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जश विलास
पद अठ्ठावीशमुं॥ ॥ राग केदारो दरबारी॥ श्रावे हाथी दलू साज गाजते, नेमजी घर श्रावे, ए देशी ॥ प्रजुबल दे. खी सुरराज, लाजतो श्म बोले । देखो बल नांग्यों चम सेरो, कोनहि जग तुम तोले ॥ प्रजु० ॥१॥ टेक ॥ चरन अंगुठे कंपित सुरगिरि, मानुं नाचत डोले ॥ इन मिसि प्रनु मोहि उपर तूने, हरख हियाको खोले ॥ प्रजु० ॥२॥ मरत शेषधर हरत महोदधि, जय नंगुर नूगोले ॥ दिसि कुंजर दि. ग्मूढ नए तब, सबहिं मिलत एक टोले ॥प्रजु ॥ ॥३॥ लीला बाल अबाल पराक्रम, तीन जुवन धंधोले ॥ जस प्रजु वीर महेर श्रब कीजें, बहुरि हुन परिहु नोले ॥ प्रजु० ॥४॥ इति ॥
॥ पद ओगणत्रीशमुं॥ ॥ राग उपर प्रमाणे ॥ प्रनु धरी पीठ वेताल बाल, सात ताललों वाधे ॥ काल रूप विकराल नयंकर, लागत अंबर श्राधे ॥ प्रजु ॥१॥टेक ॥ बाल कहे को वीर ले गयो, परिजन देव श्राराधे ॥ तिल त्रिनाग चित्त वीर न खोज्यो, बल अनंत कुन
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