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________________ विनयविलास थिर मेरा न होय ॥ दिन सारा बातोमें खोया, रजनी गुमाइ सोय ॥ सांइ० ॥१॥ टेक ॥ बेर बेर बर ज्यामै दिलकुं, बरज्या न रहे सोय ॥ मन उर मदमत्त बाला कुंजर,, अटके न रहे दोय ॥ सां० ॥ ॥२॥ बिन ताता बिन शीतल होवें, जिनुक हसे डिनु रोय ॥ उिनु हरखे सुख संपति पेखी, डिनु रे सब खोय ॥ सांइ० ॥३॥ वृथा करत हे कोरी कुराफत, नावी न मिटे कोय ॥ या कीनी में याहि करुंगी, यौंही नीर बिलोय ॥ सां० ॥४॥ मन धागा पिउ गुनको मोती, हार बनाई पोय ॥ बिनय कहे मेरे जिनके जीवन, नेकनिजर मोहे जो५ । सां० ॥५॥ इति ॥ ॥पद बारमुं॥ ॥राग नट ॥थिर नांहिरे थिर नांहि, यावत धन यौवन थिर नांहि ॥ पलक एकमें बेद दिखावत, जैसी बादलकी गंहि ॥ थिर ॥१॥टेक ॥ मेरें मेरे कर मरत बिचारे, पुनियां अपनी करीचाही॥ कुलटा स्त्री ज्यौं उलटा होवे, या साथ किसिके ना याहि ॥ थिर ॥२॥ कहे उनियां कहा हसे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005365
Book TitleVairagyopadeshak Vividh Pad Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1904
Total Pages164
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size5 MB
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