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जश विलास
२.५
करुना अमृत कचोले, मुख सोढ़े अति नीको ॥ क वि जस विजय कहे यों साहिब, नेमजी त्रिभुवन टीको | देखो० ॥ इति ॥ ॥ पद तेत्री शमुं ॥
॥ राग गुर्जरी पूर्वी ॥ बाला रूप शाला गले, माला सोहे मोतनकी ॥ करे नृत्य चाला गोरी, टोरी मिलि जोरीसी ॥ देवरकुं रहि घेरी, सेना मानु काम केरी, गुनगाती यावे तेरी, करे चित चोरिसी ॥ विवाद मनावे खाली, पहिरी दखण फाली, वाकुं निहाले बाली, बोडी लाज छोरीसी ॥ तोजी नेमि स्वामि गज, गामी जस कामी जस, धामी रहे ग्र दि मौन ध्यान, धारा वज्र दोरीसी ॥ १ ॥ इति ॥ ॥ पद चोत्रीशमं ॥
॥ राग धन्याश्री ॥ जबलग आवे नहिं मन गम ॥ टेक ॥ तबलग कष्ट क्रिया सवि निष्फल, ज्यौं गगने चित्राम || जबलग० ॥ १ ॥ करनी बिन तुं करे मोटाइ, ब्रह्मव्रति तुऊ नाम ॥ श्राखर फल न प्रदेगो ज्यों जग, व्यापारी बिनु दाम || जबलग० ॥ ॥ २ ॥ मुंग मुमावत सबदि गडरिया, हरिण, सेफ
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