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________________ ६६ विनय विलास मकरो जोर ॥ जिन० ॥ ४ ॥ रतन तीन दीजें राजु लकुं, जयो रंगरस ऊकही जोर ॥ बिनय सदा सेव हु सुखदाइ, समुदराज शिव। देवी किसोर ॥ जिउ० ॥ ५ ॥ इति ॥ ॥ पद दशमुं ॥ ॥ राग जेजेवंती ॥ जहुं कहालौं प्यारे, रहोगे हमसुं न्यारे, वाहितो धुतारि प्यारि, तुम चित्त ना5 दे ॥ १ ॥ बहुत बिगोइ खोइ, इनही सकल गुन ॥ लोगन में शोजा तुम, जलि युं बढाई हे ॥ २ ॥ - मकुं काहेकुं मानो, वाहिसो तिहारो तानो ॥ जानोगे पहि वातो, जैसी दुःखदाइ दे ॥ ३ ॥ सबनकुं प्यारी नारी, माया हे जगतदारी ॥ इनसेंतें यारी जारी, श्रखर बुराइ दे ॥ ४ ॥ जूते हि दिखावे नेह, पाथरकी जैसी त्रै ॥ बटकी दाखेंगी बेद, अंत तो पराइ हे ॥ ५ ॥ कड़े ज्ञान कला जिउ, जानो सो करदो पिन, जैसी हे तैसी तो तुम, बिनये सुनाइ दे ॥ ६ ॥ इति ॥ गीरमुं ॥ ॥ पद राग बिहागडो ॥ सांइ सलूनाकेसें पाऊरी, मन For Personal and Private Use Only Jain Educationa International www.jainelibrary.org
SR No.005365
Book TitleVairagyopadeshak Vividh Pad Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1904
Total Pages164
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size5 MB
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