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________________ विनय विलास लचाय ॥ टेक ॥ या दुनियांका देख तमासा, देखतहि सकुचाय ॥ प्यारे० ॥१॥ मेरी मेरी करत हे बाउरे, फीरे 'जिउ अकुलाय ॥ पलक एकमें व. हुरि न देखे, जलबुंदकी न्याय ॥ प्यारे॥२॥कोटि विकल्प व्याधिकी वेदन, लही शुद्ध लपटाय ॥ झान कुसुमकी सेज न पाश्, रहे अघाय श्रघाय ॥ प्यारे ॥३॥ किया दोर चिहुं शोर जोरसें, मृग तृष्णा चित्तलाय॥प्यास बुजावन बुंद न पायो, यौंदि जनम गुमाय ॥ प्यारे ॥४॥ सुधा सरोवर हे या घटमें, जिसने सब कुःख जाय ॥ विनय कहे रुदेव दिखावे,जो लाउ दिल गय ॥प्यारे॥५॥इति॥ ॥पद हुं॥ .. ॥ राग सामेरी ॥ पिउजी मोहि दरिसन दीजी एंरे ॥ टेक ॥ तेरे दरशनकी में प्यासी, तुं कहा जयो उदासी ॥ पिउजी० ॥१॥ पिउ पिउ जपतें जर टुक, नयनो निंदकी बाजीरे ॥ तब देखा पिन प्रेमसें फनी. संकचि रहि में लाजीरे ॥ पिजजी॥ ॥२॥ रसिक न राख्यो हृदेसुं नीरी, सखिमें बहुत वरांसीरे ॥ अब पाउं तो पाउ न गेलं, राखुं रंग Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005365
Book TitleVairagyopadeshak Vividh Pad Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1904
Total Pages164
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size5 MB
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