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________________ ज्ञान विलास १०७ शासतर पढके ऊगडे जीते, पंमित नाम रहायारे॥ वा॥२॥ सुन्नत करके श्रद्धा बंदे, सीया सुन्नी कहा यारे ॥ वाको रूप न जाने को, नवि केश बतलायारे॥ वा० ॥३॥.जे केश्वाको रूप पहिचाने, तेहिज साच जनायारे ॥ ज्ञानानंद निधि अनुनव योगें, झानी नाम सुहायारे॥ वा० ॥४॥ इति ॥ ॥ पद चोत्रीशमुं॥ ॥ राग तुमरी ॥ ऐसो योग रमावो साधो ॥ ऐ. सो योग रमावोरे ॥ ऐ० ॥ टेक ॥ बरम विनूति अंग रमावो, दया तीर मन जावोरे ॥ ज्ञान शोचता अंतर घटमें, श्रातमध्यान लगावोरे ॥ ऐ० ॥ ॥१॥ धरम शुकल दोय मुंदरा धारो, कनदोरो सम सारोरे ॥ सुन संयम कोपीन बिचारो, जोजन निरजरा धारोरे ॥ ऐ० ॥२॥ अनुभव प्याला प्रेम मसाला, चाख रहे मतवाला रे ॥ ज्ञानानंद ल. हेरमें जूले, सो योगी मदवालारे ॥ऐ०॥३॥इति। पद पांत्रीशमुं॥ ॥ राग बुमरी ॥ ढुं सहलानी जानुं बुं तुम, काहे कुं जटकावे रे॥ ढुं० ॥ टेक ॥ जटकत जटकत न Vain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.005365
Book TitleVairagyopadeshak Vividh Pad Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShravak Bhimsinh Manek
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1904
Total Pages164
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size5 MB
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