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________________ ६५ . विनयविलास ॥पद त्रीजुं॥ ॥ राग कल्याण नूपाल ॥ मेरी गति मेरी मति, मेरी रति मेरि बति, मेरो पिया मेरो जिया, यफुपति यतियां ॥ मेरी ॥१॥ मेरो ज्ञान मेरो ध्यान, मेरो प्रान मेरोत्रान, मेरो जश सुनि थनिधान, मोहि उवसति बतियां ॥ मेरी ॥२॥ गए गिरनार मोकुं, बारि रस डारि तोज, रहि चित्त दिन रति, जे. से दीया बतियां ॥ मेरी० ॥ ३॥मेरे तुंहिं मेरे तुंहि, शिवा देवी नंद तुंहि, मानो पिया राजुलकी, बिनय बिनतियां ॥ मेरी० ॥४॥ इति ॥ ॥पद चोथु॥ ॥ राग दरबारी कनडो॥ कुरमति मारदे मेरे प्रानी ॥टेक॥ जूठी सब संसारकी माया, जूठी गरव गुमान।। फुरमति॥१॥ श्राप न बूके मोह निंदसुं, मोले उनियां दिवानी ॥ वीतराग दुःख मारण दिलसुं, विनय जपो शुद्ध ज्ञानी ॥पुरमति॥॥इति॥ ॥पद पांचमुं॥ ॥ राग भूपाल तथा गोडी ॥ प्यारे काहेकुं ल. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005365
Book TitleVairagyopadeshak Vividh Pad Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1904
Total Pages164
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size5 MB
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