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विनयविलास बाउरे, मेरी गति समजौं नाहिं ॥ केतेही गेरे में प्यासे, केते उर गहे बांदि ॥ थिर ॥३॥ सयन सनेह सकल दे चंचल, किसके सुत किसकी मा॥ रितु बसंत शिर रूख पात ज्यौं, जाय परोगे को कांही॥ थिर ॥४॥ अजरामर अकलंक अरूपी, स. ब लोगनकुं सुखदाय॥ बिनय कहे जव फुःख बंधनतें, बोडनहार वे सांश् ॥ थिर ॥५॥
॥पद तेरमुं॥ ॥ राग बिहागडो ॥ मन न काहुके वश, मन कीए सब वश, मनकी सो गति जाने, याको मन वश हे॥१॥ पढोहो बहुत पाठ, तप करो जै पाहार, मन वश कीए बिनु, तप जप बशहे ॥२॥ काहेकुंफीरे हे मन, काहु न पावेगो चेन, विषयके उमंग रंग, कलु न फुरसहे ॥३॥ सोउ ज्ञानी सोउ ध्यानी, सोउ मेरे जीया यानी॥जिने मन वशकियो, वाहिको सुजश दे ॥४॥ विनय कहे सौ धनु, याको मनु लिनु बिनु, सां सां सां सांझ, सांसें तिरस हे॥५॥इति
॥पद चौदमुं॥ ॥ राग श्रीराग ॥ अजब तमासा इक नाख्या ॥
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