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१०६ ज्ञानविलास वेरे ॥ मं० ॥३॥ जालम पंखी तालम मंदिर, पाडे कोन बतावेरे ॥ वह पंखीको जो कोई जाने, सो ज्ञानानंद निधि पावेरे ॥ मं ॥४॥ इति ॥
॥पद बत्रीशमुं॥ ॥राग तुमरी ॥ इतना काम करे जे जोगी, सोश योग न जानेरे ॥ ३० ॥ टेक ॥ मूंग मूंमाया जस्म लगाया, जोगी ना हम जानेरे ॥ बक्तर पदेरी रण कुं जीतें, सो योगी हम जानेरे ॥ इत० ॥१॥राजा वसकर पांचों जीते, उर्धर दोयने मारेरे ॥ चार काटके सोल पिडामे, सोश योग सुधारेरे ॥ श्त०॥ ॥२॥ जागृत जावें सरव समय रहे, परमचारित्र कहावेरे ॥ ज्ञानानंद लहेर मतवाला, सो योगी मन नावेरे ॥ इत० ॥३॥ इति ॥
॥पद तेत्रीशमुं॥ ॥राग तुमरी ॥ वादिनकुं नहिं जाना जबतक, कैसा ध्यान लगाया रे ॥ वा ॥ टेक ॥ जटा वधारीजस्म लगाइ, गंगा तीर रहायारे ॥ उरध बाह श्रातापना लेश, योगी नाम धरायारे ॥ वा० ॥१॥ चार वेद ध्वनि सूत धारकर,बामण नाम कहायारे॥
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