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विनयविलास सरूप सामि, अधिक उद्योत हे ॥१॥ नमत नमत नव, पायो प्रनु अनिनव, सुरतरु सुख सब, देयन प्रवीन दे॥ तेरा करुं गुन ग्यान, सोउ दिन सुविहान, तिहारे चरन. मेरो, दिल लयलीन हे ॥२॥ मुगट कुंडल माल, रतन तिलकनाल, सुगुन रसाल लाल, पूजा बनि हेमकी ॥ केसर कपूर फूल, धूप धरंबहुमूल, बिनयकुं दिजे टुक, निजरज्युं प्रेमकी॥३॥
॥ पद नवमुं॥ ॥राग मेघ मल्हार ॥ जिउ प्रान मेरे मोहन, करं बिनती दोउ करही जोर ॥ बिन गुन्हा क्यों बोरि सिधाए, महर करहु यादो सिरके मोर ॥ जिउ०॥ १॥ बिरह विज्ञान जग्यो मेरे जिउमें, पिउ पिउ दे सबही तोर ॥सूऊ न परत अजब गतिया कलु, कीधो बिजोग संजोगकी दोर ॥जीज ॥२॥ पलक एक कल न परत मोकुं, पिट पिउ रटत हो तही जोर ॥ चमक लोह ज्यौं खेंच दिउँ मन, चले प्रेमकी बांह मरोर ॥ जिज ॥३॥ लियो बीन मन मानिक मेरो, जिनको मूल हये लख करोर॥ तो अब मोहि दिजे मन अपनो, करहो नीश्राउ पिउ
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