SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 109
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ झान विलास १०५ ॥ पद त्रीशमुं॥ ॥ राग श्राशावरी ॥ योगसमाधि योग आधारो, आगममाहें तत्त्व विचारो ॥ यो ॥ टेक ॥ काननपरले खार कीनारे, अनुपम एक नगर सुखकारो ॥ यो ॥१॥ जामें जीव अनंत रहाहे, कुण समरथ ते गिणतां मानो ॥ सादि अनंता श्रायु जेहनो, बहुविध परिगल रिकि बखानो ॥ यो॥२॥ उचनीच जिहां नेद नहीं है, सब जन नूपति नाव निहालो । चारित ज्ञानानंद संजालो, जिम पामो पुरिवास विशालो ॥ यो ॥३॥ इति ॥ ॥पद एकत्रीशमुं॥ ॥ राग तुमरी॥ मंदिर एक बनाया हमने ॥ मंदिर ॥ टेक ॥ जिस मंदिरके दश दरवाजे, एक बुंदकी मायारे ॥ नानो पंखी जाके अंतर, राज करे चित्त लाया रे ॥ मं० ॥१॥हाड मांस जाके नहिं दीसे, रूपरंग नहिं जायारे ॥ पंख न दीसे कहसे पिडा, षटरस जोगें नायारे ॥ मं० ॥२॥ जातो श्रातो नहिं को देखे, नहिं कोई रूप बतावेरे ॥ सब जग खायो तो पण नूखो, तृप्ति कबहिं न पा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005365
Book TitleVairagyopadeshak Vividh Pad Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1904
Total Pages164
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy