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६५. विनयविलास बिलासी रे ॥ पिउजी॥३॥ पिउके गुनकी मोतन माला, कंठ करौं जप मालीरे ॥ चकित जये मेरे लोचन चिहुं ओर, सुरिजन पंथ मिहालीरे ॥ पितजी ॥४॥ कहे मति नारी जीवन प्यारे, में हुं तेरी बंदीरे ॥ गोद बिग बिनय विनोदें, घर श्रावो श्रानंदी रे ॥ पिउजी० ॥५॥ इति ॥
॥ पद सातमुं॥ ॥ राग मिश्रित बिहागडो ॥ प्यारे प्रीतमजी हठ गेरो ॥ टेक ॥ तोरन आए फिरे कुन कारन, कीहें रच्यों या गोरो ॥ प्यारे ॥१॥ मोसु कीनी ऐसी गाइ, जैसें करत गोरो ॥ फूल जगतमें कांहि दिखायो, एसो ब्याह बरघोरो ॥ प्यारे ॥ ॥२॥ में तो नाहन बोरुं नव नवको जूस्यो प्रेमको जोरो ॥ अबतो चरन बिनय मोहि दीजें, रा. जुल करत निहोरो ॥ प्यारे ॥३॥इति ॥
॥ पद आठमुं॥ ॥राग जयजयवंती ॥ सुरत मंडन पास, देखत अति उदास, सुजस सुवास जास, जगतमें जोतहे ॥ सुरत मोहनरूप, सुर नर नमे नूप, अकल
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