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जशविलास रस अंजन, सुरजन रवि नरनी ॥तुज मूरत निरखे सो पावे, सुखजस लील घनी ॥श्रव॥ ६॥इति॥
॥पद एकत्रीशमुं॥ ॥राग प्रजाति ॥ विमलाचल नित वंदिये, कीजे एहनी सेवा ॥ मानु हाथ ए धर्मनो, शिवतरु फल लेवा ॥ विमलाचल ॥१॥ टेक ॥ उज्वल जिनग्रह मंडले, तिहां दीपे उत्तंगा॥ मानु हिमगिरि विज्रमे, श्राश् अंबर गंगा ॥ विमलाचल॥२॥ को अनेरु जग नहीं, तीरथ ए तोले ॥एम श्री मुख धागलें, श्री सीमंधर बोले ॥ विमलाचलम् ॥ ॥३॥ जे सघला तीरथ करे, यात्रा फल लहिएं ॥ तेहथी ए गिरि नेटतां, शतगुणु फल लदिएं । वि. मलाचल ॥४॥ जन्म सफल होए तेहनो, जो ए गिरि वंदे॥सुजस विजय संपद लहे, ते नर चिर नंदे ॥ विमलाचल ॥ ५ इति ॥
॥ पद बत्रीशमुं॥ ॥ राग देव गंधार ॥ देखो मा अजब रूप जिनजीको ॥ देखो०॥ टेक ॥ उनके श्रागें ओर सबनको, रूप लगे मोहि फीको ॥ देखो॥१॥ लोचन
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