयोहूं उदा. सी, निधि चारित्र लहाय ॥ ज्ञानानंद चेतनमय मूरति, ध्यान समाधि गहाय॥ रे तूं बमि० ॥५॥इति ॥ ॥ पद उपनमुं॥ ॥राग महार ॥ प्यारे साहेबशुं चित्त लावोरे, साहेब दूर कहलावो रे ॥ प्या० ॥ टेक ॥ साहेब' एकही हे जग व्यापी, नहि कहे नेद लहावे रे ॥ प्या॥॥ जे के साहेब नेद बतावे, ते बहुरा जग पावे ॥पारसनाथ कहे को बरमा, विष्णु शिव कहे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५२ ज्ञानविलास लावे रे ॥ प्या० ॥२॥ ध्यान ध्येय ग पारस रूप, ज्योतिरूप बरम नावे ॥केवलान्वयो ज्ञानी ते विष्णु, शिववासी शिव जावे रे॥प्या॥३॥ जोतिरूप साहेब तो गही, तिनसुंध्यान लगावो॥ निधि चारित्र ज्ञानानंद मूरति, ध्यान समाधि समावोरे॥प्या॥॥ ॥पद सत्तावनमुं॥ ॥ राग महार ॥ देखो पिया श्रागम जहवेरी श्रायो, नाना नूखन लायो ॥ दे० ॥ टेक ॥ विनय कनकनो घाट बनायो, संयम रतन लगायो । नि. रमल ज्ञानको हीरक बिचमें, दरशन मानक नायो ॥ दे ॥१॥ खायक वैडूर्यनी पंगति, मौक्तिक ध्यान लगायो ॥ सुमिति गुपति लीलम विड्रम जिहां, शेष तत्व कहलायो ॥ दे ॥२॥ए सहु जूषण मोल श्रमोला, निरखत चित्त लोनायो । हरर्षे निधि चारित निहालो,झानानंद रमायो॥दे॥३॥इति ॥पद अठावनमुं॥ - ॥ राग मल्हार ॥ ज्ञानकी दृष्टि निहालो, वालम तुम अंतर दृष्टि निहालो ॥ वा ॥ टेक ॥ बाह्य दृष्टि देखे सो मूढा, कार्य नांहिं निहालो ॥ धरम Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ज्ञान विलास १२३ धरम कर घर घर जटके, नांहिं धरम दिखालो || वा० ॥ १ ॥ बाहिर दृष्टि योग वियोगें, होत महामतवालो | कायर नर जिम मद मतवालो, सुख विजाव निहालो || वा० ॥ २ ॥ बाहिर दृष्टि योगें नविजन, संसृति वास रहानो ॥ तिनतें नवनिधि चारित खादर, ज्ञानानंद प्रमानो ॥ वा० ॥ ३ ॥ इति ॥ ॥ पद जंगणसाठमुं ॥ ॥ राग मल्हार ॥ ज्ञानकी दृष्टि विचारो, साधो माइ श्रतम दृष्टि संजारो ॥ सा० ॥ टेक ॥ अनुकरमें शुद्धाने अनुभव, ज्ञेय सकल सुविचारो ॥ ज्ञा ज्ञेयकी एकता यादर, बहिरातम सुं निवारो ॥ सा० ॥ १ ॥ ज्ञानदृष्टि जे अंतर जावें, सुद्धरूचि रूप पहिचानो, अंतरातम ज्ञानातम जावें ॥ होय परमातम जानो ॥ सा० ॥ २ ॥ परमातम ते निजगुन जोगी, चारित ज्ञान बखानो ॥ ज्ञानानंद चेतनमय मूर्त्ति, आनंद जावसु जानो ॥ सा० ॥ ३ ॥ इति ॥ ॥ पद साठमुं ॥ ॥ राग मल्हार || अनुभव ज्ञान संजारो, साधो जाइ मत एकंत हव वारो ॥ सा० ॥ टेक ॥ ज्ञान Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२४ ज्ञानविलास विना जे किरिया नांखे, अंध नर सम वन मोलें। श्रागममां ते देश श्राराधक, सर्व विराधक · बोले ॥ सा॥१॥ किरिया बांमी ज्ञान जे माने, पंगुल नर सम जानो ॥ सरव श्राराधक दिव्य विचारें, दे. श विराधक मानो ॥ सा ॥ २॥ तिनतें ज्ञान सहित जे किरिया, करतां कारज सारो ॥ जिम अंध पंगुल दोनु मिलकर, वनसें निसरे सारो ॥ सा ॥ ॥३॥तिनतें एकंत मत पख बांडी, अंतरजाव विचारो ॥ अनुपम नवनिधि चारित संयुत, ज्ञानानंद संजारो ॥ सा ॥४॥इति ॥ ॥पद एकशपमुं॥ ॥ राग बिहाग ॥ सूनो सखी मोकुं खूट मचायो ॥ सू० ॥ टेक ॥ बहु वासरसे विनय व्यथायें, अंगें फुःख रहायो । एक दिन मजन सनान करी श्रम, नूषन अंग रहायो ॥ सू० ॥१॥ रंग कसूंबा चूनमी पहिरी, पांचमी वरत रहायो ॥ ग योगी मतवालो श्रायो, नोलें नगति लहायो ॥सूणा॥ दिनजर मोसें गीत गवायो, सांजे नाच नचायो ॥ रंगमहल बिच सेजें पोढी, मोने रंग ललचायो॥सू०॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ज्ञानविलास ॥३॥ तनमय एकंत अंगे लपट्यो, रयणे नींद बिकायो। नणदी पण हसी दोडी आई, मोकुं तो मचकायो ॥ सू०॥४॥ जोर नयो उठ नाग्यो योगी, ना जानुं विगमायो॥ सखि कहे स्वामिनि कुमलानी, मौनकरी सरमायो॥ सू० ॥ ५॥ तिन अवसर निपदी तिहां बोली, हसकर करवत लायो॥रातें निविचारित नित्यसाथे, ज्ञानानंद खेलायो॥सू॥६॥ ॥पद बाशपमुं॥ ॥राग बिहाग ॥ मेरो पिया सखि देख मनावो। मे ॥ टेक ॥ पिया बिना रंग महेल बिच, सूनी सहेज रहायो ॥ खान पान उःखदायक मोकुं, क्यु कर जिय समजायो । मे ॥१॥ शोल श्रृंगार ए विरह व्यथायें, केसें रयण विलायों ॥ अंग अंग बिन जंगुर माहरो, तेसें कहुं चित्त लायो । मे ॥२॥ इतने चारित मितके संगें, ज्ञानानंद पिया पायो । गरीषम तापें जिम जल बरखन, सेज धरी मचकायो । मे ॥३॥ इति ॥ ॥पद त्रेशपमुं॥ ॥ राग बिहाग ॥ तुं बालूराने क्युं मारे मूढ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५६ ज्ञानविलास तुंग ॥ टेक ॥ बालो नोलो हम बालूडो, नहिँ क्यु३ जाने गूढ ॥ बागामांहे खेले अह निश, वात विचारो मूढ ॥ तुं० ॥१॥ खेलन मिस डोरो थारा पासे, रमण करे चित्त खोल ॥ तुं फुसलाइ नित्य जटकावे, श्तयुत करे मममोल ॥ तुं॥२॥ निर्दय निर्धन नहिं तुझ सरिखो, नहिं क्युं माने निगेर ॥ इतने चारित ज्ञानानंदे, बोरो लियो चित्त गोर ॥ तुंम् ॥३॥ इति ॥ ॥पद चोशउमुं॥ ॥ राग बिहाग ॥ जगगुरु निरपख कोन दिखाया ॥ नि० ॥ टेक ॥ अपनो अपनो हठ सह ताने, कैसे मेल मिलाय ॥ वेद पुराना सबहीं थाके, तेरी कवन चलाय ॥ ज० ॥१॥सब जग निज गुरुताके कारन, मदगज उपर गय ॥ ग्यान ध्यान कबु जाने नांहिं, पोतें धर्म बताय ॥ ज ॥२॥चोर चोर मिल मुलकनें खूट्यो, नहिं को नृप दिखलाय ॥ किनके पागल जा पूकारे, अंधो अंध पलाय ॥ ज० ॥३॥ श्रागम देखत जग नवि निरखं, मन गमता पख नाय ॥ तिनतें मूरख धर्म धर्म कर, मत Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ज्ञान विलास १७ ब्रूडे मन लाय ॥ ज० ॥४॥ इन कारण जग मत पख बांडी, निधि चारित्र लहाय ॥ ज्ञानानंद निज जावें निरखत, जग पाखंड लहाय ॥ ज० ॥ ५॥ इति ॥ ॥ पद पांशठमुं॥ - ॥राग बिहाग ॥ जगगुरु मूरख जगत जनाय ॥ ज० ॥ टेक ॥ मूरख मूरख बहुलो जग जन, गूढ पंडित केश जाय ॥ पंडित मूरख बहु जन दीसे, जग मतलब लहे जाय ॥ ज०॥१॥ पंमित पंमित नहिं को जगमें, कबहीं कोई जनाय ॥ दिव्य विचारी तेहनें जाखे, संसृति अलप गिनाय ॥ ज० ॥२॥ तेहचं दर्शन जगमें उर्लन, ते तारक जग मांह ॥ तिनतें नवनिधि चारित जावे, ज्ञानानंद अथाह ॥ ज०॥३॥ इति ॥ ॥पद गशपमुं॥ ॥राग रामग्री ॥ निरपखता मोकुं नाश, पिया तम ॥ नि ॥ टेक ॥ पक्षपातमें घर घर जटकी, नहिं निरपख दिखला ॥ पि० ॥ संवेगी संवेगन कीनी, योगी योगन ना॥ पि० ॥१॥ सन्यासी सन्यासन कीनी, बामण बामणी ला ॥ पि० ॥ रा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२ज झान विलास मसनेही रामकी प्यारी, यतिगण यतिनी ना॥॥ ॥अपने अपने मत पख गदेला, सहु उन्या बहुरा॥ पि०॥ पण ना जाणुं कोण हे साचो, अपनी तो जरमा ॥ पि ॥३॥ दिव्य विचारें निज अनुजवतां, जग पाखंग दिखा ॥ पि० ॥ निधिचारित एक ज्ञानानंदनो, विमल वचन सतला ॥ पि०॥४॥ ॥पद सडशठमुं॥ ॥राग रामग्री ॥ वालम वचन सुहाइ ॥ पिया श्रम वा० ॥ पक्षपात नहि दिव्य विचारें, निज अनुनव दिखला॥पि॥१॥इंघिय सुख विरमण यति कहिये, दश यति धर्म धरा॥ पि ॥ जव उद..विगन संवेगी कहिये, योग चरण जे योगी.॥ पि० ॥ चारित्र नाव सन्यासी जानी, बरामन बरम गुण जोगी ॥ पि ॥२॥ साहिब रमण ते रामका प्यारा, एक रूप सहु जाय ॥ पि० ॥ निधि चारित्र ज्ञानानंद अनुभव, ध्यान समाधि सुहा॥पि॥४॥ ॥पद अडशमुं॥ ॥राग रामग्री ॥ नारी प्रेम निवारो, साधो जाकुटिला नारि निवारो ॥ सा॥ टेक ॥ कुटिला Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ज्ञान विलास २२७ 3 नांरी योगें साधो, तुम गति च दिसी फेरो ॥ सा० ॥ ते तुम मोह मदपान कराइ, इतउत कलह विखेरो ॥ सा० ॥ १ ॥ निर्जर पण एहनी थाह न पामे, नूपर पंकिता जाणो ॥ इंद्राणी के पगतल लोटे, इंद्रादिक परमाणो ॥ सा० ॥ २ ॥ नारी प्रेम विलूधें ढोलो, नहिं क्युं समजे घेलो ॥ सा० ॥ तिनतें नव निधि चारित संगें, ज्ञानानंदमें खेलो ॥ सा० ॥ ३ ॥ ॥ पद गनोतेरमुं ॥ ॥ राग रामग्री ॥ नारी प्रेम लगावो, साधो जाएँ, नानी नारी रमावो ॥ सा० ॥ टेक ॥ इस संयोगें योय जगावो, सहज शक्ति शुभ जावो ॥ सा० ॥ निज परजावने देखे योगी, क्षणभर अंग लपटावो ॥ सा० ॥ १ ॥ अविनाशी अकलंकता तुम गुन, ते हिज शुभ श्राचारो ॥ सा० ॥ जम पुल इन जावसें न्यारा, एहनी ममता वारो ॥ सा० ॥ २ ॥ महोटा सहयोगी पण वंडे, एहनो संग सुखकारो ॥ सा० ॥ निधि चा रितं ज्ञानानंद प्रेमें, खेले नारी प्यारो ॥ सा० ॥ ३ ॥ इति ॥ ॥ पद सीतेरमुं ॥ ॥ राग रामग्री ॥ अनुभव योग रमावो, साधो For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३०, झान विलास नाइ, निजघट अंतर जावो ॥ सा ॥ टेक ॥ मेरा तेरा कहा करतहे, नहिं कबु तेरा लावो ॥ सा ॥ जग जन किरिया कहा दिखलावे, कहा जग जन समजावो ॥ सा० ॥१॥ निज निजमत पख हठता वारो, अंतर नाव विचारो ॥ सा ॥ हालाहल अज्ञान निवारो, झान सुधारस धारो ॥ सा ॥२॥ तत्व विचारें प्रेम लगावो, निजगुण विमल निपावो॥ सा ॥ नवनिधि चारित प्रेमें श्रादर, झानानंद रमावो ॥ सा० ॥ ॥पद इकोतेरमुं॥ ॥ राग जंगलो। तुम सखि निरखोरे बाइ, सोतमी लेग श्रम वालमवा ॥ तु०॥ टेक ॥ श्रागें श्रागें पिया चलतहे, पावें सोतमी बाय ॥ दासी पण तेहनें साथें, कुटिला चित्त लोना॥तु ॥१॥ श्रमने लक्षण एहवो दीसे, वालम गये नरमाश् ॥ मोह नूपतिके जालें श्रटक्यो, अब नहिं निकले बार ॥तु॥२॥ क्रोधादिक तेदने रखवाला, कोट विषय कुःखदाय ॥ तेहने चनदिसि सात बिसनहे, अहोनिश लंपट सांई ॥ तु० ॥३॥ दासी युत कु Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ज्ञानविलास . १३१ टिला तिन पासे, रमण करे चित्त लाइ॥ मदिरा पाने ते मतवालो, विकथा चज बतलाइ ॥ तु०॥४॥ ग्राहक व्यापक जोगें लंपट, सुख विनाव सुहा॥ संसृति संग सहु अपनो जाने, विगमे काल सदा ॥ तु० ॥५॥श्न अवसर निधि चारित्र निरखे, झानानंद सदा ॥ नोले पंखीका देख तमासा, गुण संवेग रमाइ॥ तु० ॥६॥ इति ॥ ॥पद बहोत्तेरमुं॥ ॥राग जंगलो॥धीरज धारोरे बाइ, सांजल वा. मिनी वाणी सखी कहे ॥धी० ॥ टेक॥ समता स.. खीं पियु निरखन चाली, श्रागम मंत्री नाश् ॥ . र्धर चार सुजट संग लेश, गम गम निरखा ॥ धी० ॥१॥ निरखत निरखत मोहके वाडे, श्रा गुपत रहा॥श्रा सखि ए चार सुनट युत, तेहने पासें ग॥धी०॥॥ श्रागम मंत्री गुपत रहीने, अवसर नाव जनाश् ॥ अपनो अपनो दावं विचारे,ततपर कारज जाय ॥धी॥३॥ मोहनो परिकर श्रागम निरखी, सघला चित्त चमका ॥ धर्म राजको परिकर निरखी, नाग सहु उकता ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३५ . झानविलास धी० ॥ ४॥ सुमति श्रागम मंत्री साथें, वालूमो निकसा ॥ हरखें श्राव्यां निज घरमांहें, राणी मेल करा ॥ धी० ॥ ५॥ तिन अवसर निधि चारित्र श्रादर, झानानंद रमा॥ अनुजक प्याला प्रेम म. साला, रंगें पान करा ॥धी॥६॥इति ॥ ॥पद तहोंतेरमुं॥ ॥राग जंगलो ॥ तुम किहां चाल्यो रे सांश, तुम साथें हुं योगन नश् अब ॥ तु०॥ टेक ॥ तेरे खातर हम घर गंडी, थारे संग चित्त ला॥ किन पर हमने बांमिके चाले, केसें प्रीत लगा ॥ तु॥१॥ किन कारन अमने फुःख दीनो, काहे कुं घर मूका३॥ घात विश्वास करे कहा मोसुं, कुणने पुकारु जा ॥ तु ॥२॥ सां कहे श्रम घरकी याही, रीत पुरानी जा ॥ जबलग तेल दिपकमां बाती, तबलग श्रम तम नाश्॥ तु० ॥३॥ इतनी कहकर सांश चाल्यो, अपने ग्राम सुहा॥ अनुपम नवनिधि चारित्र श्रादर, झानानंद रमाश् ॥ तु० ॥४॥इति ॥ ॥पद चम्मोतेरमुं ॥ ॥ राग जंगलो॥मुनि तम निरखोरे नाइ, जाति Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ज्ञानविलास १३३ नाव न तजा॥मुटेक॥ जे केश गंगानिर पखाले, काली ऊरण लाइ ॥ विविध नांतकर महनत कीनी, तोपण सित नहिं जा ॥ मु॥१॥ कर्त्तानी तिहां बुधि नहिं चाले,नहिं औषध गुण ला॥ जा. तिरंग तेहनो नहिं पलव्यो, कहा करे चतुरा॥ मु० ॥२॥ तेहनी किरिया सघली फोकट, झान फोकटता जा ॥ तिन कारण निधि संयम अनुजव, ज्ञानानंद रमाश् ॥ मु० ॥ ३॥ इति ॥ ॥पद पंच्चोत्तेरमुं॥ ॥ राग जंगलो ॥ श्रनुलव लावोरे योगी, निज घट मांहि रमावो ॥ १० ॥ टेक ॥ अनुजव ज्ञान जगतमें उर्लन, श्रलप संसृतिने जा ॥ उर्जव्य अनव्य जीवने, अनुजव नांही लहा॥०॥१॥ कमवी तुबमी कोसों जटकी, श्रमशठ तीरथ न्हा. ३॥ तोपण तुंबडी कटुता न ांडी, कहा तीरथ फरसा ॥०॥२॥ तिनतें निजघट अंतर निरखों, अनुनव शैलि सुहाय ॥ तनमय नवनिधि चारित्रयोगें, ज्ञानानंद लहा॥ श्र० ॥ ३ ॥ इति ॥ ॥ इति श्री ज्ञानविलास संपूर्णः ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३४ संयम तरंग ॥अथ ॥ ॥श्रीसंयम तरंगः प्रारभ्यते ॥ ॥पद पदेलुं ॥ ॥ राग नेरव ॥ योगनंद श्रादरकर संतो, अरुण पुति लय लावो ॥ यो॥ टेक ॥ अंतर षटचक्र सोधन करकें, वंकनाल कर नावो॥ यो० ॥१॥ चंड सूरज मारज जुग तजकर, सुषमन परवाह जानो ॥ कुंनक रेचक पूरक नावें, प्रत्याहार प्रमाणो ॥ यो॥ ॥२॥धारण ध्यान समाधि सपतम, श्वास रोधन करतानो ॥ अनुपम अनहद धनी अनुयोगें, सौहं सोहं गानो॥यो०॥३॥सोहं सोहं रटना रटता,नवनिधि संयम जायो ॥ ज्ञानानंद परमातम रोचि, देखत हरख लहायो ॥ यो० ॥४॥इति ॥ ॥ पद बीजं ॥ ॥राग नेरव ॥ जग जन निंदडी तजकर संतो, योग निंद संजारो ॥ ज० ॥ टेक ॥ नाना लबधि निधाननुं थानक, सकल संपद थाधारो ॥ ज० ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संयम तरंग ॥१॥विविध विषमय देखि नवि ने निर्लेपी वीतरागो.॥ शत्रु मित्र समजाव रहे नित्य, दरद्धासन ध्यान जागो ॥ ज०॥२॥ योग निंद लय जावें जिनने, कोइ न करे अपगारो ॥ मीत समान सेवे ज. सुरिपुगण, वचन फले जगसारो ॥ जप ॥३॥ तसकर श्वापदनो जसु नवि जय, पंचविजय लहे सारो ॥ निधिचारित ज्ञानानंद श्रादर, परमानंद निहारो॥ ज०॥४॥ इति ॥ ॥पद त्रीजुं॥ ॥राग नैरवी ॥ प्राण पिया तम ऐसी सबजी पीवोरे ॥ प्राण ॥ टेक ॥ निज सुन परिणति अनुपम सबजी, तिखीमरी विवेक लेवो रे॥ प्रा० ॥ तत्त्व विचार विविध सुमसाला, उपसम कंकर कूकी मेवो रे॥ प्रा० ॥१॥ कुटिल निवृत्ति समता प्रेमें, संयम रगडा ताणो रे ॥ प्रा०॥ धरम शुकल पय सुरजीसर केरा, संवर साफ गुडगनो रे ॥ प्रा॥ ॥ श्रनुन्जव ज्ञानका रतन पियाला, नर नर समता पिलावे रे ॥ प्रा० ॥ निधि चारित्र ज्ञानानंद योगी, पीवत ध्यान लगावे रे ।। प्रा० ॥३॥ इति ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३६ संयम तरंग ॥पद चोथु ॥ ॥ राग भैरवी ॥ गगन मंडलगत परम अरुण रुचि जायो रे ॥ ग ॥ टेक ॥ चंद कहुं तो चंदन निरखं, तरणि पिण न जनायो रे । ग ॥ तेल सिखा बिन दीप न निरखं, जगमग रुचि सुखदायो रे ॥ ग०॥ १॥ धन समीर परमुख उपाधि, रहित रुचिर दरसायो रे ॥ ग ॥ सब जग व्यापी पांचहि जाते, पण नहिं नाव रमायो रे ॥ गण॥२॥ पंडित योगी सघले थाके, निज हठ पख लपटायो रे ॥ ग ॥ श्रापहिं निरखे श्रापहिं जाने, सहज समाधि जगायो रे ॥ गण ॥३॥ तव घर घरकी जरमना.मे. टी, सहज रूप परखायो रे ॥ ग ॥ निधि संयम झानानंद योगी,ज्योति निरख दरखायोरे॥ग ॥४॥ ॥पद पांचमुं॥ - ॥राग वेलावल ॥ निज परिणति चित्त धारियें, पर परणति तज सार॥नि टेक ॥ जबलग रहे पर परिणति, तबलग जव चम धार पनि॥१॥अपनी पूंजी लख नहिं, कुमता संग चित्त खोल ॥ राजपूत होय परमतें, ते कायर सममोल निणा॥ किंपाक Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संयम तरंग १३७ फलसम रूप रेह, नवसंग सुख जेह ॥ अंतर हालाहल सही, पुर्धर पुःखद लगेह ॥ नि० ॥३॥ काचखंड तुं गंडदे, चिंतामणिकुंजील ॥ नवनिधि संयम श्रादरी, ज्ञानानंदे हील ॥ नि॥४॥इति ॥ ॥पद बहुं॥ ॥ राग वेलावल ॥ पर परिणतिकुं तज करी, निज परिणति लहे सार ॥ प०॥ टेक ॥ निज परिपति कर जस लहे, उजय लोक सुखकार ॥१०॥१॥ मुंगी होय जिम ईलिका, मुंगी सर अनुराग ॥ अरनी अगनी परगटें, पय गत सर पिष जाग ॥ प० ॥ ॥१॥ जिम शशिथी अमृत लहे, पारस कनक विचार ॥ तिम निज परिणति आचस्यां, सहजें परसंग वार ॥ १० ॥३॥ समता संग रमण करे, चार सखियुत तेह ॥ नवनिधि संयम तनमय, ज्ञानानंद सुख गेह ॥ प० ॥४॥ इति ॥पद सातमुं॥ ॥ राग काफी ॥ चेतन तुं क्यों फरे नूला, हिंमोला करमका कोला॥ए चाल ॥साधो तम निजघटमें देखो, मत पख हठता नहिं पेखो ॥ सा ॥ चेतन Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३० संयम तरंग विजाव हे सबही, अपनो न बांड हे कबही॥ सा ॥१॥ को प्रकारे नहिं देखो, उषर बीजको लेखो॥ रासन गंगाजल धोयो, तोपण लोटे उकडायो ॥ सा ॥२॥ सूकर पायसकुं बंमी, श्रशचिनोगे जे मंमी ॥ मध घतकर सींचो तबहीं, नींब न मीगे होय कबहीं ॥ सा ॥३॥ ज्ञानी ध्यानी के वेषी, निजमत पखपातें पेखी ॥ तिनतें अनुभव ज्ञानानंदें,सुनजो चारित्रश्रानंदें॥सा॥४॥ ॥पद आठमुं॥ ॥राग काफी ॥ देखो प्यारे सब जग कलही, नहिं को शांति मूरत पेही ॥देण्॥ मुनिजन उपसम गुण धारी, कलही कोप कारण सारी ॥ दे ॥१॥ सेकुं तसकर सहु गावे, तसकर सेठ करी लावे ॥ सतवादीकुं कहे कूमा, मिरखाकुं सत कहे-मूंमा ॥ दे ॥२॥ कमल प्रन सूरी जानो, श्रुति दृष्टांत कहे मानो॥तिनतें निधि चारित धारी, नजो झानानंद अधिकारी ॥ दे ॥३॥ इति ॥ ॥पद नवमुं॥ ॥ राग काफी॥सब जग जन अपनी ताने, जिहां Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संमय तरंग १३५ कोश्न परमाने ॥ स ॥ टेक ॥ जे कोइ परमानकू पूजे, तानातानी कर हु ॥ सा ॥१॥गीतारथनी नहिं माने, कहीएतो पाखंम सहु जाने ॥श्रुति गत साची नहिं जावे, जग जन कूड सहु नावे ॥ सा०॥ २॥मतवाला अमबहु मलिया,नहि कोश्परमार्थी क लिया ॥ तिनतें निधि संयम चित्तें, नजे ज्ञानानंद सुख नित्य ॥ सा० ॥३॥ इति ॥ ॥ पद दशमुं॥ ॥राग काफी ॥ मतलबियो जग जन देखो, को उपगारी नहिं पेखो ॥ म ॥ टेक ॥ नियां पटुतर स्वारथकी, पाठ न पूजे परमारथकी॥ म० ॥ १॥ गत यौवन निःसनेही, तरुणी पण विषयी न रेही । जोजन पाजे नहिं जावे, अमृत पण कांजी कुण खावे ॥ म ॥२॥ एह विचारें मुनि समजो, पर उपगारक गुन बूजो॥अनुपम निधि चारित पावो, (जिम ) निर्मल ज्ञानानंद जावो॥ म०॥३॥इति ॥. ॥पद अगीआरमुं॥ • ॥ राग फाग ॥ हमरी चुनमी किन बोरीरो लोगों ॥ ए चाल ॥ श्रबलानी ग बात सुनो पिया, ऐसी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४० संमय तरंग न खेलो होरी रे ॥१०॥ टेक ॥ तुम न्हानी वह सखि संयोगें, न मतवाली दोरीरे ॥१०॥ कुटिला साथे तुमें पण पहोता, मदनबागां खेली होरी रे॥ ॥ १॥ अविरतनां पकवान जिहां तुम, हरखे जोजन जोरीरे ॥ १०॥ मिथ्या नाव गुलाल उमाश्, योगा कुमकुम फोरी रे ॥ ॥ २॥ इंडिय विषय जिहां रंग पिचकारी, मोहराजकी जोरी रे ॥ १० ॥ चार कथायें तुं मतवालो, रंग मचायो होरी रे ॥ ॥३॥ ऐसी होरी खेली तोपण, तृपत न नश्ते गोरी रे ॥ १० ॥ ग्यारमी नूमसे तुमने नाखी, लेग खेलन होरी रे ॥१०॥ ॥४॥ अबतो पिया मन मोहे समजो, नारी वचन चित्त जोरी रे ॥ १० ॥ जिम चारित्र युत ज्ञानानंदें, नवनिधि पामे दोरी रे ॥ १० ॥५॥ इति ॥ ॥पद बारमुं॥ • ॥राग होरी॥होरी खेले कान हिया॥ मेरो अब केसे निकसन होय दश्यां ॥ एचाल ॥ होरी खेले वालमिया, मेरो अब केसें जावनो होय दश्यां ॥ हो ॥ टेक ॥ पंच महाव्रत वाघा पहेरी, शील वि Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समय तरंग १४१ नूखन ले सश्यां ॥ ज्ञान गुलाल अबीर उमाश, कुमकुम शांति नरे सश्यां ॥ हो॥१॥ संयम रंग सुरंग जरीने, पिचकारी श्रागम ले सश्यां ॥ समता साथें सुमति गुप्ति सखी, होरी खेले ताथश्यां ॥ हो॥ ॥२॥ शुज समकित पकवाननुं जोजन, चेतन हरख धरे सश्यां ॥ निधि चारितयुत ज्ञानानंदें, निजगुन होरी वरे सश्यां ॥ हो ॥३॥ इति ॥ ॥ पद तेरमुं॥ ॥ राग तुमरी ॥ पर विकथा तुं कहा करतहे, अपनी न काह विचारतहे रे ॥ पण ॥ टेक ॥ जगमें पर विकथा कर संतो, ज्ञान ध्यान विगमावतहै रे॥ प० ॥ १॥अपनी विकथा काह न धारे, पोतें पुरित जरावतहै रे ॥ गर्दा संयम दिव्य विचारे, अंतरजाव दिखावतेहै रे ॥ ५० ॥२॥ जबलग अपनी कथनी न जाने, कहा उपदेश सुनावतहै रे ॥ निधि चारित्र ज्ञानानंद निजपद,काह न चि. त्त रमावतहै रे ॥ प० ॥ ३ ॥ इति ॥ ॥ पद चौदमुं॥ ॥ राग तुमरी ॥ गगन प्रदेश रसाल काम ग, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४२, संयम तरंग अरुण " नज परमित जसु बाया रे || ग० ॥ टेक ॥ तिनंपर stor प्रन गज मैथुन करत कलोल सुनाया रे ॥ ग०॥१॥ ताद कामको पान चुगत दें, अनादि अनंत तसु संगें रे ॥ ता नीचें एक रहत, मरगवा, खाधो गज निज रंगें रे ॥ ग० ॥ २ ॥ गरदन मित जसु बाहर दीसे, कैसें जीवन वंबे रे ॥ कालांतर तेहथी गज जायो, मृगहन नरपति लंबे रे ॥ ग० ॥ ३॥ जिन दिन जे गज नरपति जाने अपनो खोज ग मावेरे ॥ तव निधि चारित्र ज्ञानानंदें, मातंग श्रा - सन पावे रे || ग० ॥ ४ ॥ इति ॥ ॥ पद पंदरमुं ॥ ॥ राग सोयनी ॥ दीपक होत उजियारो ॥ दी० ॥ टेक || बिन दीपक मंदिर अंधियारो, केसें करे रुचियारो ॥ दी० ॥ १ ॥ घोर घटायें रयण अंधारी, जान न पदारथ सारो || दी ० ॥२॥ जमजम योगें ए'कत परिणति, निजगुण दीप वीसारो || दी० ॥ ३ ॥ बिन दीपक चेतन जयो पशुपर, स्वजाव विजाव सधारो ॥ दी० ॥ ४ ॥ सबजग तप जप किरिया विरथा, आतम अनुजव धारो ॥ दी० ॥ ५ ॥ बिन Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संयम तरंग १५३ अनुजव अंधक नर ढूंढत, अनुजव दीप जगारो॥ दी० ॥६॥ तातें श्रवधू मत ठहराणी, ज्ञेय ज्ञान सुविचारो ॥ दी०॥७॥ तेहथी निधि चारित रिधि पामी, ज्ञानानंद निहारो॥ दी० ॥ ७ ॥ इति ॥ ॥पद शोलमुं॥ ॥ राग सोयनी ॥ प्यारी नेह लगारो ॥ प्या॥ टेक ॥ बिनप्यारी घर घरमें जटकत, कायर नाव दे. खारो ॥ प्या ॥१॥ कुमतियोगें चार नगरमें, विविध रूप विसतारो ॥ प्या० ॥२॥ पांच जातका वेस पहराया, निजप्यारी बिन हारो ॥ प्या॥३॥ तेवीस विषयके फंदमें नाखी, पापथान विलगारो ॥ प्या॥४॥ हास्यादिक वज्र कोटें घेख्यो, निजसुध बुध बिसरारो ॥प्या ॥५॥ तिनतें प्यारी युत निधिचारित, ज्ञानानंद लहे सारो ॥ प्या० ॥६॥ ॥पद सत्तरमुं॥ ॥ राग वरुवा ॥ एक समीरका सहर बना हे,श्र. दनूत पंच बाजार तना हे ॥ ए॥ टेक ॥ दस मारग दसही दरवाजै, चउ बासा चउ नगर बिराजै॥ एते ॥ १॥ तेवीस वसंत जिहां नितप्रति दीपे, लेत Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४४ संयम तरंग देत सब जगकुंजीपे ॥ ए०॥ आना जाना एकही कालें, एक विना रहे नगर विचालें ॥ ए० ॥२॥ एक दरवगत नित्य अनित्ये, चटपट नाव वसे सब चित्तें ॥ ए॥ जिन दिन सघलो खोज गमावे, तो निधिचारित्र ज्ञान निपावे ॥ ए० ॥ ३ ॥ इति ॥ ॥पद अढारमुं॥ ॥ राग वरुवा ॥गुरुगम अनुनव शैली धारो, इस पदका निर्वाह विचारो ॥ गु०॥ टेक ॥ सरव समय रवि रुचिकर हीना, विविध स्वापदयुत गहन वि. लीना ॥गु॥१॥ काला मिरगा निज बल वन राजा, नितप्रति राज अखंड समाजा ॥ मु०॥ निर्दय निज वैरीगण मारे, मास विना न नखे खिन सारे॥ गु॥२॥ चक्री हरिबल परमुख जोधा, पिण मिरगा नवि वस किया सोधा ॥गुण॥ तेहने पिन मिरग खिन नख कीधा, कुन समरथ वस करने सीधा ॥ गुण॥३॥ श्रमर बिरुद दरवें जग धारे, मरन जीवन नवि बेहुं सारे ॥ गु० ॥ गदिन दरिथी नपुंसक जायो, अनंतवली पिण नहिं तोलायो ॥ गु०॥ ॥४॥ एकहि घातें मिरगने मास्यो, कंठी रवनो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४५ संयम तरंग राज सुधास्यो ॥गु०॥ तव निधिचारित्र कमला संगें, खहै निर्मल ज्ञानानंद रंगें ॥ गु० ॥५॥ इति ॥ ॥पद उंगणीशमुं॥ ॥राग जंगला ॥ ज्ञान विचारो रे जा, गुरुगम शैली श्रादर संतो ॥झा॥ टेक ॥ गगनमंडल ग. त विविध तूर धनी, घोर स्वरेकर वाजै ॥ पाथोरण बिन घनाधन वरसे, गिरीषम ताप समाजै॥हा॥ ॥१॥ यामें रहत बतासा कोरा, वजर गलै गताने ॥ वासर विन अरुण प्रन नासै, तेजें ऊलहल जाने ॥ झा ॥२॥ मानस नहिं जिम मानस मेला, निरखत लहै श्रानंदें ॥ निधिचारित ज्ञानानंद प्रेमें, रमण करे सुखकंदें ॥ झा ॥३॥ इति ॥ ॥पद वीशमुं॥ . ॥राग जंगलो ॥ ग्यान बिचारो सांई, ऊटपट अनुन्नव प्रीत लगासी ॥ग्या॥ टेक ॥ जीर्ण कुटीयें चेपागल, कां लग वास रहासी ॥ धनाधन वरसत तटनी पूरें, आपोआप वहासी ॥ग्या॥१॥ तातें अवधू चारने वरजी, निज सासू बतलावो ॥ चार पांच सखि वरगें हिलमिल, मोकुं हिरदय जावो ॥ १० Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४६ संयम तरंग ग्या ॥२॥ अष्टादस विध जोजन जिमो, तिरिखे. णी जल न्हा ॥ पत्रिम पावड साला मारग, बार उघाडो सां॥ ग्या॥३॥ विविध वाजिन धनि सांजल निरखे, मुगताफल तरुसां ॥तव निधि चारित्र ज्ञानानंदें, नाचे हरख जराश ॥ ग्या० ॥ ॥ इति ॥ ॥पद एकवीशमुं॥ ॥राग तिवाना ॥ जोगीयासें यारी कीनी हो, झान दिनंदा ॥ जो० ॥ टेक ॥ ज्ञान दिनंदा त्रिजुवन चंदा, तटनी तटनि वसंदा, बरम नाव कबोट धरंदा, घात। जसम विपदा ॥जो० ॥१॥साद सांत दृढ श्रासनधारी, सुं निज परिणति नायी॥ झेय मसाला प्रेमका प्याला, योग नींद लय लायी। जो॥२॥ तत्त्व विचार जटा वधारी, अनहद धुनि चित्त लाइ ॥ निधिचारित्र सुन सेजें प्यारी, झानानंद मचका ॥जो ॥३॥इति ॥ ॥पद बावीशमुं॥ ॥राग तिवाना ॥ गगनें घन निरखानी हो, हरख लदानी ॥ ग ॥ टेक ॥ तिहां शुचि ग अमिसर निरखानी, परमानंद निसानी ॥ तट मुगताफ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . १४७ संयम तरंग ल"तरु सोजानी, फल फूल साख न जानी हो। ह० ॥ ग ॥१॥ हेवें योगी बैस्यो ध्यानी, गतागति कोश्न जानी ॥ गरजारव चपला पुति मानी, किरमिर वरसे पानी हो ॥ ह० ॥ग ॥२॥ सुगुरें खाया मोतीपानी, अजरामर दरसानी ॥ निगुरें नूख तिरिषा परिमलानी, नहिं पामे गुण खानी हो ॥ ह० ॥ ग॥३॥ आपहिं निरखे श्रापहिं जानी, श्रागल कहा बखानी॥निधि संयम ज्ञानानंद योगी, श्रमिवस रहे सहलानी हो ॥ह ॥ग॥४॥इति ॥ ॥ पद त्रेवीशमुं॥ ॥ राग महार ॥ पिन मेरा निजघर आवै रे॥ पि० ॥ टेक ॥ वालम तुमजणी कुटिला निसिदिन, पर घर घर नटकावै ॥ सानपरें निर्लज गुण श्रादर, रंकजाव दिखलावै रे ॥ पि॥१॥ कवन खोट निजघरमें वालम, धन कोगर धरावै ॥ सेजें सुख मुझ साथे लोगो, जिम मन वंडित पावै रे॥पि ॥२॥ राजा सांजल मोह नृपहनसें, थाशे बहुत खराबी ॥ पिउ तातें कुटिला संग वरजो, घरमें बैसो सिताबि रे॥ पि० ॥३॥ इतनी सांजल या मुज Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४० . . संयम तरंग घरनी, निदचै तेहने जानी ॥ निधि संयम ते वानी धारी, ज्ञानानंद बिलसानी रे ॥ पि० ॥ ४ ॥इति ॥ ॥पद चोवीशमुं॥ ॥ राग महार ॥ मेरी तुं मेरी काहाडरे ॥ मेण ॥ टेक ॥ मेरी प्यारी गुण गण नूषित, हिरदय हारपरे ॥ तुजविन नांहिं रखें किण गमें, जिम शिव सगति चरे रे ॥ मे ॥१॥ श्म पियुवाणी सांजल महिषी, परम परमोद वहै ॥ दंपति मिलकर सेजें बैसें, अंतर तत्व गहै रे ॥ मे ॥२॥ अंगो अंग फरसन कर प्रेमें, घन मुगतिक वरसावै ॥ तव निधि संयम ज्ञानानंदें, शीतल नाव निपावै रे ॥मे०१३ ॥पद पच्चीशमुं॥ . ॥रागी गोमी॥निजधन काह गमावै॥ संतो निज०॥ टेक ॥ बोए काम बंबूलके तैनें, थांब कहांसें खावे ॥ वेलू पीलत तेल न नीकलें, मूरख जग कहलावै ॥सं॥॥ कोपी फणिधर रिजुता न पामे, तीम जमवंस निहालो ॥ सेलडी गांठे रस नवि पामे, खंजन सेत न जालो ॥सं॥२॥ श्रनुपम दूधे साप खिलावै, हालाहल होय जावै ॥ घनश्री पिन मगसिल Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ .१४ संयम तरंग नवि नीजै, निंबडे मधूता न पावै ॥ सं०॥३॥ एह विचार करी ना संतो, निधि चारित्र रमावो तव ज्ञानानंद पद अनुजवतां, कमला सहज निपावो ॥ सं० ॥४॥ इति ॥ पद रवीशमुं॥ ॥राग गोमी ॥ तनमय सदागम सेवो ॥ श्रबधू ॥ तम् ॥ टेक ॥ जबलग सदागम सेवन नांहि, पखपातें लपटेवो ॥ रतन पुंज पाहन सुत जाने, चंदन इंधन सम देवो ॥०॥१॥ मोटे मोटेपाहन तरुवर, रतन चंदन दिखलावे ॥ रासन कूतर त्य गज मोलें, लेवे ते मूढ कहावै ॥ १० ॥२॥ रतन कंबल वलकल चीवरसम, चर्वण घृत पूरमाने । सकल वसतु ग मोल चलावै,खोट साच नवी जाने ॥ १०॥३॥ अन्याय पूर जन पदमें रहकर, क्युंकर लाज गमावो ॥ तेहथी निजघर संयम आदर, ज्ञानानंद रमावो ॥१०॥ ॥ इति । ॥पद सत्तावीशमुं॥ - ॥राग बिहाग ॥हमक सान संग वारो ॥ संतो॥ हं० ॥ टेक ॥ पवनवेग निज हय पर चढकर, कुंत Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५०. संयम तरंग कृपाण शरधारो ॥ कूतरा कूतरी दासी इनकर, वर्जरें नूधर पामो ॥ सं० ॥ १ ॥ विषहर अमृतपान संयोगें, निर्विष जाव वधारो ॥ सदागम संयम धर नृप याना, निखिलपुरें वरतारो ॥ सं० ॥ २ ॥ जबलग ती - नो हरुक न मारे, दरशन नाप न पावो ॥ तेढ़ विना संयम पिण नांहिं, साध्य सिद्धि किम जावो ॥ सं० ॥ ३ ॥ साधक सुन साधन नवि पामें, तेहथी दमक निवारो ॥ निधि सयंम ज्ञानानंद अनुजव परमानंद सुख धारो ॥ सं० ॥ ४ ॥ ॥ पद हावी शभुं ॥ ॥ राग बिहाग ॥ इमक सान संग नावो ॥ श्रबधू ॥ इ० ॥ टेक ॥ जिम जिम निर्मल घनाघन वरसे, महि नवपल्लव रावों, तिम तिम इमकिय वायु विकारें, अनिस हरुक सरावो ॥ ० ॥ १ ॥ काली कुतरी पण बे तेहवी, सरिखो जोग मिलायो ॥ निजमति जोगें गिरिवर चढियो, जाति संगति टल्लां - यो ॥ ० ॥ २ ॥ नृपबिन नृपनिति ते चलावे, जग जन मान न माने ॥ तेढ्ने गुरु जन हित बतलावे,' तोपिन खान न जाने ॥ ०॥ ३ ॥ इरुक हरुक बं Jain Educationa International " For Personal and Private Use Only Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संयम तरंग १५१ हु मसे जग जनने, नगरें अपजस गावे ॥ सन्मुख विष्टाय पाहन नाखे, पोतें अशुचि नरावे ॥१०॥ ॥४॥ पखपाती श्रुति निति विलोपी, चामना दामना चलावे ॥ तेहथी निधि संयम ज्ञानानंद, सुधारस अनुजव पावे ॥ १० ॥५॥ इति ॥ ॥पद उंगणत्रीशमुं॥ ॥ राग कल्यान ॥ऐसी तुं कली उमाइ, संतो ॥ ऐ० ॥ टेक ॥ ममता सूतरमो लेकर, तृष्णा मांऊ लगा ॥सं ॥१॥ कुतूहल रंग विरंग तुकली, मूळ तीली सुहाइ ॥ विविध माया धनुष जाके, लटकन मिथ्या लहा॥ सं०॥५॥ कुटिल प्रवृत्ति पवन वरतें, गगनें शेष वधा॥ जोक लेकर मोर लीनी, नयन विषय वर धा॥सं॥३॥ कापत कापत श्राप वध गये, परजावें हरखा ॥ तिनतें ज्ञानानंद नवनिधि, बैसेही संयम ना ॥ सं० ॥४॥इति ॥ ॥पद त्रीशमुं॥ ॥ राग कल्यान ॥ ऐसा पतंग चढाइ, संतो ॥ 'ऐ ॥ टेक ॥ध्यान पतंग वर ज्ञान चित्रित, संयम मोरी लगा॥ सं०॥१॥ मेरुदंम पदमासन धर Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५२. संयम तरंग - कर, खेचरी मुद्रा धार || सूखम पवने गगन मंगल गत, दृष्टि पतंग पर सार ॥ सं० ॥ २ ॥ गुण. णी गत कोक टालो, श्रप्रमत्त जाव वधार ॥ सहस पर थकत थिति खय, जग जस सूर विचार ॥ सं० ॥ ३ ॥ सकल पररिधि काप संतो, वीर प्रमोद जराय || ज्ञानानंद नवनिधि संयम, नाचै निरख हरखाय ॥ सं० ॥ ४ ॥ इति ॥ ॥ पद एकत्रीशमुं ॥ - ॥ राग जींजोटी जंगला ॥ अनुजव रस गत माती, रंग राती ॥ ० ॥ टेक ॥ गगन मंगलगत इग श्रमि सरवर, निरखत प्रमद जराती ॥ ता तट इग मुगताफल तरुवर, निकलंक फूल फल जाती ॥ रं० ॥ ॥ १ ॥ मुगतका मिजल खावत पीवत, रंग खुमार घुमाती ॥ रं० ॥ निशि शशि रवि करत वि कारा, डुर्धर तिमिर हराती ॥ रं० ॥ २ ॥ अनहद धुनि संग शंकर नाचे, निस्पृह जाव रमाती ॥ रं० ॥ निधि चारित्र ज्ञानानंद रंगें, गावत नाटक राती ॥ रं० ॥ ३ ॥ इति ॥ For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संयम तरंग ॥ पद बत्रीमुं ॥ ॥ रांग जिंजोटी जंगला ॥ विरथा जनम गमाया, योग न जाया ॥ वि० ॥ टेक ॥ जगमें पहले हमही जनमे, मात जनक पढें जाया ॥ वि०॥ मामा मामी नाना नानी, पढें गुरुनाइ रमाया ॥ वि० ॥ १ ॥ जग समऊन या केम समकाइ, मो मन नांही रमाया ॥वि० ॥ चेलेने निज गुरु जनमाया, गुरुमे शीस ननाया || वि० ॥२॥ पढेले योगी पाढे जोगी, श्रनादि अनंत जोगाया ॥ वि० ॥ श्रापहिं मात जनक गुरु चेला, जगमांही जरमाया ॥ वि० ॥ ३ ॥ पाहन वाइन बेसी थूके, अंधो अंध चलाया ॥ वि० ॥ तिनतें संतो निधि संयमयुत, ज्ञानानंद सुहाया ॥ वि०॥४॥ ॥ पद तेत्री शमं ॥ १५३ ॥ राग चाबक ॥ वालमियारे, विरथा जनम गमाया ॥ टेक ॥ परसंगत कर दसदिसि जटका, परसें प्रेम लगाया ॥ परसें जाया पररंग जाया, परकुं जोग लगाया रे ॥ वि० ॥ १ ॥ माटी खाना माटी पीना, माटी में रम जाना ॥ माटी चीवर माटी नूखन, मांटी रंगसो जीनारे ॥ वि० ॥ २ ॥ परदेशी सें ना For Personal and Private Use Only Jain Educationa International Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५४. संयम तरंग तरा कीना, मायामें लपटाना ॥ निधि संयम शा. नानंद अनुनव, गुरुविन नांहिं लहानांरे॥वि॥३॥ ॥पद चोत्रीशमुं॥ ॥राग चाबक ॥ योगिया रे, गुरु विन ज्ञान न नाया ॥ टेक ॥ पुर्धर केसरी बकरी जाइ, बकरी वाघ बंधाया ॥ बकरी चहुटे वाघ नचावे, देखेजन हरखाया रे ॥ गु० ॥१॥ तुरिय वेग हय चाबुक योगें, नाग कुटुंब मसाया ॥ समय अनादें इतउत नटके, मम झायें नरमाया रे ॥ गु० ॥२॥ खिनजर ज्ञानकी वात न जानी, अनुजव वासन नाया ॥ गुरु किरीया संयम ज्ञानानंद, चरण कमल लपटा. या रे ॥ गु० ॥३॥ इति ॥ पद पांत्रीशमुं॥ ॥राग बसंत ॥ अचरज एक नजरगत श्रायो, ज्ञानी गुरु बतलायो ए॥ टेक॥ त्रिजुवनमें एक बाल कुमारी, बिरुद सति कहलाया ए ॥१०॥१॥बि. न घरमां ग पलमें निपने, नंदन तिन सुखदायी ए ॥ रूप अनूपा चार दीकरी, ते पिन योगन जा ए॥ ॥२॥ जेह जनक ते वदन तेहना, मांत Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . संयम तरंग १५५ विना जग जाया ए ॥ ते कया चिदानंदें परनी, योगी नाव रमाया ए ॥ १० ॥३॥ सेजें दोउ श्रनुजव रंगें, अह निसि प्रेम लगाया ए ॥ निधि संयम ज्ञानानंद योगी, गुरु किरिया दरसाया ए॥०॥४॥ ॥पद बत्रीशमुं॥ ॥ राग वसंत ॥ विविध तूर धुनि नन मंगलगत, ज्ञानी मुनि दिखलाया ए ॥ टेक॥ चनविह घन शुपिर तत वितत, घोर सरें संजलाया ए॥ वि०॥१॥ चंद सूरज परकास सुनावें, योगी साधन साधना ए॥ श्रनुजव तत्त्वसु ज्ञान खुमारी, कबहु न उतरे श्राराधना ए॥वि॥२॥ तूर नहिं पन तूर धनि सुन, नवनिधि सहज निपाया ए ॥ संयम ज्ञानानंद लहे तव, नाचै हसै हरखाया ए ॥ वि० ॥३॥ इति ॥ ॥पद साडत्रीशमुं॥ ॥राग जिंकोटी ॥ रहो बंगलेमें वालम करूं तोहे राजीरे ॥ टेक ॥ निज परिणतिका अनुपम बंगला, संयम कोट सुगाजीरे ॥ रहो ॥ चरण करण संपतति कंगुरा, अनंत विरज थंन साजीरे ॥ ॥र ॥१॥ सीतनूमी पर निर्नय सेलें, निरवेद प Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५६. संयम तरंग रम पद लारे ॥र ॥ विविध तत्त्व विचार सुखमी, ज्ञान दरस सुरनि नाश् रे ॥ २० ॥२॥ अहनिस रवि शशि करत विकासा, सलील अमीरस धाश् रे ॥ र ॥ विविध तूर धुनि सांजल वालम, सादवाद वगा रे ॥र० ॥३॥ध्येय ध्यान लय चढीहे खुमारी, उतरे कबहु न रामी रे ॥ र० ॥ सुन निधि संयम घरनी वाचा, ज्ञानानंद सुख धामीरे॥ र ॥४॥ इति ॥ ॥ इतिश्री संयम तरंगः संपूर्णः ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अष्टपदी १५७ ॥अथ॥ ॥श्रीजशोविजयजी कृत आनंदघनजीनी स्तुतिरूप अष्टपदी प्रारंजः ॥ ॥पद पदेखें ॥ ॥ राग कनडो ॥ मारग चलत चलत गात, श्रानंदघन प्यारे ॥ रहत श्रानंदनर पूर ॥ मा० ॥ ताको सरूप नूप, त्रिहु लोकथें न्यारो ॥ बरखत मुख पर नर ॥ मा॥१॥ सुमति सखीके संग, नित नित दोरत ॥ कबहु न होतही दूर॥जशविजय कहे सुनो हो आनंदघन, हम तुम मिले हजूर ॥मा॥२॥ ॥पद बीजं॥ ॥ आनंद घनको थानंद, सुजशही गावत ॥ रहत आनंद सुमता संग ॥ आनंद ॥ सुमति सखी श्रोरनवल थानंदघन, मिल रहे गंग तरंग॥आनं०॥ ॥१॥ मन मंजन करके निर्मल कीयो हे चित्त, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५०. अष्टपदी तापर लगायो हे अविहड रंग ॥ जसविजय कहे सुनतही देखो, सुख पायो बोत अनंग॥धानं॥२॥ ॥ पद त्रीजुं॥ ॥ राग नायकी ताल चंपक ॥ श्रानंद कोउ नहिं पावे, जोपावे सोश्यानंदघन ध्यावे॥श्रा० ॥ यानंद कोन रूप कोन आनंदघन, आनंद गुण कोन लखावे ॥ श्रा॥१॥ सहेज संतोष श्रानंद गुण प्रगटत, सब सुविधा मिट जावे ॥ जस कहे सोही श्रानंदघन पावत,अंतरज्योत जगावे॥श्रा॥॥ति ॥ पद चोथु ॥ ॥ राग ताल चंपक ॥ श्रानंद गेर गेर नहिं पाया, श्रानंद आनंदमें समाया ॥ श्रा० ॥ रति अरति दोउ संग लीय वरजित, श्ररथने हाथ तपाया ॥ श्रा० ॥१॥ कोउ श्रानंदघन बिपही पेखत, जस राय संग चमी श्राया ॥ आनंदघन आनंदरस जीलत, देखतही जस गुण गाया॥श्रा०॥ ॥ इति ॥ ॥पद पांचमुं॥ ॥ राग नायकी ॥ श्रानंद कोउ हम देखलावो, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अष्टपदी १५ ए या ॥ कहा ढूंढत तुं मूरख पंढी ॥ श्रानंद हाट ना बेकावो ॥ श्र० ॥ १ ॥ एसी दशा आनंद सम प्रगटंत, ता सुखं छालख लखावो ॥ जोइ पावे सोइ केतु न कहावत, सुजस गावत ताको वधावो ॥ श्रा० ॥२॥ ॥ पद बहुं ॥ ॥ राग कानडो ताल रूपक ॥ श्रानंदकी गत आनंदघन जाणे ॥ ० ॥ वाइ सुख सहज अचल अलख पद, वा सुख सुजस बखाने ॥ श्र० ॥ १ ॥ सुजस विलास जब प्रगटे आनंदरस, आनंद यक्षय खजाने ॥०॥ श दशा जब प्रगटे चित्त तर, सोहि श्रानंदघन | पाने ॥ श्र० ॥ ३ ॥ इति ॥ ॥ पद सातमुं ॥ ॥ एरी आज यानंद जयो मेरे ॥ तेरो मुख निरख निरख रोम रोम, शीतल जयो अंगो अंग ॥ परी० ॥ १ ॥ शुद्ध समजल समतारस जीलत, श्रा.. नंदन जयो अनंत रंग ॥ एरी० ॥ २ ॥ ऐसी श्राचंद्र दशा प्रगटी चित्त अंतर, ताको प्रभाव चलत ! निरमल गंग ॥ वादी गंग समता दोउ मिल रहे, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 160 अष्टपदी जसविजय जीलत ताके संग // एरी०॥३॥इति। ॥पद आठमुं॥. ॥राग कानडो ताल // श्रानंदघनके संग सु जसही मिले जब, तब आनंद सम नयो मजस, पारस संग लोहा जो फरसत, कंचन होतही ताके कस // श्रा० // 1 // खीर नीर जो मिल रहे आनंद जस, सुमति सखीके संग जयो हे एकरस // नव खपाल सुजस विलास, जये सिझ स्वरूप लीये धस मस ॥श्रा० // 2 // ॥इति श्रीजसोवि आनंदघनजीनी स्तुतिरूप अष्टपदी संपूर्णा // eggoodega(c)(c)(c)(c)(c)(c)(c)(c)(c)(c)11 इति श्री जसविलास तथा विनय विलास अने ज्ञान विलासाख्य रागमाला समाप्ताः Romenoneyenorrenogonomeremopanese ဒီ နေ့ ခ ခ ခ ခ ခ ခ န့်ရှိ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only