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जशविलास २३ “बाधे ॥ प्रजु० ॥२॥ वढत रहे नांहि सुरजिषण, जानु मोहि विराधे ॥ कुलिश कठिन दृढ मुष्टि मास्यो, संकुचित तनु मन दाधे ॥ प्रनु० ॥३॥सुर कहे परतख मोहि नयोहे, पानी रस विण खाधे ॥ जस कहे जे प्रसंस्यो तैसो, तुंदि वीर शिव साधे॥ प्रजु० ॥४॥ इति ॥
॥ पद त्रीशमुं॥ ॥ राग श्रीराग ॥श्रब मोही ऐसीथाय बनी॥ टेक ॥ श्री संखेश्वर पास जिनेसर, मेरे तुं एक धनी ॥अब० ॥१॥ तुं बिनु कोउ चित न सुहावे,श्रावे कोडि गुनी ॥ मन दोरे तुज ऊपर रसियो, अदि जिम कमल ननी ॥ श्रब० ॥२॥ तुज नामें सवि संकट चूरे, नागराज धरनी ॥ नाम जपों निसिवासर तेरो, या सुन मुज करनी ॥ श्रब० ॥३॥ कोपानल उपजायत उर्जन, मथन वचन बरनी ॥नाम जपुं जलधार तिहां तुज, धारं कुःख हरनी ॥ अब० ॥४॥ मिथ्यामति बहु जन हे जगमां, मदन धरे धरनी॥उनतें हम तुज नक्ति प्रनावे,जय नहें एक कनी॥अब०॥५॥ सजान नयन सुधा
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